‘मनरेगा का रोल माॅडल बन सकता है, कुंजेड़ का पंचफल बोटेनिकल गार्डन ‘

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-धीरेन्द्र राहुल-
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धीरेन्द्र राहुल
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना ( मनरेगा) को पहली बार 2 फरवरी 2006 को देश के 200 जिलों में लागू किया गया था। इसके तहत गांव के वयस्क व्यक्ति को मांगने पर रोजगार देना होता है। अगर रोजगार नहीं दे पाते हैं तो रोजगार भत्ता देना होता है। लेकिन पिछले 19 सालों में इतने काम हुए हैं कि सैच्युरेशन पाइंट आ चुका है। गांव के रास्तों पर ग्रेवल के काम हो या तालाबों और तलाइयों को गहरा करने के, कई कई बार हो चुके हैं,
ऐसे में कुंजेड़ का पंचफल बोटेनिकल गार्डन एक ऐसा प्रयोग है जो देश के 6 लाख गांवों को हरा भरा बनाने और भरपूर फल उत्पादन का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
बारां जिले का कुंजेड़ गांव वहां के पूर्व सरपंच प्रशांत पाटनी की वजह से सुर्खियों में रहता है। चार दशक पहले जब शिवचरण माथुर मुख्यमंत्री थे, तब प्रशांत पाटनी ने बारां- बपावर रोड से कुंजेड़ गांव ( 7 किलोमीटर ) को सड़क से जोड़ने के लिए ग्रामवासियों के जत्थे के साथ कुंजेड़ से कोटा होते हुए जयपुर तक पैदल मार्च निकाला था और मुख्यमंत्री से सड़क की स्वीकृति लेकर आए थे।
सन् 1987 से 1990 के बीच मैं राजस्थान पत्रिका के ‘आओ गांव चलें’ स्तम्भ के लिए दौरा करते हुए कुंजेड़ पहुंचा था तो प्रशांत पाटनी के अनुरोध पर तीन दिन उन्हीं के घर रूका था, तब से कुंजेड़ में पाटनी ने बहुत सारे काम करवाए हैं जिसमें पंचफल बोटेनिकल गार्डन का काम मील का पत्थर है।
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प्रशांत पाटनी
प्रशांत का कहना है कि कुंजेड़ में सरकारी जमीन करीब दो हजार बीघा है लेकिन सारी जमीन दबंगों के कब्जे में है। 2016 में जब वे सरपंच बने तो लीक से हटकर कुछ करना चाहते थे। उन्होंने दो सौ बीघा चरागाह भूमि दंबगों के कब्जे से मुक्त करवाई और उस पर मनरेगा के तहत गड्ढे खुदवाकर वृक्षारोपण शुरू किया।
फिर अडानी फाऊंडेशन से सीएसआर के तहत दो सौ बीघा में फेंसिंग करवाई, ट्यूबवैल खुदवाया, दो मंजिला हट बनवाई और 800 फीट लंबी तलाई का काम हुआ। दस किलोवाट का सौर ऊर्जा का प्लाण्ट लगाया।
शुरू में पांच हजार वृक्ष लगाए थे जो अब बढ़कर 25 हजार हो गए हैं। करीब सौ से भी अधिक प्रजातियों के पौधें यहां पूर्ण विकसित हो गए हैं, जबकि यहां पहले धरती एकदम सफाचट थी। पेड़ बढ़े हुए तो सौ से भी अधिक मधुमक्खियों के छत्ते यहां बन गए हैं जो खेतों में खड़ी फसलों के परागण में सहायक साबित हो रहे हैं।
प्रशांत बताते हैं कि पहले कुंजेड़ डार्क जोन में था। भूमिगत जल स्तर 500 फीट नीचे चला गया था। नए कुएं/ ट्यूबवैल खोदने पर रोक थी। लेकिन हमने पंचफल सहित आसपास की तमाम तलाइयों को गहरा किया तो कुंजेड़ अब डार्क जोन से बाहर है।
पहले यहां पक्षियों का कोई आसरा नहीं था। बेंगलुरु के अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के दो प्रोफेसर यहां अध्ययन के लिए आए और उन्होंने सुबह एक घण्टे में 34 चिड़ियाओं के फोटो खींचे हैं। अब यहां प्रवासी पक्षी भी दिखाई देने लगे हैं।
प्रशांत का कहना था कि देश के छह लाख गांवों में चरागाह भूमि मुक्त करवाकर उसमें पंचफल जैसे गार्डन लगाए जाए तो देश फिर से हरा भरा हो सकता है।
उनका कहना था कि पिछले साल मनरेगा का बजट 86 हजार करोड़ रूपए था। उसे सिर्फ वनग्राम लगाने की दिशा में मोड़ना भर है। इसके लिए एक आदेश पर्याप्त होगा। छह लाख गांवों में छह लाख वनवाटिकाएं विकसित होंगी तो हरियाली बढ़ेंगी, देश का पर्यावरण सुधरेगा, भूजल स्तर बढ़ेगा और नाना प्रकार के लाभ होंगे।
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