
-भरत सिंह कुंदनपुर ने लगाया राजनीतिक कारणों से कोटा को चीतो से वंचित रखने का आरोप,क्यों नही बोला भाजपा के 25 में से एक भी सांसद
-कृष्ण बलदेव हाडा-

कराहल (श्योपुर)। आखिर वह घड़ी आ ही गई जब एक समय पूरे देश में विलुप्त हो चुके चीतों की दूसरी खेप भी आज मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के कूनो अभयारण्य पहुंच गई और इस विरल और दुर्लभ से मौके पर इस राष्ट्रीय अभयारण्य में दक्षिण अफ्रीका से लाए गए एक दर्जन चीतो को छोड़ने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव के साथ खुद मौजूद थे और विधिवत उन्होंने कूनो के संरक्षित क्षेत्र में इन चीतो को छोड़ा।
हालांकि मध्यप्रदेश के राजस्थान से जुड़ी सीमा से लगे।

श्योपुर और मुरैना जिले में विस्तारित वर्ष 1981 में स्थापित और वर्ष 2018 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा हासिल करने वाला कूनो अभयारण्य क्षेत्र 748.76 वर्ग किलोमीटर यानी 259.10 वर्ग मील के इलाके में फैला हुआ है लेकिन आज छोड़े गए एक दर्जन चीतो को फिलहाल सुरक्षा-सुरक्षा की दृष्टि से एक सीमित सुरक्षित क्षेत्र में ही रखा जाएगा।

यहा चीतों की देखभाल के लिये व्यापक इंतजाम किये गये हैं। कोरेंटाइन बोमा में 12 चीतों को रखने के लिये 10 कोरेंटाइन बोमा तैयार किये गये हैं। इनमें 8 नये और 2 पुराने कोरेंटाइन बोमा को परिवर्तित किया गया है। इसके अलावा दो आइसोलेशन वार्ड तैयार किये गये हैं। सभी कोरेंटाइन बोमा में छाया के लिये शेड बनाये गये हैं। चीतों के लिये पानी की व्यवस्था की गई है। हेलीकाप्टर से 12 चीतों को उतारने के बाद उन्हें कोरेंटाइन बोमा में लाया गया। हेलीपेड से कोरेंटाइन बोमा की दूरी लगभग एक किलोमीटर है। इसके पहले इन चीतो को भारतीय वायु सेना के विमान से दक्षिण अफ्रीका से पहले ग्वालियर और वहां से हैलीकॉप्टर से यहां लाया गया।

इसी के साथ ही कूनो अभयारण्य क्षेत्र में दुर्लभ चीतो की संख्या अब बढ़कर 20 हो गई है। इसके पहले पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने 17 सितम्बर को अपने जन्म दिवस के अवसर पर उस ऎतिहासिक मौके का गवाह बनते हुए कूनो अभयारण्य में अाठ चीतो को छोड़ा था।

इस बार भी एक बार फिर से मध्यप्रदेश सरकार की कोशिशें रंग लाई और जिसने अफ्रीकी महाद्वीप से दूसरी खेप में ओर चीते भारत लाने की सूचनाओं के बीच एक बार फिर उन्हें अभयारण्य क्षेत्र में ही आबाद करने के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने भरपूर कोशिश की और उसका फल भी मप्र सरकार को मिला और दूसरे खेप में लाये चीते भी मध्य प्रदेश की धरा पर ही अवतरित हुए।
हालांकि चीतो को आबाद करने के लिए कूनो राष्ट्रीय अभयारण्य के अलावा राजस्थान में कोटा जिले के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व का दरा क्षेत्र वाला हिस्सा भी दावेदार था और राजस्थान वाइल्ड लाइफ बोर्ड के सदस्य एवं कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक भरत सिंह कुंदनपुर इसके लिए लगातार प्रयास भी कर रहे थे।

