वोटर का अधिकार यात्रा की भीड़ को वोट में तब्दील कर पाएंगे राहुल!

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-देवेंद्र यादव-

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देवेन्द्र यादव

कांग्रेस द्वारा अनुसूचित जाति जनजाति ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्ग में नई लीडरशिप डेवलप करने के लिए, 2022 में राजस्थान से अभियान चलाया था। राजस्थान से ही लीडरशिप डेवलपमेंट मिशन देश की राजनीति में सुर्खियों में आया था। लग रहा था कि राहुल गांधी कांग्रेस के भीतर नई लीडरशिप डेवलप करके कांग्रेस को मजबूत करेंगे। गांधी परिवार के भरोसेमंद नेता झारखंड के राष्ट्रीय प्रभारी के राजू के नेतृत्व में राजस्थान में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी और माइनॉरिटी में नई लीडरशिप डेवलप करने के लिए विधानसभा क्षेत्र, जिला संभाग और प्रदेश स्तर पर कार्यशालाएं लगाई गई। यह सफल भी रही। कार्यशालाओं की सफलता ने अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी और माइनॉरिटी के लोगों और कार्यकर्ताओं में उम्मीद जगाई। कांग्रेस के भीतर वर्षों से कुंडली मारकर बैठे नेताओं की छुट्टी नई लीडरशिप डेवलप होने की उम्मीद जगी। लेकिन दलित, आदिवासी, पिछड़ा और माइनॉरिटी वर्ग के लोगों और कार्यकर्ताओं का सपना 2023 के विधानसभा चुनाव में उस समय ही चकनाचूर हो गया जब सत्ता और संगठन पर कुंडली मारकर बैठे नेताओं ने टिकटों की बंदर बांट कर ली। जबकि राहुल गांधी ने प्रत्याशियों की सूची देखकर एतराज भी किया था। राजस्थान के नेताओं और चयन समिति के सदस्यों की दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय में बैठक भी बुलाई थी। राहुल गांधी के सामने सभी नेता उपस्थित भी हुए मगर ऐन वक्त पर राहुल गांधी को प्रेस कांफ्रेंस के बहाने जयराम रमेश बैठक से ले गए और उसके बाद राहुल गांधी ने बैठक नहीं ली। टिकटों कि बंदर बांट के कारण राजस्थान में कांग्रेस ने सरकार गंवा दी। राहुल गांधी का ड्रीम प्रोजेक्ट लीडरशिप डेवलपमेंट मिशन जमीन पर कामयाब होता नजर नहीं आ रहा है। चाहे वह लीडरशिप डेवलपमेंट मिशन हो या फिर कांग्रेस संगठन सृजन अभियान हो, दोनों ही अभियान फेल होते हुए नजर आ रहे हैं। राहुल गांधी ने संगठन सृजन अभियान की शुरुआत उत्तर प्रदेश से की थी। वहां जब जिला अध्यक्षों की घोषणा हुई तो विवाद खड़ा हुआ। विवाद आज भी जारी है। इसके बाद मध्य प्रदेश में भी उत्तर प्रदेश को दोहराया गया। जिला अध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर कार्यकर्ताओं ने आपत्ति और नाराजगी जाहिर की। सवाल यह है कि राहुल गांधी के कांग्रेस को मजबूत करने वाले ड्रीम प्रोजेक्ट विवादों के घेरे में क्यों आ रहे हैं। क्या राहुल गांधी योजना बनाकर भूल जाते हैं। या राहुल गांधी के इर्द-गिर्द कुंडली मारकर बैठे नेता उन्हें भटका देते हैं।
अक्सर देखा गया है, सत्ता और संगठन के भीतर जब भी नियुक्तियां होती हैं तब राहुल गांधी दिल्ली से बाहर होते हैं। चाहे वह विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों के चयन की बात हो या फिर संगठन में जिम्मेदारी वाले पदों पर नियुक्तियो की। कांग्रेस के भीतर बैठे चंट चालाक नेता राहुल गांधी के दिल्ली से बाहर होते ही महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियां कर देते हैं।
राहुल गांधी बिहार में वोटर का अधिकार यात्रा निकाल रहे हैं, ठीक इसी समय मध्य प्रदेश में जिला अध्यक्षों की, विदेश मामलों के विभाग में अध्यक्ष और राजस्थान में अनुसूचित जाति के अध्यक्ष की घोषणा हो गई। इन घोषणाओं में राहुल गांधी का विशेष अभियान लीडरशिप डेवलपमेंट मिशन और कांग्रेस संगठन सृजन अभियान की झलक बिल्कुल भी नजर नहीं आई, क्योंकि जिन नेताओं को संगठन में जिम्मेदारी दी है वह पहले से ही सत्ता और संगठन मैं मलाई खाते आ रहे हैं।
अब बड़ा सवाल यह है कि 1 सितंबर को राहुल गांधी की बिहार में वोटर का अधिकार यात्रा समाप्त हो जाएगी। इसके बाद राहुल गांधी बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर, क्या रणनीति बनाएंगे। राहुल गांधी ने ही कहा था कि उनकी जनसभा और रोड शो में भीड़ तो नजर आती है मगर भीड़ वोट में तब्दील क्यों नहीं होती। क्यों कांग्रेस चुनाव हार जाती है। इसकी मुख्य वजह प्रत्याशियों का चयन है। कांग्रेस के भीतर बैठे चालाक रणनीतिकार और प्रत्याशी चयनकर्ता राहुल गांधी को यात्राओं में उलझा देते हैं और अपने मन मुताबिक टिकटों का वितरण कर देते हैं। राहुल गांधी को खुद बिहार में प्रत्याशियों का चयन कर सूची जारी करनी होगी तब ही वोट का अधिकार यात्रा सफल नजर आएगी। वरना राहुल गांधी एक बार फिर से यह कहते हुए सुनाई देंगे की जन सैलाब तो नजर आया मगर कांग्रेस को वोट क्यों नहीं पड़ा। राहुल गांधी को अपनी वोट अधिकार यात्रा समाप्त करने के बाद दिल्ली में बैठकर बिहार को लेकर आगे की रणनीति तैयार करनी चाहिए ना की अपने इर्द-गिर्द बैठे चतुर चालाक नेताओं की बातों में आकर अन्य यात्रा पर निकलने की। वह इस मुगालते में ना रहें कि बिहार में उनकी यात्रा में जो भीड़ दिखाई दे रही थी,वह विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में वोट करेगी।
देवेंद्र यादव, कोटा राजस्थान,मोबाइल नंबर, 9829678916
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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