
– विवेक कुमार मिश्र-

रस्साकसी का खेल बड़ा ही दिलचस्प होता है। टीमें बंट जाती है और जोर अजमाइश शुरु हो जाती है। सब अपनी ओर खींचते हैं, अपनी ओर खींच लेना ही जीत जाने और ताकत का पैमाना होता है। हर टीम जो रस्साकसी में शामिल है वह जीत जाना चाहती है, यह एक तरह से सामूहिक शक्ति का प्रदर्शन होता है जिसमें सब अपना सबकुछ दांव पर लगाकर खेल रहे होते हैं। आप रस्साकसी करें और धूल धूसरित न हों यह संभव ही नहीं और आखिरी खिलाड़ी तक इस खेल में अपनी पूरी ताकत को झोंक कर रख देता है। खेल खिलाड़ी खेल रहे होते हैं और देखने वाले दर्शक का जोश हाई हो रहा होता है। दर्शक की तटस्थता इस बात में होती है कि कोई भी जीते हारे वह तो बस उसी के साथ होता है जो बढ़िया से खेलता है। इसीलिए दर्शकों का जोश उस समय देखते बनता है जब हारने वाली टीम का पलड़ा भारी हो जाता है और वह रस्साकसी में रस्सी को अपनी ओर खींच रही होती है। रस्साकसी में शामिल होना रस्साकसी के खेल को देखना एक तरह से जीवन को भी समझने जैसा ही है, जीवन क्रम में भी बहुत बार इधर से उधर जा रहे होते हैं कभी कुछ तो फिर कभी कुछ, इसी बीच जिंदगी अचानक से चमक सी जाती है। खेल और खेल भावना भी अचानक से इसी तरह से कुछ खुशियां देता है। इस खेल को देखता हूं तो बस एक बात ही समझ में आती है कि रस्साकसी का खेल केवल खेल के मैदान में ही नहीं चलता बल्कि जीवन में भी चल रहा होता है जीवन भी हर कदम पर बस खींचतान के साथ चलता रहता है । कब किसका पलड़ा भारी हो जाएं कुछ भी कहा नहीं जा सकता। बराबर से ऐसा लगता है कि कोई शक्ति है जो आपको खेल खिलाती रहती है आप सोचते कुछ और हैं और हो कुछ और जाता है। आदमी के हाथ में बहुत कुछ होता नहीं पर वह न जाने कहां से कहां तक भटकता रहता है। रस्साकस्सी जो जारी है खेल के मैदान से वह जीवन में, पथ पर और विचारों में एक साथ घूमता रहता है। कोई एक पथ या एक दुनिया या एक जैसा सोचने का तरीका नहीं होता कि आपने सोच लिया और वह पूरी दुनिया पर लागू हो गया। दुनिया तो बस पृथ्वी के साथ साथ घूमती रहती है। इस घूमती हुई दुनिया में आप अपनी उपस्थिति यदि दर्ज कराना चाहते हैं तो आपको खाली हाथ नहीं बल्कि अपने पूरे विचारों के साथ, पूरी उर्जा के साथ आना होगा । इस दुनिया में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए आपको सोचना पड़ता है, अपने विचारों के साथ चलना पड़ता है और अपने विचारों के लिए संघर्ष भी करना पड़ता है। जो विचार जो बात जो संदर्भ शक्तिशाली होते हैं वे जीवित रहते हैं। कुछ बातें कुछ विचार कुछ दिनों तक तेज गति से आगे आते हैं फिर दूसरे विचार जगह ले लेते हैं। यह एक तरह से विचार-विमर्श की रस्साकसी जैसा ही है, जो सही है जो उचित है वह टिकेगा और जो जर्जर है वह टूटेगा।
यहां कुछ भी स्थाई जैसा नहीं होता, एक तरह से दुनिया बनती बिगड़ती रहती है। दुनिया को समझने के लिए भी आदमी बहुत बार रस्साकसी को देखने लगता है। यह रस्साकसी हर कहीं हर जगह हर किसी के साथ होती रहती है। कोई भी क्यों न हो वह कुछ करें या न करें पर उसे रस्साकसी तो करवानी ही है। यहां अपना पूरा कला कौशल शुरु से आखिरी छोर तक दिखाई देता है। ऐसा भी नहीं हो सकता है कि आप चाहकर भी कुछ करा सकें। रस्साकस्सी का खेल पृथ्वी पर जबसे जीवन है तभी से वह रस्साकसी में ही उलझा है। बहुत बार आदमी रस्साकसी इसलिए करता है कि वह अपने आगे पीछे के विचारों को सुलझाते हुए यदि चलता है तो कुछ भी फरक नहीं पड़ता। रस्साकस्सी केवल रस्सी खींचने तक सीमित नहीं है। यह सब हमारी सेहत से जुड़ा मामला है। सेहत के लिए, विचार के लिए, जीवन के लिए रस्साकसी कर रहे है। आदमी को जहां जाना है तो जाएं। किसी ने किसी को कुछ नहीं कहा और दुनिया है आदमी को भ्रम में डाल कर बहुत दिनों तक बहुत सारी खुशियां लेकर बैठ जाती है । रस्साकसी चलते रहना चाहिए। मन वचन और कर्म से आदमी को रस्सी के एक तरफ रहना ही होता है। यह भी तय है कि जो रस्सी को लेकर बैठा है वह बहुत सारी उम्मीदों का पिटारा लेकर बैठा होता है। रस्सा खींचने से पहले आदमी को स्वयं को भी साधने की कला में बंधने के लिए तैयार होना पड़ता है। रस्साकसी विचारों की भी करते रहना चाहिए। जिससे मन मिले उसे खींच ले न मिले तो धकेल दें। जब किसी को धकेलते हैं तो जाहिर है कि वह गिरेगा और इस तरह से गिरेगा की बहुत दिनों तक उस जगह पर दर्द से कराहता रहता है। इस दर्द की दवा भी रस्सी है और रस्सी को छोड़कर कहीं जा नहीं सकते। यह खेल एक तरह से जीवन को तरह तरह की दक्षता से जोड़ने का काम करता है। बड़ा ही निराला खेल है। रुकता ही नहीं है। यह खेल है और खेल एक न एक क्रम लिए चलता रहता है । ऐसा लगता है कि आदमी जबसे इस पृथ्वी पर आया होगा तभी से रस्साकसी ही कर रहा है। इससे बढ़िया कोई और कार्य वह कर ही नहीं सकता। कहते हैं कि जिस किसी ने रस्साकसी नहीं की वह जीवन ही नहीं जीया। इस छोर से उस छोर तक जो आवाजाही है वह मूलतः रस्साकसी का ही परिणाम है। सारा जोर आजमाइश अपने को सिद्ध करने के लिए होता है। एक आदमी हजारों ढ़ंग से अपना खेल दिखाने के लिए चलता है। मजबूती , ताकत और शक्ति सब एक साथ रस्साकसी के संग हवा में तैर जाते हैं। वैचारिक दृढ़ता की तरह खेल भूमि में भी आदमी मन के साथ, जीवन के साथ और जोश व उमंग को लिए ऐसे चलता है कि बस उसे ही जीतना है। यह जीत जाने का जो जज्बा है वही आपको इस दुनिया में सफल बनाने के लिए काफी होता है और इस जज्बे की हर मोड़ पर जरूरत होती है। रस्साकसी मूलतः जीवन जीने का जज्बा है और इस जज्बे में सब शामिल होते हैं क्या खिलाड़ी क्या दर्शक और क्या विचार में मगन रहने वाले द्रष्टा।