
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

हाथ उसके बड़ा अनमोल गुहर* आ जाये।
जिसको इस दौर में जीने का हुनर आ जाये।।
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जिसकी मंज़िल पे मुहब्बत के दीए जलते हों।
ज़िन्दगी में कोई ऐसा भी सफ़र आ जाये।।
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कितना मुश्किल है कड़ी धूप में तन्हा चलना।
काश आ जाए तेरी राहगुज़र* आ जाये।।
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काश पढ़ले वो सितमगर* मेरे चेहरे की किताब।
काश उसको भी मेरा दर्द नज़र आ जाये।।
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सालहा- साल* के मंसूबे* बनाने वाले।
कौन कह सकता है तू शाम को घर आ जाये।।
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क़ाफ़िला अब मेरा मंज़िल पे रुकेगा “अनवर”।
अब ये ख़्वाइश* नहीं रस्ते में शजर आ जाये।।
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शब्दार्थ:-
गुहर*मोती
राहगुज़र*रास्ता
सितमगर*ज़ुल्म करने वाला, प्रेमिका
सालहा-साल*कई साल
मंसूबे*योजनाऍं
ख़्वाइश* इच्छा
शजर*पेड़
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शकूर अनवर
9460851271