
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

क्या मुक़द्दर सो गया है।
ऐसा कैसे हो गया है।।
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इस जहाने-रंगो-बू से।
फिर न लौटा जो गया है।।
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मेरे हिस्से का उजाला।
रास्ते में खो गया है।।
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तारे किस पर हॅंस रहे हैं।
चाॅंद किस को रो गया है।।
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दिल ने इतने ज़ख्म खाये।
रोते रोते सो गया है।।
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आने वाले कल की सोचो।
हो गया जो हो गया है।।
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गुलशने हस्ती में “अनवर”।
कौन काॅंटे बो गया है।।
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मुक़द्दर*भाग्य
जहाने-रंगो-बू*रंग और खुशबू की दुनिया
गुलशने हस्ती*जीवन रूपी उपवन
शकूर अनवर
9460851271
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