खेतों में अब बचा है बस तबाही का मंजर, गरल बन गया अमृत

हाडोती अंचल में प्रचलित लोकाक्ति के अनुसार रात को आसोज मास की चांदनी से धरती नहा उठती है लेकिन इस बार अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की इस पूर्णिमा के दिन आज कोटा संभाग के ज्यादातर इलाकों में न तो दिन सूरज के रश्मि से नहाया हुआ था और न ही आज की रात को चंद्रमा अपने पूरे आकार के साथ दूधिया चांदनी बिखेर पा रहा था क्योंकि काली घटाओं ने दिन में सूरज को समेट रखा था तो रात को चंद्रमा को अपने साए की ओट में ढक लिया था लेकिन बादलों की यह अठखेलिया हाडोती अंचल के उन किसानों के लिए किसी सुंदर चित्रकृति की तरह नहीं, बल्कि असल में उस मेघनाद की तरह थी जो खेतों में खड़ी उनकी उम्मीदों को अपने काले साए में डुबो रही थी

khet fasal
कुराड़िया के एक खेत में जमीन पर पड़ी धान की फसल।

 -कृष्ण बलदेव हाडा-

कोटा। राजस्थान के कोटा संभाग में हर दिन की शुरुआत के साथ किसानों की आस टूटती जा रही है क्योंकि यह वर्षा है कि थमने का नाम ही नहीं ले रही और जिस तरह से बीते चार-पांच दिनों में कोटा संभाग के ज्यादातर इलाकों में रुक-रुक कर मगर मध्यम से तेज गति तक बरसात हो रही है, वह वर्षा ऋतु में भाद्र मास बीतने के बाद आये अश्विन माह में भी अपने चरम श्रावण मास का अहसास करवा रही है, लेकिन यह उसका प्रकोप है कि अमृत समान समझी जाने वाली बूंदे गरल की तरह किसानों के खेतों में बर्बादी का मंजर उत्पन्न कर रही है।

कृष्ण बलदेव हाडा

उम्मीदों को अपने काले साए में डुबो रही

कोटा संभाग के चारों जिलों कोटा, बूंदी,बारां और झालावाड़ जिलों में पिछले चार-पांच दिनों से शुरू हुआ बे-मौसम बरसात का यह दौर आज भी जारी रहा जबकि आज आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का दिन है जब आमतौर पर बरसात नहीं होती और दिन में सूरज की चमक के साथ धूप खिलती है, जबकि हाडोती अंचल में प्रचलित लोकाक्ति के अनुसार रात को आसोज मास की चांदनी से धरती नहा उठती है लेकिन इस बार अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की इस पूर्णिमा के दिन आज कोटा संभाग के ज्यादातर इलाकों में न तो दिन सूरज के रश्मि से नहाया हुआ था और न ही आज की रात को चंद्रमा अपने पूरे आकार के साथ दूधिया चांदनी बिखेर पा रहा था क्योंकि काली घटाओं ने दिन में सूरज को समेट रखा था तो रात को चंद्रमा को अपने साए की ओट में ढक लिया था लेकिन बादलों की यह अठखेलिया हाडोती अंचल के उन किसानों के लिए किसी सुंदर चित्रकृति की तरह नहीं, बल्कि असल में उस मेघनाद की तरह थी जो खेतों में खड़ी उनकी उम्मीदों को अपने काले साए में डुबो रही थी। किसानों का कहना है कि बरसों बाद आसोज में सावन सा अहसास करवाने वाला ऐसा मौसम देखा है जिसके कहर से खेतों में अब दूर-दूर तक फसली बर्बादी पसरी पड़ी है। पिछले माह के अंत में और अश्विन माह की शुरुआत में जो सोयाबीन, मक्का, धान, उड़द, मूंग आदि की फसलें खेतों में लहलहा रहे थे, वह अब खेतों में आडी पड़ी है। जो बीते महीने तक किसानों में उम्मीद की एक रोशनी जगाये हुई थी, वह अब बर्बादी का वीभत्स नजारा उपस्थित कर रही थी।

किसानों की बर्बादी की नई इबारत

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उम्मेद सिंह

कोटा जिले में सांगोद क्षेत्र के कुराडिया कलां गांव निवासी प्रगतिशील किसान उम्मेद सिंह हाडा ने आज बताया
पिछले कृषि सत्र रबी में लहसुन के उचित दाम नहीं मिलने से किसान अभी पूरी तरह से उबरा भी नहीं था कि अब खेतों में बे-मौसम बरसात के कहर से जमीन पर बिखरी पड़ी सोयाबीन-धान की फसल किसानों की बर्बादी की नई इबारत लिख रही है। सांगोद क्षेत्र के ज्यादातर गांव में बीते दिनों में हुई अतिवृष्टि में यह ही नजारा नुमाया किया है, उसे देखते हुए किसानों को अपनी इस बर्बादी को समेटने में भी आने वाले कई दिन लग जाने वाले हैं।

धान की फसल अब धरती पर आडी पड़ी है

उम्मेद सिंह हाडा ने बताया कि फसलों की बर्बादी का यह आलम अकेले उनके कुराड़िया कलां गांव में नहीं है बल्कि इस क्षेत्र के कुंदनपुर, विनोद कलां, राजगढ़, अडूसा, पालकिया, मंडीता, किशनपुरा, घाटोलिया, सूंडक्या, कांगणिया, मंडाप, थूणपुर आदि गांव में कमोबेश ऐसे ही हालात हैं। उन्होंने बताया कि बरसात और तेज हवाओं के असर से खेतों में खड़ी धान की फसल अब धरती पर आडी पड़ी है जिसे बे-मौसम बरसात का दौर शुरू होने से पहले किसान काटने की तैयारी कर रहे थे। अधिकांश जगहों पर खेतों में पानी भर जाने और उसमें डूबकर धान की पौध के गल जाने के कारण अब हालात यह बन गए हैं कि किसानों के लिए उनकी कटाई करवाने के लिए महंगे मोल के मेहनतिया (मजदूर) लगाने की जगह से ट्रक्टर से हकवा कर जमींदोज करवा देना जाना ज्यादा मुनासिब रहेगा।

खेतों में सोयाबीन पानी में डूब गई

श्री उम्मेद सिंह हाडा ने बताया कि सोयाबीन की फसल की बर्बादी के हालात तो और भी अधिक है क्योंकि इलाके के ज्यादातर किसानों ने पक जाने के बाद सोयाबीन की कटाई करवा दी थी लेकिन ज्यादातर फसलें कटकर खेतों में ही पड़ी थी जिसे थ्रेसर से निकालने की तैयारी की ही जा कही थी कि असमय बरसात का दौर शुरू हो गया और खेतों में पड़ी सोयाबीन वहां पड़े-पड़े पानी में डूब गई। अब ज्यादातर फ़सल किसी उपयोग की नहीं रह गई है क्योंकि बरसात का दौर थमेगा तब भी सूखने से पहले या तो तरबतर होने के कारण फूल कर सड़ने लगेगी या फिर पड़ी-पड़ी फूटने (उगने) लगेगी और दोनों ही स्थितियों में यह किसी काम की नहीं रहेगी। सूखने के बाद यदि इसे थ्रेसर से निकाला भी तो बुरादा ही हाथ आएगा जिसका कोई मोल नही है इसलिए किसानों की बेहतरी इसे नष्ट कर देने में ही रहने वाली है।

(लेखक कृष्ण बलदेव हाडा वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

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