नेपाल में फिर राजनैतिक उथल-पुथल

-देशबन्धु में संपादकीय 

भारत के पड़ोसी देश नेपाल में हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के सरकार के फ़रमान के बाद युवाओं ने सोमवार को विरोध प्रदर्शन शुरु किया, जिसने हिंसक रूप ले लिया और एक ही दिन में कम से कम 20 नौजवानों के मारे जाने की खबर है। कुछ समय पहले बांग्लादेश और श्रीलंका इन दो पड़ोसी देशों में आंदोलन हुए थे, जिसमें अराजक भीड़ ने राष्ट्रपति निवास को निशाना बनाकर तोड़-फोड़, लूटमार मचाई थी, अब वैसे ही दृश्य नेपाल से सामने आ रहे हैं। राजधानी काठमांडू समेत कई इलाकों में आगजनी, तोड़फोड़ और पथराव की घटनाएं हुई हैं। राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल के निजी आवास पर प्रदर्शनकारियों ने कब्जा कर तोड़फोड़ की और आग लगा दी। इसके अलावा प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की पार्टी के नेता रघुवीर महासेठ और माओवादी अध्यक्ष प्रचंड के घरों पर भी हमला हुआ। गृहमंत्री रमेश लेखक, कृषि मंत्री रामनाथ अधिकारी, स्वास्थ्य मंत्री समेत पांच मंत्री इस्तीफ़ा दे चुके हैं। नेपाली सेना के प्रमुख जनरल अशोक राज सिग्देल ने प्रधानमंत्री के पी ओली को सत्ता छोड़ने की सलाह दी थी, जिस पर मंगलवार दोपहर श्री ओली ने अमल किया। वैसे इससे पहले उनके इलाज के लिए दुबई जाने की खबर थी। प्रधानमंत्री के अलावा राष्ट्रपति ने भी अपना पद छोड़ दिया है।

गौरतलब है कि केपी शर्मा ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) नेपाली कांग्रेस के समर्थन से सत्ता में है, लेकिन अब नेपाली कांग्रेस की तरफ से भी सत्ता से अलग होने या अपनी सरकार बनाने का दावा करने के संकेत नहीं मिले हैं। इस बीच काठमांडू के मेयर बालेन शाह को सोशल मीडिया पर सत्ता संभालने के लिए कहा जा रहा है, जिनकी लोकप्रियता युवाओं के बीच तो है, लेकिन क्या नेपाल जैसे चुनौतियों से भरे देश को संभालने की क्षमता क्या उनमें होगी, यह बड़ा सवाल है।

गौरतलब है कि 2008 में राजशाही के खात्मे के बाद से नेपाल लोकतंत्र को सुचारू करने के लिए जूझ रहा है। राजनैतिक अस्थिरता, मतलब के गठजोड़, सत्ता की चाहत यह सब नेपाल में लोकतंत्र को ठीक से जड़ पकड़ने नहीं दे रहे हैं। जिन लोगों के हाथों में भी सत्ता रही है, वे राजशाही का विरोध तो कर रहे हैं, लेकिन अपने नेतृत्व को भरोसेमंद नहीं बना पा रहे हैं। कमजोर अर्थव्यवस्था, महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार इन सबसे जनता त्रस्त होती जा रही है। खासकर आज की पीढ़ी जिसे जेन-ज़ी कहा जाता है, उसने राजशाही के दुष्प्रभाव नहीं देखे, लेकिन जिस लोकतांत्रिक सरकार को वह देख रही है, वो उसकी उम्मीदों पर पूरी नहीं उतरी है। इसलिए इस समय नेपाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ युवाओं का गुस्सा सबसे अधिक फूटा है। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध पर नाराज़गी तो केवल आवरण है, उसके भीतर आम युवा के गुस्से का लावा उबल रहा है। यही कारण है कि सरकार ने प्रतिबंध वापस ले लिए, फिर भी आंदोलन शांत नहीं हो रहा है।