राज्य सरकार ने भी इसके लिए केंद्र सरकार को सहमति भी दी थी लेकिन वह सहमति सतही साबित हुई क्योंकि ऐसी कोई गंभीर कोशिश भी नहीं की गई थी कि जिसके चलते केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय दरा में चीते छोड़ने की दिशा में कोई कदम उठाने को मजबूर होता है। केवल पत्रों का सिलसिला चला और यह सिलसिला भी मध्यप्रदेश के कूनो में आज 12 चीतो को छोड़ने पर आकर समाप्त हो गया।
वैसे भरत सिंह कुंदनपुर अफ्रीकी महाद्वीप से लाकर भारत में चीते बसाने के मामले में राजस्थान के साथ राजनीतिक भेदभाव करने का केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं पर आरोप लगाते रहे हैं। उनका कहना रहा है कि अफ्रीकी महाद्वीप से आई चीता विशेषज्ञों ने की टीम ने भी जब कूनो अभयारण्य की तुलना में कोटा-झालावाड़ जिले में फैले मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के दरा के इस 82 वर्ग किलोमीटर के हिस्से को चीते बचाए जाने की दृष्टि से देश में सबसे अधिक उपर्युक्त पाया था तो इसे राजनीतिक भेदभाव ही कहा जाएगा क्योंकि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है और प्रधानमंत्री एंव दूसरे केंद्रीय नेता कई दशकों बाद राजस्थान की धरती पर चीते आबाद होने की उपलब्धि प्रदेश सरकार के हिस्से में नहीं जाने देना चाहते इसलिए उन्होंने भाजपा शासित राज्य मध्यप्रदेश के कूनो स्थित राष्ट्रीय अभयारण्य को ही चीता बचाने के लिए उपर्युक्त पाया।

श्री भरत सिंह कहते हैं कि एक बार जब कूनो में चीते आबाद किए जा चुके थे तो केंद्र सरकार को राजनीतिक दुराग्रह और पूर्वाग्रहों से उबर कर कोटा जिले के दरा अभयारण्य क्षेत्र में चीते की दूसरी खेप लाकर यहां छोड़ा जाए।श्री भरत सिंह ने कहा कि कोटा में चीते तो आयेंगे लेकिन भाजपा नेताओं को तो उस दिन का इंतजार है जब प्रदेश में कांग्रेस की जगह भारतीय जनता पार्टी की सरकार आएगी। उनका यह सपना कब पूरा होगा, यह तो अभी कहना मुश्किल है।
हालांकि यह राजस्थान के भारतीय जनता पार्टी के निर्वाचित सांसदों की भी विफलता है जो संख्या बल में तो पूरे 25 हैं और उनमें से तीन तो केंद्र सरकार में मंत्री भी है लेकिन एक भी सांसद ने राजस्थान के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के एक हिस्से को दक्षिणी अफ्रीका-नामिबिया से आए चीता विशेषज्ञों के चीतो को भारत में बसाने की दृष्टि से सबसे अधिक उपर्युक्त पाए जाने के बावजूद यह राजनीतिक पूर्वाग्रह-दुराग्रह को त्याग कर केंद्र सरकार पर राजस्थान में चीते लाने के लिए कोई भी कोशिश नहीं की।
उल्लेखनीय है कि पिछले साल जब अफ्रीका महाद्वीप से आए चीता विशेषज्ञों ने देहरादून स्थित राष्ट्रीय वन संस्थान के अधिकारियों के साथ चीते बताये जाने के संभावित क्षेत्रों का दौरा किया था तो दरा अभयारण्य क्षेत्र के 82 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को चीते बसाने की दृष्टि से दक्षिण अफ्रीका के वनों से भी कहीं अधिक उपयुक्त पाया था और इसके आधिकारिक दस्तावेज भी उपलब्ध है। इसके बावजूद राजस्थान से केंद्र में प्रतिनिधित्व कर रहे किसी भी जनप्रतिनिधि ने इस मसले को गंभीरता के साथ केंद्र सरकार के सामने नहीं रखा।

















