
– विवेक कुमार मिश्र

एक सुबह रच जाती
आशा भरी चाय की दुनिया
अपने ही रंग और आंच पर
ताप लिए चाय पकती
जीवन की आंच में
और रच देती है संसार
जहां से अर्थ का पहिया घूमता रहता
चाय …स्वाद… रंग और उल्लास के संग
विश्वास की डोर में बांधती है
चाय पर आना विश्वास का ही रंग होता
कोई यूं ही नहीं कह उठता कि चाय पीते हैं
चाय पीने का साथ
जीवन का अर्थ और उत्सव रचता रहता
पृथ्वी पर चाय के रंग में
खुशियों भरा आकाश
रच जाता, चाय अकेली भर नहीं होती
चाय के साथ संसार भर का रंग
और अंतहीन बातें किस्से कहानी
सब कुछ तो चाय पर ही पकते हैं
और अर्थ का प्रकाश भी यहीं से मिलता
चाय की प्याली में कितना सारा
जीवन रंग घुला होता
सुबह की आभा और रंग भरी उर्जा के साथ
खिली – खिली सुबह में चाय
उड़ती है इच्छा के अनंत रंग लिए
और और रच देती है एक भरा – पूरा दिन
जहां अनंत बातें घुलती रचती रहती हैं
चाय की घुली सुबह में
एक चाय रचती रहती सुबह का संगीत… !
(एसोसिएट प्रोफेसर हिंदी)