आत्महत्या के प्रति दृष्टिकोण बदलें: चुप्पी तोड़ें, जीवन बचाएँ

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विद्यार्थियों को समझना होगा कि प्रतियोगी परीक्षाओं में एक असफलता जीवन का अंत नहीं है। हर असफलता ही सफलता की प्रथम सीढ़ी है। जीवन की यात्रा में ठोकरें, असफलताऐं, चुनौतियाँ ही हमें मजबूत बनाती हैं। किताबों में पढ़े गए प्रेरक प्रसंग, प्रेरणादायी कहानियाँ, दोस्ती और परिवार का साथ, आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच, ये सब हमारे लिए मानसिक मजबूती प्रदान करतें हैं।

-विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (10 सितम्बर) पर विशेष

-डाॅ. सुरेश कुमार पाण्डेय-

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डॉ. सुरेश पाण्डेय

दिनांक 10 सितम्बर 2025, विश्वभर में मनाये जाने वाले ‘‘विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस’’ की थीम है “आत्महत्या के प्रति दृष्टिकोण बदलें”। यह विषय हमें यह याद दिलाता है कि आत्महत्या (सुसाइड) कभी भी किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकती। बढ़ती आत्महत्या की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को रोकने हेतु असली समाधान संवाद है, सहयोग है और वह संवेदनशीलता है जो जीवन को नया रास्ता दिखाती है। आत्महत्या केवल एक व्यक्ति के जीवन का अंत नहीं है, बल्कि पूरे परिवार और समाज की आत्मा को चोट पहुँचाने वाली अति दुःखद त्रासदी है। सोचिए, हर 40 सेकंड में दुनिया का कोई न कोई इंसान अपनी जान ले लेता है। हर मिनट के गुजरने के साथ सैकड़ों परिवारों का सुख-चैन हमेशा के लिए छिन जाता है। आँकड़े कहते हैं कि हर वर्ष सात लाख से अधिक लोग आत्महत्या के कारण अपनी जिंदगी समाप्त कर देते हैं। लेकिन ये केवल आँकड़े नहीं हैं। इनके पीछे हैं अधूरी कहानियाँ, अधूरे सपने, टूटी हुई उम्मीदें और वो रिश्ते जो हमेशा के लिए सूने रह जाते हैं।

भारत जैसे देश में युवाओं में आत्महत्या की दर और भी अधिक चिंताजनक है। पढ़ाई का बोझ, प्रतियोगी परीक्षाओं का तनाव, बेरोजगारी की कसक, रिश्तों में असफलता या समाज का डर, ये सब मिलकर युवा पीढ़ी को पूरी तरह तोड़ देते हैं। कोचिंग करने वाले विद्यार्थियों के रहने वाले हॉस्टलों और बड़े शहरों की गलियों में ऐसी न जाने कितनी आत्महत्या के दुःखद एवं अनकही कहानियाँ बिखरी पड़ी हैं, जहाँ विद्यार्थी और युवा मुस्कान के पीछे छिपी अपनी मूक पीड़ा (साइलेंट सफरिंग) को किसी से बाँट नहीं पाते।

समाज में आज भी आत्महत्या को लेकर चुप्पी है, सुसाइड तरह का कलंक है। बहुत से लोग सोचते हैं कि सुसाइड के विषय पर बात करना गलत है, जबकि सच यही है कि बात करना ही सबसे बड़ा इलाज है। खुला संवाद, परेशानियों का तुरंत निवारण, हौसलाअफजाई और सहानुभूतिपूर्ण सुनवाई किसी की जिंदगी बचा सकती है। लेकिन अफसोस, हम अक्सर अपने ही घर के बच्चों, दोस्तों और प्रियजनों के मौन पीड़ा (साईलेंट सफरिंग) को सुन नहीं पाते। कभी उनकी चुप्पी को टाल देते हैं, कभी उनकी थकान को आलस समझ लेते हैं, और कभी उनकी मानसिक बेचैनी को छोटा मुद्दा मानकर अनदेखा कर देते हैं। लेकिन सच यह है कि कभी-कभी वही मौन जीवन के प्रति गहरी निराशा एवं मायूसी की करूण पुकार होती है एवं समय पर त्वरित कार्यवाही कर आत्महत्या जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को रोकने हेतु अति सहायक होती है।

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस वर्ष 2025 का संदेश हमें यही सिखाता है, मदद माँगना कमजोरी नहीं, साहस है। हमें यह धारणा बदलनी होगी कि आत्महत्या करने वाले लोग कमजोर होते हैं। वे कमजोर नहीं, बल्कि गहरे अवसाद, गहन निराशा, मायूसी रूपी अंधेरे में फँसे हुए होते हैं। उन्हें जरूरत होती है बस एक सहारे की, एक रोशनी की, जो उन्हें फिर से जीवन जीने की, जीवन में नई शुरूआत करने की वजह दे सके।

