
-देवेंद्र यादव-

नेता का असल व्यक्तित्व क्या होता है, इसकी झलक 15 अगस्त को देखने को मिली। मौका था लाल किले के रास्ते पर बिछी लाल कालीन पर देश के दो बड़े नेताओं को वॉक वॉक करते हुए देखने का।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री के रूप में लाल किले पर लगातार 11वीं बार झंडा फहराने का इतिहास रचने के लिए पहुंचे। दूसरी तरफ कांग्रेस के नेता राहुल गांधी पहली बार लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता बनने के बाद लाल किले के झंडा समारोह में पहुंचे थे।
भाजपा सत्ता ने राहुल गांधी से भले ही उनका सम्मान और अधिकार छीना, उन्हें 15 अगस्त के समारोह में ओलिंपिक खिलाड़ियों के पीछे वाली कुर्सी पर बैठाया, मगर राहुल गांधी देश के लोगों के दिलों में बैठे हुए नजर आए। देशभर में नरेंद्र मोदी के 90 मिनट के भाषण की चर्चा की जगह राहुल गांधी के अपमान पर चर्चा होने लगी।
रेड कारपेट से लेकर राहुल गांधी की खामोशी ने 15 अगस्त को देश भर में खूब सुर्खियां बटोरी। लोग बातें करने लगे कि राहुल गांधी सही कहते हैं प्रधानमंत्री मोदी उनसे आंख से आंख मिलाने से डरते हैं, शायद इसीलिए राहुल गांधी को मंत्रिमंडल के सदस्यों के साथ नहीं बैठा कर ओलिंपिक खिलाड़ियों के पीछे वाली कुर्सी पर बैठाया।
राहुल गांधी अक्सर कहते हैं भाजपा के नेता मेरा चाहे जितना अपमान कर लें या मजाक बना दें मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। राहुल गांधी की यह बात 15 अगस्त को लाल किले पर स्वतंत्रता दिवस समारोह में भी दिखाई दी। जब राहुल गांधी ओलिंपिक खिलाड़ियों के साथ बैठकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण को गंभीरता से सुनते हुए नजर आए। जब राहुल गांधी लाल किले के रास्ते पर बिछे रेड कारपेट पर चल रहे थे, तब ऐसा लग रहा था जैसे राहुल गांधी लाल किले का अवलोकन कर रहे हों।
राहुल गांधी देश की एक ऐसी शख्सियत है जिसके पिता राजीव गांधी, दादी श्रीमती इंदिरा गांधी और नाना पंडित जवाहरलाल नेहरू लाल किले की प्राचीर से झंडा फहरा चुके हैं।
लाल किले पर सर्वाधिक झंडा रोहण करने का रिकॉर्ड और इतिहास भी राहुल गांधी के परिवार जनों के पास है। लाल किले से एक बार फिर से सवाल खड़ा हुआ कि भाजपा के रणनीतिकार 2024 के लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के बाद भी यह क्यों नहीं समझ पा रहे हैं कि राहुल गांधी को नीचा दिखाने से राहुल गांधी और कांग्रेस को नुकसान नहीं हो रहा है बल्कि इससे नुकसान मोदी और भारतीय जनता पार्टी को अधिक हो रहा है। इसका उदाहरण 15 अगस्त 2024 सामने है लंबा भाषण देने के बाद भी देश में चर्चा प्रधानमंत्री के भाषण से ज्यादा राहुल गांधी को पीछे की पंक्ति में बैठाने पर हुई। और राहुल गांधी ने इस घटना से देश के लोगों के दिलों में एक बार फिर से बड़ी जगह बनाई।
लगता है अब भाजपा के पास राहुल गांधी को कमजोर करने के लिए ना तो कोई ठोस रणनीति बची है और ना ही कोई मजबूत रणनीतिकार हैं। बल्कि अब राहुल गांधी को भाजपा के नेता जितना छेड़ेंगे राहुल गांधी की राजनीतिक ताकत उतनी ही अधिक मजबूत होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)