
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

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दिलों में नफ़रतें भरने से कौन रोकेगा।
इन आफ़तों* को गुज़रने से कौन रोकेगा।।
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ये बात सच है ज़माना मुझे डुबो देगा।
फिर उसके बाद उभरने से कौन रोकेगा।।
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तुम्हें मिला है ज़माने में इक अलग यौवन।
तुम्हारा हक़* है सॅंवरने से कौन रोकेगा।।
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तुम्हारे जिस्म के आगे किसी की ताब नहीं।
तुम्हारे दिल में उतरने से कौन रोकेगा।।
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ये उसका अपना मुक़द्दर है उसको क्या कहिये।
खिला जो फूल बिखरने से कौन रोकेगा।।
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निकालना है समन्दर से गोहरे-नायाब*।
मैं देखता हूॅं उतरने से कौन रोकेगा।।
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तुम अपने घर को बचाओगे किस तरह “अनवर”।
तुम्हें फ़साद* में मरने से कौन रोकेगा।।
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शब्दार्थ:-
आफ़तों*मुसीबतों हादसों
हक़*अधिकार
गोहरे-नायाब*अनमोल रत्न
फ़साद*दंगा,लड़ाई झगड़ा
शकूर अनवर
9460851271