देश के युवाओं में, विद्यार्थियों में आत्महत्या के मामले बहुत तेजी से बढ़ें हैं. विद्यार्थियों को समझना होगा कि प्रतियोगी परीक्षाओं में एक असफलता जीवन का अंत नहीं है। हर असफलता ही सफलता की प्रथम सीढ़ी है। जीवन की यात्रा में ठोकरें, असफलताऐं, चुनौतियाँ ही हमें मजबूत बनाती हैं। किताबों में पढ़े गए प्रेरक प्रसंग, प्रेरणादायी कहानियाँ, दोस्ती और परिवार का साथ, आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच, ये सब हमारे लिए मानसिक मजबूती प्रदान करतें हैं। जैसे बुखार या सिरदर्द होने पर हम डॉक्टर के पास जाते हैं, उनसे परामर्श लेते हैं, वैसे ही मन की थकान, मायूसी, निराशा अथवा मानसिक तनाव की स्थिति में भी मानसिक विशेषज्ञ अथवा काउंसलर की मदद लेना उतना ही स्वाभाविक है।

आत्महत्या की रोकथाम केवल डॉक्टरों या सरकार अथवा कोचिंग संस्थाओं की ही जिम्मेदारी नहीं है वरन् यह पूरे समाज का दायित्व है कि जागरूकता बढ़ाकर, निराशा के दौर में सहायता प्रदान कर सामूहिक प्रयासों से आत्महत्या को हर कदम रोका जायें। परिवार, शिक्षक, मित्र, सहकर्मी, हम सबको मिलकर यह समझना होगा कि संवेदनशील बातचीत, सहानुभूति और सहयोग किसी की जिंदगी बचा सकते हैं। कभी-कभी केवल इतना कहना “मैं आपके साथ हूँ, आप अकेले नहीं हो” किसी को निराशा के अंधेरे से बाहर खींच लाता है एवं जीवन में फिर से नई शुरूआत करने की सशक्त प्रेरणा का माध्यम बन सकता है। किशोरों एवं युवाओं में आत्महत्या की रोकथाम हेतु मीडिया और सोशल मीडिया को भी इस विषय पर संवेदनशील भूमिका निभानी होगी। आत्महत्या की घटनाओं को सनसनीखेज बनाने के बजाय, हमें सकारात्मक संदेश, उम्मीद और समाधान पर जोर देना होगा।

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस हमें यह याद दिलाता है कि हर व्यक्ति का जीवन अमूल्य है। प्रत्येक व्यक्ति को ईश्वर ने अद्भुत प्रतिभा के साथ इस धरती पर किसी खास कार्य को पूरा करने के लिए भेजा है। हर व्यक्ति का होना इस दुनिया के लिए मायने रखता है। कोई भी परिस्थिति इतनी कठिन नहीं कि उसका हल जीवन के बाहर ढूँढा जाए। असली हल जीवन के भीतर ही छिपा है संवाद में, सहयोग में और उस संवेदनशीलता में, जो इंसान को इंसान से भावनात्मक रूप से जोड़ती है।

दिनांक 10 सितम्बर 2025 को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस के अवसर पर हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि हम आत्महत्या के प्रति समाज की सोच बदलेंगे। हम चुप्पी तोड़ेंगे, हम संवाद को अपनाएँगे, हम हर उस इंसान तक पहुँचने की कोशिश करेंगे जो निराश होकर भीतर से पूरी तरह टूट चुका है। हम उसे यह अहसास दिलाएँगे कि वह अकेला नहीं है, और उसकी जिंदगी बहुत कीमती है। याद रखिए, आत्महत्या केवल एक मौत नहीं होती, वह कई जिंदगियों को हमेशा के लिए अधूरा कर जाती है। अगर हम सचमुच निराश व्यक्तियों के जीवन में आशा का दीप जलाएँ, उन्हें प्रेरित कर उनके जीवन में सकारात्मकता का संचार करते हुए फिर से प्रयास करने की प्रेरणा देतें हुए प्रयास करें तो मायूस हो चुकी हजारों, जिंदगियों को आत्महत्या से बचाया जा सकता है। आइए, विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस के अवसर पर हम सब मिलकर यह दुनिया ऐसी बनाएँ जहाँ कोई भी व्यक्ति यह न सोचे कि उसकी जिंदगी बेकार है। जहाँ हर कोई यह महसूस करे कि उसके जीने का एक विशेष मकसद है। क्योंकि मनुष्य जीवन सुर-दुर्लभ है और हर जीवन हर जीवन अमूल्य है।

डाॅ. सुरेश कुमार पाण्डेय
सुप्रसिद्ध नेत्र चिकित्सक,
लेखक एवं प्रेरक वक्ता एवं साइकिलिस्ट
कोटा (राज.)

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