बस टर्मिनस है अथवा सब्जीमंडी!

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ब्राडवे बस टर्मिनस में सब्जी की दुकान सजाए दुकानदार।

-विष्णुदेव मंडल-

vishnu dev mandal
विष्णु देव मंडल

चेन्नई। चेन्नई महानगर का दूसरा सबसे बड़ा बस टर्मिनस है ब्रॉडवे। जहां से प्रतिदिन सैकड़ों एमसीसी बसें एवं लाखों की तादाद में यात्री महानगर के अन्य उपनगरों के लिए आवाजाही करती है। यह बस टर्मिनस बरसों से अतिक्रमण का शिकार है।
हालांकि मद्रास उच्च न्यायालय तमिलनाडु सरकार को यहां से अतिक्रमण हटाने के लिए कई बार आदेश एवं फटकार लगा चुका है बावजूद इसके तमिलनाडु सरकार एवं तमिलनाडु सरकार के अधीनस्थ ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन इस बस टर्मिनस से अतिक्रमण हटाने में नाकामयाब रहा है। यात्रियों के अनुसार यहां अतिक्रमण स्थाई रूप इसलिए बन गए हैं कि अतिक्रमी मतदाता है, और इन अतिक्रमणकारियों का इस इलाके में भारी दबदबा है,इसलिए वोट के खातिर सरकार और चेन्नई कारपोरेशन के अधिकारी अतिक्रमणकारियों पर कार्रवाई नहीं करते सिर्फ अतिक्रमण हटाने की खानापूर्ति की जाती है।
आलम यह है कि यहां से सफर कर रहे यात्रियों को धूप से बचने के लिए छाया नहीं मिलती। बरसात के समय एमटीसी बस में बनी शेड में खड़े होने के लिए जगह नहीं मिलती। वही अतिक्रमणकारियों शेड के अंदर मीना बाजार लगाकर हर दिन हजारों रुपए का कमाई कर लेते हैं और यात्री को बैठने के लिए भी जदोजहद करनी पड़ती है।

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ब्रॉडवे बस टर्मिनस के बाहर मुख्य द्वार पर सब्जियों का दुकाने।

यहां उल्लेखनीय है कि ब्रॉडवे बस टर्मिनस मद्रास हाई कोर्ट एवं ब्रॉडवे मेट्रो स्टेशन के पास अवस्थित है। यह इलाका कई दशकों से अतिक्रमण का शिकार है। हालांकि ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन यहां पर समय-समय पर कार्रवाई करता रहा है। बावजूद इसके इस इलाके में अतिक्रमण कोढ में खाज का काम कर रही है।
एमटीसी कर्मियों को अतिक्रमण के कारण बसों की आवाजाही में बेहद मशक्कत करनी पड़ती ह एमटीसी बसों की प्रवेश और निकासी मार्ग पर सब्जियों का ठेला लगाने के कारण बसों को टर्मिनस परिसर से बाहर निकलने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अक्सर बस ड्राइवर एवं अतिक्रमणकारियों के बीच कहासुनी भी हो जाती है।
उल्लेखनीय है कि ब्रॉडवे ब्रस टर्मिनस मद्रास हाई कोर्ट एवं ब्रॉडवे मेट्रो स्टेशन के समीप है साथ ही ब्रॉडवे पर बस टर्मिनस के अंदर पुलिस चौकी भी स्थापित है बावजूद भी यहां अतिक्रमण का साम्राज्य स्थापित है। सरकार को वोट की चिंता है और यात्रीगण धूप और बारिश से रूबरू होते ही रहते हैं। इनकी विवशता है कि ये अपने अधिकार के लिए लड़ नहीं सकते।
(लेखक तमिलनाडु के स्वतंत्री पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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