ये उसका अपना मुक़द्दर है उसको क्या कहिये। खिला जो फूल बिखरने से कौन रोकेगा।।

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फोटो अखिलेश कुमार

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

shakoor anwar
शकूर अनवर

*
दिलों में नफ़रतें भरने से कौन रोकेगा।
इन आफ़तों* को गुज़रने से कौन रोकेगा।।
*
ये बात सच है ज़माना मुझे डुबो देगा।
फिर उसके बाद उभरने से कौन रोकेगा।।
*
तुम्हें मिला है ज़माने में इक अलग यौवन।
तुम्हारा हक़* है सॅंवरने से कौन रोकेगा।।
*
तुम्हारे जिस्म के आगे किसी की ताब नहीं।
तुम्हारे दिल में उतरने से कौन रोकेगा।।
*
ये उसका अपना मुक़द्दर है उसको क्या कहिये।
खिला जो फूल बिखरने से कौन रोकेगा।।
*
निकालना है समन्दर से गोहरे-नायाब*।
मैं देखता हूॅं उतरने से कौन रोकेगा।।
*
तुम अपने घर को बचाओगे किस तरह “अनवर”।
तुम्हें फ़साद* में मरने से कौन रोकेगा।।
*
शब्दार्थ:-

आफ़तों*मुसीबतों हादसों
हक़*अधिकार
गोहरे-नायाब*अनमोल रत्न
फ़साद*दंगा,लड़ाई झगड़ा

शकूर अनवर
9460851271

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