
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

मियाॅं जाते रहोगे सायबाॅं* से।
शिकायत कर रहे हो आसमाॅं से।।
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दिखाई दे रहा है जो खॅंडर सा।
कोई आवाज़ देता है वहाॅं से।।
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यहाॅं तो सर कटने का चलन है।
न होगा कुछ तेरी आह ओ फ़ुगाॅं* से।।
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किसी का दिल कभी तुम मत दुखाना।
मुझे ये बात आई अपनी माॅं से।।
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मुहब्बत की कोई मंज़िल नहीं है।
मुहब्बत में फ़क़त जाते हैं जाॅं से।।
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अचानक जल गया घर मेरा “अनवर”।
अचानक बिजलियाॅं आईं कहाॅं से।।
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सायबाॅं*छप्पर
आह ओ फ़ुगाॅं* रोना धोना
शकूर अनवर
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