
– विवेक कुमार मिश्र

चाय केवल रंग नहीं होती न केवल स्वाद होती है बल्कि चाय अपने भीतर ही जीवन का पूरा स्वाद लिए होती है । जब कभी हम सब चाय पीने निकलते हैं तो केवल चाय पीने भर के लिए नहीं निकलते बल्कि चाय के संग साथ चाय के रंग में जीवन को ही खोजने चल देते हैं । अक्सर दुनिया चाय के रंग पर लौट आती है। आप कहीं भी चले जाएं चाय की दुनिया और चाय की थड़ियां आपके आस पास ही होता है ।
एक चाय जब स्वाद और अर्थ को अपने रंग में लेकर आ जाती है तो चाय पीने का अर्थ ही अलग हो जाता है। चाय अपने रंग, अपने स्वाद और अपनी चमक भरी उमंग से जीवन में रस , स्वाद घोल देती है। इस स्वाद के साथ मन चला जाता है। मन का चाय के रंग में रंग जाना सही मायने में चाय की कथा ही होती है। जब अपने पके हुए रंग और स्वाद में इस तरह घुली हुई मिलती है कि चाय पीते ही केवल चाय के स्वाद से ही नहीं चाय के रंग और रूप से साक्षात्कार हो जाता है। जब चाय अच्छी तरह से पक जाती है तो चाय पीने का स्वाद अनूठा ही मिलता है। चाय पीते ही मन वाह वाह कर उठे फिर क्या कहना ऐसी चाय कभी कभी ही मिलती है पर जब भी इस तरह की चाय मिलती है तब मन पूरी तरह से चाय के रंग में रंग जाता है। इस तरह की चाय आह्लादित करती है और वर्षों तक मन पर छायी रहती है। चाय अच्छी बन जाएं और चाय को आनंद लेकर बढ़िया से पीया जाता है तो यह मन की संतुष्टि होती है। चाय के साथ हमारा पूरा जीवन चक्र ही घूमते हुए चल पड़ता है।