
-देवेंद्र यादव-

बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में 70 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस को मात्र 19 सीटों पर कामयाबी मिली। इस बेहद खराब प्रदर्शन को लेकर, कांग्रेस पर बिहार में सत्ताधारी गठबंधन जेडीयू और भारतीय जनता पार्टी के नेता ही नहीं बल्कि गठबंधन दल राजद के नेता भी कोस रहे थे। खुद तेजस्वी यादव भी कांग्रेस पर तंज करते थे कि कांग्रेस बिहार में कमजोर है। उसकी कमजोरी की वजह से बिहार में महागठबंधन सरकार बनाने से चूक गई। यदि कांग्रेस को राजद 70 विधानसभा सीट नहीं देती और खुद ज्यादा सीटों पर लड़ती तो 2020 में बिहार में राजद की सरकार होती और मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव होते। 2024 के लोकसभा चुनाव में, इसी धारणा के आधार पर राजद ने कांग्रेस को लोकसभा की कम सीट लड़ने को दी। ज्यादा सीटों पर राजद स्वयं चुनाव लड़ी। मगर कांग्रेस ने राजद से बेहतर प्रदर्शन करते हुए कम सीटों पर लड़कर तीन लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज करके उन नेताओं को जवाब दिया जो कांग्रेस को कमजोर समझ रहे थे। बिहार में चुनाव में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन को लेकर शायद कांग्रेस हाई कमान और राहुल गांधी भी विरोधियों और बिहार कांग्रेस पर कुंडली मारकर बैठे नेताओं के बुने जाल में फंसते नजर आ रहे थे। वह समझ रहे थे कि बिहार में कांग्रेस कमजोर है। लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली कामयाबी ने राहुल गांधी को बिहार में कांग्रेस की वास्तविक स्थिति क्या है, इसे देखने समझने और जानने की प्रेरणा दी। राहुल गांधी ने बिहार की तरफ कूच किया और विधानसभा चुनाव की घोषणा होने से पहले सात बार बिहार के दौरे किए। राहुल गांधी ने बिहार कांग्रेस में तीन बड़े बदलाव किए।

राहुल गांधी की सक्रियता ने कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं और कांग्रेस के पारंपरिक मतदाताओं की जाकर हिम्मत बंधी। कार्यकर्ताओं को दी गई उसी हिम्मत का परिणाम है कि जब राहुल गांधी ने बिहार के सासाराम से अपनी वोटर का अधिकार यात्रा शुरू की तो उनके साथ हजारों की संख्या में कांग्रेस कार्यकर्ता और पारंपरिक मतदाताओं का हजूम चल पड़ा। राहुल गांधी की वोटर का अधिकार यात्रा में हजारों की संख्या में जब कांग्रेस का झंडा हाथ में लेकर चल रहे लोगों पर नजर पड़ती है तब पता चलता है कि कांग्रेस बिहार में खत्म नहीं हुई है। यह लोगों का भ्रम है और इस भ्रम को राजनीतिक गलियारों और मीडिया के भीतर सुनियोजित तरीके से फैलाया गया था। यदि बिहार में कांग्रेस कमजोर होती तो लोकसभा चुनाव 2024 में कम सीटों पर चुनाव लड़कर तीन सीट नहीं जीतती और राहुल गांधी की वोटर का अधिकार यात्रा भी शायद सफल नहीं होती। राहुल गांधी की वोटर के अधिकार यात्रा में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की सक्रियता को लेकर राजनीतिक पंडित हैरान हैं। समझ नहीं आ रहा है कि बिहार में जिस कांग्रेस को मृत प्राय समझ रखा था उस बिहार में कांग्रेस जिंदा कैसे हो गई। बिहार में कार्यकर्ताओं की बड़ी संख्या में उपस्थित बता रही है कि कांग्रेस बिहार में मौजूद है और ताकतवर भी है। बिहार यात्रा में राहुल गांधी को वह मिल रहा है जिसकी कल्पना लंबे समय से कर रहे थे। राहुल गांधी देश के युवाओं को अपने हक और अधिकार और संविधान की रक्षा के लिए जगाना चाहते थे। उनका बिहार में संकल्प पूरा होता नजर आ रहा है। यात्रा में युवा जोश देखकर राहुल गांधी भी जोश में नजर आ रहे हैं और भारतीय जनता पार्टी को सीधी चुनौती दे रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के नेता राहुल गांधी की बिहार यात्रा में जनता के द्वारा लगाए जा रहे नारे वोट चोर गद्दी छोड़ से इतने परेशान नहीं है जितने परेशान वह बिहार यात्रा के अपने अंतिम पड़ाव में राहुल गांधी जनता को बता रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का असली गुजरात मॉडल क्या है। गुजरात मॉडल विकास का नहीं है बल्कि मोदी का गुजरात मॉडल वोट चोरी का है। लेकिन राहुल गांधी के सामने बड़ी चुनौती वोटर का अधिकार यात्रा के समापान के बाद बिहार में विधानसभा चुनाव की घोषणा होगी। जब टिकटों का बंटवारा होगा और कांग्रेस के प्रत्याशियों की घोषणा होगी। अक्सर देखा गया है कांग्रेस जीती हुई बाजी को इसलिए हारती है क्योंकि उसके स्वयंभू नेता कांग्रेस हाई कमान को और राहुल गांधी को मुगालते में रखकर और विभिन्न कामों में उलझा कर प्रत्याशियों का चयन कर घोषणा कर देते हैं। राहुल गांधी को स्वयं इस पर ध्यान देना होगा क्योंकि बिहार में दिल्ली से जाकर कांग्रेस के टिकट के ठेकेदारों ने अपने ड़ेरे डाल लिए हैं। कांग्रेस के टिकटों के ठेकेदार हर राज्य के विधानसभा चुनाव के समय सक्रिय हो जाते हैं। यह बिहार में भी सक्रिय हैं। इस पर राहुल गांधी को सीधे नजर रखनी होगी और प्रत्याशियों का चयन और चयन के बाद के बाद प्रत्याशियों की घोषणा स्वयं अपनी मौजूदगी में करनी होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)