
नेत्रदान सिर्फ एक व्यक्ति की जिंदगी को रोशनी नहीं देता, यह देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करता है। एक शोध के अनुसार, भारत में एक अंधे व्यक्ति के रखरखाव पर हर महीने करीब 1000 रुपये खर्च होते हैं, और अंधेपन के कारण हर साल 800 करोड़ रुपये का उत्पादन प्रभावित होता है।
-नेत्रदान पखवाड़ा (आई डोनेशन फोर्टनाईट) 25 अगस्त से 8 सितम्बर, 2025 के अवसर पर
-नेत्रदान का संकल्प लेंवें, मुत्यु के बाद मृत्युंजय बनें
-डाॅ. सुरेश कुमार पाण्डेय

आँखें, जो हमें दुनिया की रंगीन तस्वीरें दिखाती हैं, जो हर सुबह सूरज की किरणों को हमारे आँखों के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुँचाती हैं, हमें उजाले का अहसास कराती हैं। क्या आपने कभी सोचा कि यही आँखें किसी और की जिंदगी में भी उजाला ला सकती हैं? नेत्रदान पखवाड़ा, जो हर वर्ष 25 अगस्त से 8 सितंबर तक मनाया जाता है, हमें यही प्रेरणा देता है—एक ऐसा संकल्प लेने की, जो मृत्यु के बाद भी किसी को रोशनी का तोहफा दे सके।
सोचिए, अगर कुछ पल के लिए हम अपनी आँखें बंद कर लें, तो दुनिया कितनी अंधकारमय लगती है। अब जरा कल्पना करें, उस इंसान की, जिसके लिए यह अंधेरा हमेशा का साथी बन जाता है। विश्व में हर पाँच सेकंड में एक वयस्क और हर मिनट में एक बच्चा अंधेपन का शिकार हो रहा है। भारत में करीब एक करोड़ 80 लाख लोग दृष्टिहीनता से जूझ रहे हैं, और इनमें से लगभग एक लाख 20 हजार लोग कॉर्नियल अंधता से पीड़ित हैं। कॉर्निया, हमारी आँख का वह पारदर्शी हिस्सा, जो रोशनी को अंदर ले जाता है, जब खराब हो जाता है, तो जीवन अंधेरे में डूब जाता है। लेकिन एक छोटा-सा कदम, नेत्रदान, इस अंधेरे को मिटा सकता है।
भारत में हर साल करीब 25 से 30 हजार नेत्र रोगी कॉर्नियल अंधता से ग्रसित हो रहे हैं, और इनमें से अधिकांश रोगी कॉर्निया प्रत्यारोपण से अपनी रोशनी वापस पा सकते हैं। लेकिन इसके लिए चाहिए कॉर्निया, जो केवल नेत्रदान से ही मिल सकता है। हर साल हमें ढाई लाख कॉर्निया की जरूरत है, पर दान में मिलते हैं सिर्फ 50 हजार कॉर्निया। जागरूकता की कमी और अंधविश्वास इस कमी का कारण है। लोग डरते हैं कि नेत्रदान करने से अगले जन्म में वे अंधे हो जाएंगे। लेकिन यह महज एक भ्रांति है। नेत्रदान न केवल धर्म के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह एक महान पुण्य है। ऋषि दधीचि ने अपनी अस्थियों का दान किया था, तो क्या हम अपनी आँखों का दान कर किसी की जिंदगी नहीं संवार सकते?
नेत्रदान की प्रक्रिया बेहद सरल है। मृत्यु के छह घंटे के भीतर नजदीकी आई बैंक को सूचना दें। प्रशिक्षित विशेषज्ञ आपके घर आकर कॉर्निया निकाल लेते हैं, और मृतक के चेहरे की सुंदरता बरकरार रखने के लिए विशेष आर्टिफिशियल शैल लगा देते हैं। यह पूरी प्रक्रिया मुफ्त है और इसमें सिर्फ 10 मिनट लगते हैं। कोई भी स्वस्थ कॉर्निया, जो 1 वर्ष से 80 वर्ष के उम्र के व्यक्ति की हो, दान की जा सकती है। डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, या हृदय रोग से मृत व्यक्ति की आँखें भी काम आ सकती हैं, बशर्ते उनमें कोई वायरल या अन्य गंभीर संक्रमण न हो।
कॉर्निया प्रत्यारोपण, जिसे केराटोप्लास्टी कहते हैं, एक ऐसी शल्य क्रिया है, जिसमें दान की गई आँख का कॉर्निया मरीज की खराब कॉर्निया से बदल दिया जाता है। आज की आधुनिक तकनीक इतनी उन्नत है कि एक कॉर्निया से तीन रोगियों की आँखें रोशन हो सकती हैं। फिर भी, समाज में भ्रांतियाँ बनी हुई हैं—लोग सोचते हैं कि आँखें निकालने से चेहरा बिगड़ जाता है, या पूरी (समूची) आँख प्रत्यारोपित की जाती है। सच तो यह है कि सिर्फ आँखों का पारदर्शी हिस्सा (कॉर्निया) निकाला जाता है, और मृतक चेहरा वैसा ही रहता है।
नेत्रदान सिर्फ एक व्यक्ति की जिंदगी को रोशनी नहीं देता, यह देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करता है। एक शोध के अनुसार, भारत में एक अंधे व्यक्ति के रखरखाव पर हर महीने करीब 1000 रुपये खर्च होते हैं, और अंधेपन के कारण हर साल 800 करोड़ रुपये का उत्पादन प्रभावित होता है। अगर हम सब मिलकर नेत्रदान को बढ़ावा दें, तो न केवल लाखों जिंदगियाँ रोशन होंगी, बल्कि देश का आर्थिक बोझ भी कम होगा।
भारत का पड़ोसी देश, श्रीलंका नेत्रदान के मामले में दुनिया में अग्रणी है, क्योंकि वहाँ जागरूकता और सामाजिक स्वीकार्यता है। भारत भी यह मुकाम हासिल कर सकता है, अगर हम अंधविश्वास को छोड़कर नेत्रदान का संकल्प लें। सोचिए, अगर हर मृत व्यक्ति की आँखें दान की जाएँ, तो भारत में कॉर्नियल अंधता खत्म हो सकती है। यह एक ऐसा दान है, जो मृत्यु के बाद भी आपको अमर बना सकता है।
आइए, इस नेत्रदान पखवाड़े में हम सभी सामूहिक संकल्प लें कि हम न केवल खुद नेत्रदान करेंगे, बल्कि दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करेंगे। आँखें दान कर, किसी की जिंदगी में उजाला बिखेरें, और मृत्यु के बाद भी मृत्युंजय बनें।
डाॅ. सुरेश कुमार पाण्डेय
वरिष्ठ नेत्र सर्जन, कोटा
पूर्व अध्यक्ष, कोटा डिवीजन नेत्र सोसायटी , कोटा
अनेकों मेडिकल पुस्तकों के लेखक, साईक्लिस्ट,
आई बैंक सोसायटी राजस्थान कोटा चेप्टर के काॅर्डिनेटर