तो यूँ ही कर लेते कोई झूठी बात…

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-सरस्वती रमेश-

सरस्वती रमेश

बीवी ने पहाड़ सा दिन
घड़ी की सुइयां देखते काटा
छह बजे उसके अंगों ने हरकत की
साजन निकले होगे ऑफिस से
और बीवी करने लगी उनके आने की प्रतीक्षा

कि तभी साजन का फ़ोन आया
“खाना मत बनाना
मैं बाहर से खा कर आऊंगा
देर होगी ”
बीवी बोली, ठीक है
और इंतज़ार की घड़िया निहायत लम्बी हो चली

शादी से पहले भी करते थे वो फ़ोन
मगर तब बातें इतनी छोटी न थी
इंतज़ार इतने लम्बे न थे
घंटों चलती थी बातें
मगर अब तो
एक मिनट भी कॉल ड्यूरेशन
मुश्किल से
दिखा पाता है फ़ोन

रात नौ बजे साजन आये
मुह धोया पानी माँगा
और थोड़ी देर बाहर की हवा ले सो गए

एक बार भी न पूछा
बेवफा मौसम ने तुम्हे सताया तो नहीं
एक बार भी न पूछा
कोई मेहमान घर आया तो नहीं
एक बार भी न देखा
बीवी का चेहरा
एक बार भी न पूछा
मेरी याद ने तुम्हे तड़पाया तो नहीं

कोई बात नहीं थी उनके पास
तो यूँ ही कर लेते कोई झूठी बात
सुना देते कोई झूठा किस्सा

न बरसाते मुझपर प्रेम के फूल
न सहलाते मेरे बालों को
न चूमते मेरे गालों को
बस सुना देते कोई चुटकुला
और हंस लेते एक बार मेरे साथ दिल खोलकर
तो मेरी भी प्रतीक्षा की थकान दूर हो जाती
मैं भी जान जाती
वो घर आ गए हैं

(सरस्वती रमेश कवयित्री, लेखिका एवं कहानीकार हैं)

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