विजयवर्गीय, हाडा, सनाढ्य नदी प्रहरी पुरस्कार से सम्मानित

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-स्वर्णिम वर्ष अनुभवों की अनुभूति का विस्तारक- डा राजेंद्र सिंह
-तरुण भारत संघ का स्वर्ण जयंती समारोह

भीकमपुरा/कोटा। तरुण भारत संघ के स्वर्ण जयंती अवसर पर हाड़ौती क्षेत्र से चम्बल संरक्षण पर उल्लेखनीय कार्य पर पर्यावरणविद् चंबल संसद के संयोजक बृजेश विजयवर्गीय, यज्ञदत्त हाडा एवं चम्बल की सहायक एरू नदी के पुनर्जीवित करने पर विट्ठल कुमार सनाढ्य को जल पुरुष डा राजेंद्र सिंह ने नदी प्रहरी पुरस्कार से सम्मानित किया।
अलवर जिले के भीकमपुरा में तरुण आश्रम में आयोजित राष्ट्रीय समारोह में देश में पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य करने वाले विशिष्ट लोगों को प्रशस्ति पत्र एवं दुपट्टा ओढ़ा कर सम्मानित किया गया। जनार्दन राय नागर डीम्ड यूनिवर्सिटी उदयपुर के कुलपति प्रोफेसर एस एस सारंगदेवोत ने सम्मान प्रदान किया। अभावग्रस्त क्षेत्रों में वर्षा जल संग्रहण संरचनाओं तथा नदियों को सदानीरा बनाने के लिए चम्बल संसद ने डा राजेंद्र सिंह व उनकी टीम का साफा बांध कर सम्मानित किया ‌ मेवाड़, शेखावाटी,डांग , ढूंढाड़ के अलावा देश के विभिन्न हिस्सों से आमंत्रित जल, जंगल जमीन के प्रहरियों ने अपने विचार रखे।
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तरुण भारत संघ के स्वर्ण जयंती वर्ष के अवसर पर तरुण आश्रम, भीकमपुरा में “स्वर्ण जयंती उत्सव“ का आयोजन किया गया । इसमें तरुण भारत संघ से जुड़े देश और विदेश के 500 से अधिक लोग शामिल हुए। इस अवसर पर तरूण भारत संघ के कार्य से चंबल में हुए परिवर्तन पर आधारित मराठी अखबार ‘सकाल’ के पूर्व प्रधान संपादक श्रीराम पवार द्वारा मराठी में संपादित व राजेन्द्र सिंह द्वारा लिखित पुस्तक ‘ ’निसर्ग आणि माणूस’ और दैनिक भास्कार के वरिष्ठ पत्रकार राजेश रवि द्वारा लिखित पुस्तक ‘ बागी से किसानी’ का विमोचन किया गया।
इस अवसर पर तभासं के 50 वर्षा के कार्यों की सिद्धी से जुड़े हुए 110 लोगों को जीवन रत्न सम्मान, निष्ठा-विभूषण सम्मान, कर्म-भूषण सम्मान, प्रगति-श्री सम्मान, सृजन-श्री सम्मान, नव-दीप सम्मान, प्रकृति-संवादक, नदी नायक सम्मान, नदी प्रहारी सम्मान, प्रकृति-प्रबोधक,नदी – ज्ञानी , सागर नायक, पर्वत प्रहरी और सम्मान पत्र से सम्मानित किया गया।
उत्सव का शुभारंभ सबसे पहले तरुण भारत संघ आरंभ से जुड़े हुए रमेश शर्मा ने अपने कविताओं से शुरू किया, जिसमें तरुण भारत संघ की शुरुआत और फिर तरुण भारत संघ के वर्तमान का दर्शन मिलता है।
इस अवसर पर तरुण भारत संघ की शुरुआत करने वाले जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा कि आज ही के दिन 30 मई 1975 में राजस्थान सरकार ने तरुण भारत संघ को पंजीकृत प्रमाण पत्र दिया था। इसी दिन को तरुण भारत संघ ने अपना स्थापना दिवस अब मान लिया है। वैसे तरुण भारत संघ का काम इससे पहले से ही तरुणो की टोली ने शुरू कर दिया था। अब यह माना गया कि जो दिन रजिस्टर हुआ वही स्थापना दिवस होगा। आग बाढ़ और सुखाड़ मुक्ति के काम से ही तरुण भारत संघ शुरू हुआ था। डोला गांव की बाढ़ मुक्ति, राजस्थान के गोपालपुरा की सुखाड़ मुक्ति और जयपुर विश्वविद्यालय में लगी आग में अकाल राहत कार्यों से ही तरुण भारत संघ आज दुनिया में जाना जाता है।