सोमवार से सोशल मीडिया पर हैशटैग नेपोकिड ट्रेंड में है। इस हैशगैट के साथ नेपाल के नौजवान अपने नेताओं के बच्चों की लग्ज़री कारें, ब्रैंडेड कपड़े, महंगी घड़ियां और विदेशी दौरे के वीडियो और फोटो वायरल कर रहे हैं। इन नौजवान का संदेश है कि आम आदमी ज़िंदा रहने के लिए संघर्ष कर रहा है और नेताओं के बच्चे हर सुख-सुविधा भोग रहे हैं। सोमवार को जब नौजवान संसद परिसर तक में पहुँच गए थे, तो इनका नारा था- हमारे टैक्स और तुम्हारी रईसी। इस तरह के नारों से जाहिर है कि आज का युवा, जिसके पास सोशल मीडिया के जरिए पूरी दुनिया की ख़बरें पहुंचती हैं, वह अब सत्ता की मनमानी या दमन को अपनी किस्मत मानकर चुपचाप सहता नहीं है, बल्कि उसके खिलाफ़ आवाज़ उठाता है। इस तरह के लगभग नेतृत्व विहीन आंदोलनों का भविष्य क्या होता है, इनमें किस तरह की अराजकता फैलती है, राष्ट्र की सुरक्षा पर सवाल खड़े होते हैं, ये सारी बातें चिंता की तो हैं, लेकिन इतिहास गवाह है कि इन चिंताओं की आड़ में युवा पीढ़ी के रोष को खारिज किया जाए तो इसके परिणाम और घातक हो सकते हैं।

फ़िलहाल नेपाल का राजनैतिक भविष्य एक बार फिर डांवडोल दिख रहा है। बेशक प्रत्यक्ष तौर पर सोशल मीडिया प्रतिबंध और अप्रत्यक्ष तौर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन खड़ा हुआ और इसमें युवा ही आगे रहे, लेकिन इसके पीछे क्या वैश्विक ताकतों का भी हाथ है, इसका विश्लेषण भी होना चाहिए। नेपाल के साथ चीन जल्द ही 10 दिन का संयुक्त सैन्य अभ्यास करने जा रहा है। भारत की सीमा से लगे नेपाल में चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश तीनों की गतिविधियों पर खुफिया एजेंसियों की निगाहें बनी रहती हैं, क्योंकि अन्य सीमाओं की अपेक्षा नेपाली सीमा का इस्तेमाल इनके लिए आसान रहता है। नेपाल में एकदम से जो आंदोलन के जरिए हिंसा भड़की है और सरकार अस्थिर हुई है, उसकी टाइमिंग पर भी सवाल उठते हैं, क्योंकि इस समय बिहार में चुनाव की हलचल है। सीमांत प्रदेश होने के कारण नेपाल की घटनाओं का असर बिहार पर पड़ना स्वाभाविक है। इस बात को लेकर सतर्क रहने की जरूरत है कि कहीं नेपाल के हालात का इस्तेमाल बिहार चुनाव को प्रभावित करने के लिए न किया जाये।

वैसे नेपाल में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के सरकार के फ़ैसले की भारत के मीडिया में काफ़ी आलोचना हुई। नेपाल को लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी का पाठ कई नामचीन एंकरों ने पढ़ा दिया, लेकिन मणिपुर, जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में न जाने कितने बार, कितने-कितने दिनों के लिए इंटरनेट काटा गया, तब यहां के लोगों के अधिकार मीडिया को याद नहीं आये। ख़ैर, फिलहाल नेपाल पर अतिरिक्त सावधानी से काम लेने की ज़रूरत है। श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अब नेपाल भारत से लगे तमाम देशों में जिस राजनैतिक अस्थिरता या सैन्य तंत्र के हावी होने का सिलसिला चल रहा है, वो याद दिलाता है कि आज़ादी के साथ जो मजबूत लोकतंत्र देश को मिला, उसकी बदौलत हम कितने चैन से रह रहे हैं।

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