
-देवेंद्र यादव-

विधानसभा के चुनाव दिल्ली और बिहार में होने वाले हैं मगर मीडिया और राजनीतिक गलियारों में चर्चा उत्तर प्रदेश को लेकर हो रही है। उत्तर प्रदेश की चर्चा संभल से शुरू होकर, इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर कुमार यादव के विवादित बयान पर आकर टिक गई। मगर असल चर्चा यह है कि इन दोनों मुद्दों की चर्चा करने से राजनीतिक फायदा उत्तर प्रदेश में किस पार्टी को अधिक होगा।
संभल की घटना के बाद, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और उसके नेता अखिलेश यादव उग्र हुए और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर सड़क से लेकर संसद तक भड़के। इंडिया गठबंधन के नेता लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भी संभल जाने का प्रयास किया मगर प्रशासन ने उन्हें संभाल जाने की इजाजत नहीं दी। संभल का मुद्दा कुछ ही समय में ठंडा हो गया जब इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर कुमार यादव ने विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में भाषण दिया। इस भाषण को विवादित बयान बता कर उत्तर प्रदेश की राजनीतिक चर्चा का ध्यान संभल से हटा कर इलाहाबाद हाई कोर्ट जज यादव पर लाकर खड़ा कर दिया।
मगर सवाल वही है चर्चा से लाभ किस पार्टी को राजनीतिक रूप से मिलेगा। संभल का मुद्दा उठाने के बाद बड़ा राजनीतिक फायदा समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव को होता मगर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर कुमार यादव का बयान सुर्खियों में आने से राजनीतिक रूप से अखिलेश यादव को राजनीतिक लाभ मिलने की गुंजाइश अब कम ही दिखाई दे रही है।
लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से 37 लोकसभा सीट जीतने के बाद अखिलेश यादव को शायद यह गुमान हो गया था कि इस सबसे बडे राज्य में भाजपा सरकार से राजनीतिक रूप से वही एकमात्र नेता है जो टक्कर ले सकते हैं। वह भारतीय जनता पार्टी को विधानसभा चुनाव में हरा सकते हैं। इसका नजारा 3 दिसंबर को संसद में देखा गया जब राहुल गांधी के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन के सांसद अडानी मुद्दे को लेकर संसद परिसर के भीतर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे तब अखिलेश यादव विरोध प्रदर्शन को इग्नोर कर संसद भवन में चले गए। उन्होंने सदन संभल का मुद्दा उठाया और उसके बाद उन्होंने पत्रकारों से कहा कि उनके लिए संभल का मुद्दा अडानी मुद्दे से अधिक बड़ा है। अखिलेश यादव के इस एटीट्यूड से चर्चा तेज होने लगी की इंडिया गठबंधन टूट जाएगा।
मगर सवाल यह भी है कि उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन को लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत अखिलेश यादव या राहुल गांधी के राजनीतिक प्रभाव से मिली थी। इसकी तस्वीर भी उत्तर प्रदेश से निकलकर आई हैं जब मंगलवार को संभल पीड़ित परिवार के सदस्य राहुल गांधी से मिलने दिल्ली आए और राहुल गांधी हाथरस के पीड़ित दलित परिवार से मिलने हाथरस के गांव गए।
दोनों तस्वीरों से जाहिर होता है कि राजनीतिक पलडा राहुल गांधी का भारी है। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से समाजवादी पार्टी को जो 37 सीट मिली थी वह कांग्रेस और राहुल गांधी के बड़े योगदान के कारण मिली थी क्योंकि उत्तर प्रदेश के दलित और मुस्लिम मतदाताओं का आकर्षण कांग्रेस और राहुल गांधी के प्रति अधिक था। जिसकी झलक हाथरस और संभल की उन दो तस्वीरों में भी नजर आ रही है।
सवाल यह है कि कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश की 17 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन मात्र 6 सीट ही जीत पाई थी क्या अखिलेश यादव के पीडीए फार्मूले में से कांग्रेस को पी ने वोट नहीं किया और डी ए ने समाजवादी पार्टी को जमकर वोट किया इसलिए समाजवादी पार्टी को 37 सीट मिली।
उत्तर प्रदेश का दलित और मुस्लिम मतदाता कांग्रेस का पारंपरिक मतदाता था जो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी के संविधान बचाओ और आरक्षण बचाओ अभियान के कारण वापस कांग्रेस में आया था। जिसका फायदा समाजवादी पार्टी को मिला लेकिन क्या पिछड़ी जाति के मतदाताओं ने भी उसी तरह का मतदान कांग्रेस के पक्ष में किया था। यदि किया होता तो कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में और अधिक सीट मिलती।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)