राजस्थान भाजपा नेताओं को हाई कमान का ज्यादा दखल रास नहीं आ रहा

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जोधपुर स्थित राजस्थान उच्च न्यायालय के प्लेटिनम जयंती समारोह में पीएम नरेन्द्र मोदी के साथ चर्चा करते राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल। फोटो सोशल मीडिया

-देवेंद्र यादव-

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-देवेंद्र यादव-

राजस्थान में 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जीत कर सत्ता में वापसी की मगर मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर चले विवाद के कारण लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश की 11 सीट गंवा दी। इससे विधानसभा चुनाव की जीत की खुशी काफूर हो गई। लोकसभा चुनाव में 11 सीट गंवाने की कुंठा पार्टी हाई कमान को अभी भी महसूस हो रही है। हाई कमान इस कुंठा से उभरने का प्रयास भी करता नजर आ रहा है मगर हाई कमान की कुंठा प्रदेश के नेताओं को अब कुछ ज्यादा ही कुंठित करने में लगती महसूस हो रही है।
प्रदेश भाजपा के छत्रप नेताओं को पार्टी हाई कमान का प्रदेश की राजनीति में ज्यादा दखल रास नहीं आ रहा है। भाजपा के कार्यकर्ता हाई कमान के बढ़ते दखल की खिलाफत करते देखे जा सकते हैं। 25 अगस्त को करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने सड़कों पर आकर भाजपा के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ से इसकी शिकायत की और कहा कि हम भाजपा के कार्यकर्ता हैं। हम भाजपा के राष्ट्रीय प्रभारी डॉक्टर राधा मोहन अग्रवाल का राजस्थान की राजनीति में ज्यादा दखल नहीं चाहते। राधा मोहन को यहां से हटाया जाए।
करणी सेना के नेताओं ने पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौड़ के अपमान का विरोध करते हुए यह मांग रखी थी। अब सवाल उठता है कि क्या पार्टी हाई कमान राजस्थान भाजपा की राजनीति को समझ नहीं पा रहा है। यदि राजस्थान भाजपा की राजनीति की बात करें तो राजस्थान वह प्रदेश है जहां भाजपा ने पहली बार अपनी दम पर किसी राज्य में अपनी सरकार बनाई थी। यह सरकार के बनाने में भैरो सिंह शेखावत की भूमिका अहम थी। पूर्व उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत प्रदेश के राजपूत समुदाय से थे। प्रदेश में भाजपा की मजबूती और गढ़ होने का मुख्य कारण भैरो सिंह शेखावत और श्रीमती वसुंधरा राजे थी। जिनके दम पर प्रदेश में भाजपा हमेशा मजबूत रही। मगर 2023 के विधानसभा चुनाव में पार्टी हाई कमान ने श्रीमती वसुंधरा सहित राजपूत समुदाय की उपेक्षा कर ब्राह्मण को मुख्यमंत्री बना दिया।
राजपूत नेताओं और उनके समुदाय में इस अपमान की कुंठा अभी भी बरकरार है। इस कुंठा का नुकसान भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनाव में झेलना पड़ा।
वसुंधरा के बाद भाजपा के भीतर दूसरे बड़े नेता राजेंद्र सिंह राठौड़ थे जो मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे। वह विधानसभा का चुनाव हार गए। उम्मीद थी कि पार्टी हाई कमान उत्तर प्रदेश के केशव प्रसाद मौर्य की तरह राजेंद्र राठौड़ को भी एडजेस्ट करेगा। मगर ऐसा होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। गत दिनों पार्टी हाई कमान ने राज्यसभा की एक सीट के लिए पंजाब कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होकर केंद्र में मंत्री बने नेता बिट्टू को राज्यसभा प्रत्याशी बनाकर राजस्थान से नामांकन भरवा दिया। पार्टी हाई कमान के पास राजस्थान में राजपूत राजनीति को साधने के लिए केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत मौजूद हैं मगर शायद हाई कमान गजेंद्र सिंह शेखावत का उपयोग राजस्थान की राजनीति में कम करता हुआ दिखाई दे रहा है। गजेंद्र सिंह शेखावत राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा राजे की बराबरी के नेता हैं। गजेंद्र सिंह शेखावत राजपूतों की भाजपा से नाराजगी को दूर करने की क्षमता भी रखते हैं, मगर राजस्थान में मुख्यमंत्री की कुर्सी की लड़ाई हाडोती के दो ताकतवर नेताओं के बीच होती नजर आ रही है। पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला दोनों ही नेता 2023 में मुख्यमंत्री की कुर्सी के प्रबल दावेदार थे। गत दिनों एक समारोह में वसु मैडम ने कहा था कि जिन्हें मैंने उंगली पड़कर राजनीति सिखाई आज वही मेरे खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं। राजनीतिक हल्कों में वसुंधरा राजे का यह इशारा ओम बिरला की तरफ देखा जा रहा है क्योंकि जब पार्टी हाई कमान ने भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया था तब चर्चा होने लगी थी कि भजनलाल शर्मा को ओम बिरला ने राज्य का मुख्यमंत्री बनवाया है । 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने ओम बिरला के खिलाफ जिस उम्मीदवार को अपना प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा था वह प्रहलाद गुंजल श्रीमती वसुंधरा राजे के खास सिपहसालार थे। प्रहलाद गुंजन को भारतीय जनता पार्टी ने 2023 के विधानसभा चुनाव में काफी मशक्कत के बाद भाजपा का प्रत्याशी बनाया था। मगर वह चुनाव हार गए और बाद में कांग्रेस में शामिल होकर ओम बिरला के खिलाफ लोकसभा का चुनाव लड़े। हालांकि इस बार भी उन्हें हार का सामना करना पडा। चर्चा थी कि यदि वसुंधरा चाहती तो प्रहलाद गुंजल कांग्रेस में शामिल नहीं होते और ना ही कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते।् यदि प्रहलाद गुंजल ओम बिरला के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ते तो ओम बिरला की जीत का मार्जिन भी कम नहीं होता। क्योंकि कांग्रेस के पास ओम बिरला के सामने कोई मजबूत उम्मीदवार मौजूद नहीं था जो उन्हें टक्कर दे पाता।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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