
-देवेंद्र यादव-

कांग्रेस को अब उपराष्ट्रपति चुनाव के परिणाम आने के बाद सबक लेते हुए आगामी बिहार विधानसभा चुनाव पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। जो परिणाम उपराष्ट्रपति चुनाव का आया है वैसा ही बिहार में भी देखने को मिल सकता है। बिहार में भाजपा के नेतृत्व में फिर से एनडीए की सरकार बन सकती है। राहुल गांधी के करीबी रणनीतिकार या तो ख्वाबों में खोए हुए हैं या फिर ब्रह्म में जी रहे हैं। उन्हें जनता और अपने कार्यकर्ताओं से कहीं ज्यादा भरोसा भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच चल रहे कथित राजनीतिक झगड़े पर है। उन्हें मुगालता है कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक के बीच का झगड़ा कांग्रेस को राजनीतिक कामयाबी दिला देगा। मगर उनका शायद यह भ्रम एक बार फिर से उपराष्ट्रपति के चुनाव परिणाम के बाद टूट गया होगा। वैसे इसकी उम्मीद कम है कि राहुल गांधी के रणनीतिकारों का भ्रम टूटा हो क्योंकि इससे पहले भी कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने करारी हार का सामना किया है। उन विधानसभा चुनाव में भी राहुल गांधी के चुनावी रणनीतिकारों और स्थानीय राज्यों के नेताओं को भ्रम था कि भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस के बीच सब कुछ ठीक नहीं है। इसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा। मगर विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एकजुट होकर चुनाव लड़ती है और अपनी सरकार बनती हैं। जबकि कांग्रेस बिखरी हुई नजर आती है और जीती हुई बाजी को हार जाती है।
कुछ समय बाद बिहार विधानसभा के चुनाव की घोषणा होने वाली है। सवाल यह है कि कांग्रेस उपराष्ट्रपति के चुनाव की तरह भ्रम में रहेगी या फिर बिहार विधानसभा चुनाव को कैसे जीत जाए इसकी रणनीति गंभीरता से बनाएगी। यह निर्भर करता है राहुल गांधी पर। वह अपने रणनीतिकारों पर भरोसा करते हैं या फिर उन्होंने बिहार में अपनी 17 दिन की वोटर का अधिकार यात्रा में बिहार के कार्यकर्ताओं और आम जनता का मूड देखा है। राहुल गांधी के इर्द-गिर्द रहने वाले नेता और रणनीतिकार अभी तक केवल राहुल गांधी को गुमराह कर अपना राजनीतिक मकसद पूरा कर रहे हैं। राहुल गांधी के इर्द-गिर्द रहने वाले नेता और रणनीतिकार उनको भारत यात्री बनाने पर तुले हैं।
भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा के बाद, राहुल गांधी के रणनीतिकार कांग्रेस को मजबूत करने के लिए एक ही सलाह अधिक देते है कि राहुल गांधी एक बार फिर भारत जोड़ो यात्रा कर लें। राहुल गांधी की 17 दिन की बिहार यात्रा उनके सलाहकारों के दिमाग का एक हिस्सा है। शायद राहुल गांधी के सलाहकार उन्हें यही सलाह दे रहे होंगे कि एक बार फिर से बिहार की यात्रा पर निकल लो।
भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस को 2024 के लोकसभा चुनाव में जो फायदा मिला था उसके बाद राहुल गांधी को यात्रा करने की जगह दिल्ली में बैठकर आगे कांग्रेस को और अधिक मजबूत कैसे किया जाए और राज्यों के विधानसभा चुनाव कैसे जीते जाएं इस पर रणनीति बनानी चाहिए थी। इसके लिए राहुल गांधी को कांग्रेस के अपने आम कार्यकर्ताओं से लगातार मिलते रहना चाहिए था। रणनीतिकारों ने राहुल गांधी को आम कार्यकर्ताओं से मिलने की जगह उन्हें यात्राओं में व्यस्त रखा। राहुल गांधी को जहां से कांग्रेस को मजबूत करने के लिए फीडबैक मिलता वहां या तो पहुंचे नहीं या उनके इर्द-गिर्द रहने वाले नेताओं ने राहुल गांधी को उन तक पहुंचने नहीं दिया। राहुल गांधी को अब लंबी यात्रा करने की जगह आम कार्यकर्ताओं से मिलना शुरू करना चाहिए। कांग्रेस कैसे मजबूत होगी और भाजपा को कैसे हराएगी इसका फीडबैक आम कार्यकर्ता से ही मिलेगा। सवाल यह है कि कांग्रेस को बिहार चुनाव को लेकर गंभीर मंथन करना चाहिए क्योंकि राहुल गांधी ने बिहार में 17 दिन की यात्रा कर वहां के कार्यकर्ताओं और मतदाताओं के दिल में जगह बनाई है। इसका लाभ कांग्रेस को तब मिलेगा जब वह राजद के दबाव के बगैर चुनाव मैदान में उतरेगी। यह नहीं की तेजस्वी ने बोल दिया कि हम 50 से अधिक सीट नहीं देंगे। यदि ऐसा ही था तो फिर राहुल गांधी को बिहार में 17 दिन की यात्रा करने का कोई मतलब नहीं था। तेजस्वी यादव कांग्रेस को 40- 50 सीट देने की तो यात्रा से पहले ही बात कर रहे थे। जब यात्रा निकाल ही दी है तो कांग्रेस को भी बिहार में अपनी दम पर चुनाव लड़ने के लिए निकलना होगा। देखना होगा बिहार की जनता कांग्रेस को और राहुल गांधी को कितना चाहती है। राहुल गांधी की सक्रियता ने बिहार कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उनके घरों से निकालकर पार्टी को मजबूत करने में लगा दिया है।