
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

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नहीं कुछ भी, मगर कुछ तो हुआ है।
ये किस का दिल यहाँ टूटा पड़ा है।।
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तुम्हारे ख़्वाब तुमको ही मुबारक।
हमें तो रात भर का जागना है।।
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इसी बुत से तो हम टकरा गये थे।
यही बुत अब हमारा देवता है।।
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सो हम भी लेके महरूमी चले हैं।
तेरी दुनिया ने किसको क्या दिया है।।
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वो देखो सामने सूखा शजर* है।
वही मैं हूंँ, वही मेरा पता है।।
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इन्हीं लहरों पे चढ़कर पार उतरो।
फ़क़त*इनका ही अब इक आसरा है।।
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बचा लेगा मुझे फिर डूबने से।
वही तो इक समन्दर-आशना* है।।
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धड़कता है मगर ये दिल तो अब भी।
नहीं मालूम किस से राब्ता* है।।
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मुहब्बत की अलग मंज़िल है “अनवर”।
मुहब्बत का अलग ही रास्ता है।।
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शजर*पेड़
फ़क़त*केवल
समन्दर-आशना*समन्दर से परिचित
राब्ता*तअल्लुक़,संबंध
शकूर अनवर
9460851271

















