
-देशबन्धु में संपादकीय
मध्य पूर्व एशिया में एक बड़े युद्ध के बादल फिर गहराने लगे हैं जब ईरान ने इज़रायल पर बहुत बड़ा हमला बोल दिया है। बताया गया है कि ईरान ने आधे घंटे के भीतर एक के बाद एक करीब 200 बैलेस्टिक मिसाइलें इज़रायल पर बरसाईँ। हमलावर देश का यह दावा है कि 90 फीसदी मिसाइलें निशानों पर सटीक गिरी हैं। अप्रैल में ईरान द्वारा इज़रायल पर किये गये हमले की तरह यह भी एक बड़ा आक्रमण बताया जाता है। इज़रायल ने जल्दी ही इसका बदला लेने की धमकी देते हुए कहा है कि वह ईरान का हाल गज़ा की तरह कर देगा। उसने इसे ईरान की एक बड़ी ग़लती बतलाते हुए कहा है कि उसकी सेना बड़ा जवाब देने के लिये तैयार है। इज़रायल के रक्षा मंत्री योआव गैलेंट ने चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि ‘ईरान ने कोई सबक नहीं सीखा है। वह भूल गया है कि जो इज़रायल पर हमला करता है उसे भारी कीमत चुकानी पड़ती है।’
उधर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने प्रशासन की एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई है। बाइडेन की नेतन्याहू से बात होगी। हालांकि ईरान ने अमेरिका को चेतावनी दी है कि वह दखलंदाज़ी न करे। युद्ध और माहौल की उग्रता को देखते हुए प्रतीत हो रहा है कि पूरे इलाके की शांति के लिये बड़ा ख़तरा सामने है। विश्व बिरादरी को इस क्षेत्र में शांति बहाली के लिये तत्काल कदम उठाने होंगे वरना युद्ध बड़ा रूप ले सकता है। ईरान ऐसे वक़्त में लड़ाई में कूदा है जब इज़रायल पहले से ही लेबनान के साथ युद्ध में उलझा हुआ है। अन्य पड़ोसी मुल्क ख़ासकर, मिस्र, इराक आदि लड़ाई में उतर आते हैं तो स्थिति विकट हो जायेगी। अब तक इन मिसाइलों से बड़ी हानि की सूचना नहीं है पर बताया जाता है कि इससे वेस्ट बैंक में एक फिलीस्तीनी की मौत हो गयी है। सम्भवतः ईरान के हमले का आशय चेतावनी देना मात्र हो सकता है। अन्य देशों की आलोचना से बचने के लिये उसने नागरिकों पर ये हमले नहीं किये होंगे। फिर भी कहा नहीं जा सकता कि वहां नागरिक कितने सुरक्षित हैं। हो सकता है कि ईरान के अगले निशाने इज़रायल के रिहायशी क्षेत्र हों या यह भी हो सकता है कि अभी नुकसान की जानकारी सामने न आई हो।
ईरान की इस्लामिक रिव्यॉल्यूशनरी गार्ड ऑफ़ कॉर्प्स (आईआरजीसी) की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि ये हमले हमास के चीफ़ इस्माइल हानिया, हिजबुल्लाह चीफ़ हसन नसरल्लाह और आईआरजीसी के कमांडर अब्बास निलफोरोशान की मौत का बदला लेने के लिये किये गये हैं। उसके अनुसार इज़रायल के तीन सैन्य ठिकानों पर भी हमले किये गये हैं। हालांकि इसकी अभी पुष्टि नहीं हुई है। याद हो कि इसी साल अप्रैल में ईरान ने इज़रायल पर एक बड़ा हमला किया था। उसके बाद जिसे शांति समझा जा रहा था दरअसल वह ईरान द्वारा इस हमले की तैयारी का दौर था। पिछले कुछ समय के अंतराल के बाद इज़रायल मौजूदा दौर में अपने पड़ोसी मुल्कों से इतने बड़े हमले झेल रहा है और वह रक्षात्मक मुद्रा में दिखाई दे रहा है। गज़ा में उसके द्वारा किये गये भीषण हमलों में जो तबाही हुई थी उसके कारण अनेक देशों में उसके खिलाफ़ माहौल बना है। जिस प्रकार से उसने अस्पतालों (ख़ासकर बच्चों के) पर हमले किये, उसके चलते दुनिया भर की सहानुभूति फिलीस्तीन के प्रति बढ़ी है। उन देशों के नागरिक भी अपने ही देशों की सरकारों की आलोचना करते हुए इज़रायल को सैन्य मदद देना बन्द करने की मांग कर रहे हैं।
इज़रायल के चारों ओर के देश उसके खिलाफ निर्णायक जंग के मूड में दिख रहे हैं जो बड़ी लड़ाई का संकेत दे रहे हैं। पश्चिमी देश इज़रायल को मदद करना भी चाहें तो उसके नेतृत्व के लिये वे अमेरिका का मुंह देख रहे हैं। अमेरिकी प्रशासन के सामने भ्रम की स्थिति हो सकती है। पहला तो यह कि इस युद्ध में यदि वह शामिल होता है तो उसके अपने नागरिक ही विरोध कर सकते हैं। बाइडेन को भी इसलिये बहुत सोच-समझकर कदम उठाने होंगे क्योंकि इसी दिसम्बर में वहां राष्ट्रपति चुनाव हैं। फ़िलहाल उनकी डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस को बढ़त है परन्तु यदि कोई अलोकप्रिय कदम बाइडेन ने उठाया तो उसका खामियाजा उनकी पार्टी को चुनाव में उठाना पड़ सकता है।
इज़रायल को घेरे हुए जो इस्लामिक देश हैं, उनकी सेनाओं के अलावा अनेक संगठन भी हथियार तैयार किये बैठे हैं। इससे युद्ध की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है। गज़ा पट्टी एवं वेस्ट बैंक में हमास व फिलीस्तीनी इस्लामिक जिहाद, लेबनान में हिजबुल्लाह, इराक में पॉपुलर मोबिलाइजेशन फोर्सेस, बद्र व असैब अह्ल अल हक, सीरिया में अफ़गानी शरणार्थियों से बना फातेमिया ब्रिगेड, जैनबी ब्रिगेड व कुवत अल-रिधा, यमन में हूती, बहरीन में अल-अश्तार ब्रिगेड जैसे संगठन कार्यरत हैं जिनके लाखों लड़ाके हैं। अमेरिका सहित पश्चिमी देशों का समर्थन लिये बिना इज़रायल को इतने मोर्चों पर एक साथ लड़ना बहुत कठिन होगा। अगर ऐसा होता है तो अमेरिका-इज़रायल के विरोधी खेमे के देश भी इस्लामिक देशों की मदद के लिये न उतर आयें। यह सबसे बड़ा ख़तरा है। हालांकि इस वक़्त दुनिया के ज़्यादातर देश खुद ही इतने ज्यादा खस्ताहाल हो चुके हैं कि युद्ध से दूर रहना चाहेंगे। इसलिए फ़ौरी ज़रूरत इस इलाके में शांति बहाल किये जाने की है।