इस अवसर पर जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति ने कर्नल प्रो शिव सिंह सारंगदेवोत कहा कि, तभासं ने 50 वर्षों में समाज के पिछडे आर्थिक रूप गरीब लाचार, बेसहारा लोगों को जल संरक्षण के काम में लगाकर, भारतीय विरासत व ज्ञानतंत्र का संरक्षण करके नदियों और उनकी सभ्यता को पुनर्जीवित किया है।
उत्सव में शामिल सकाल अखबार के पूर्व प्रधान संपादक श्रीराम पवार ने कहा कि, मैं पिछले साल चंबल में गया था। इन्होनें चंबल की हिंसा को अहिंसा में बदलने का जो चमत्कारी काम किया है, वो अद्धभुत है; जो पूरी दुनिया को सीखने लायक है।
सर्वोदय कार्यकर्ता रामधीरज सिंह ने कहा कि, हमारे जीवन के पिछले 50 वर्षों एक मात्र संस्था देखी है जो कृतज्ञता बोध काझ अहसास अपने मन मे ंरखती है। इसलिए तभासं के साथ मिलकर दुनिया भर के काम करने वालों चित्र पत्थरों पर उकेरे गए है।
जलबिरादरी के राष्ट्रीय समन्व्यक सत्यानाराण बुल्लीसेट्टी, सुनील रहाणे, नरेन्द्र चुघ, रामाकांत कुलकर्णी, आशुतोष रामगिर, प्रवीण महाजन, अनिकेत लोहिया ने कहा कि, हमने तभासं से सीखकर प्रकृति और नदी की चेतना बढ़ाने का काम देशभर में कर रहे है।
वरिष्ठ मिडिया पत्रकार सन्नी सेबेस्टियन, गोविंद चुतर्वेदी, रवि अहुजा, नारायण बारेठ,यासीन मुहम्मद ने पानी पंचायत पुस्तक का विमोचन किया गया।
जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि, यह 50 वर्षो की यात्रा एक रेल की यात्रा है, जो अपनी पटरी पर चल रही है। उसमें बहुत सारे मुसाफिर आते हैं, चढ़ जाते हैं, सीट पर बैठ जाते हैं फिर जल्दी से स्टेशन आता है उतर जाते हैं। इस यात्रा में बहुत कम लोग होते हैं जो यात्रा के आरंभ के स्टेशन से आखरी स्टेशन तक की अपनी यात्रा करते हैं; पर तरुण भारत संघ सौभाग्यशाली रहा है कि, इस रेल के डिब्बे में बैठने वाले मुसाफिर अंतिम रेलवे स्टेशन तक सफर कर रहे हैं। आरंभ से लेकर आजतक तरूण भारत संघझ में जो अपना साध्य माना उसकी साधना करके , उसमें सिद्धि प्राप्त करने के लिए सतत रूप से जुटा हुआ है।
अब आगे की यात्रा में चलना है। स्वर्णिम वर्ष अंतिम वर्ष नहीं होता। स्वर्णिम वर्ष अनुभवों की सिद्धि का विस्तारक होता है। आज का यह 50 वर्ष संपन्न होने वाला दिन अब तरुण भारत संघ की सिद्धियों का विस्तारित बनेगा। तरुण भारत संघ ने जल संरक्षण जैसे साधारण काम से जलवायु परिवर्तन, अनुकूलन और उन्मूलन जैसे काम किए है। यह दुनिया का इस महीने में एक अकेला अनुभव है, जिसने 50 साल से एक ही रेल की पटरी के पहिया अनुभव और उत्साह दोनों पहिए अपनी रेल की पटरी पर बराबर चले। इन्होंने अपने 50 साल पूरे किए। अब इन दोनों पहियों को एक जंक्शन पर खड़े होकर, बहुत सारे स्टेशनों पर जाने वाली यात्राएं शुरू करनी है।तरुण भारत संघ ने पिछले दो दशकों में ऐसे बहुत सारे प्रदेशों में काम शुरू किए हैं लेकिन आज का दिन देश भर के लोगों के सामने तरुण भारत संघ को अपने संकल्प की साध्य की सिद्धि के लिए अपनी साधना और अपने साधनों की शुद्धि को पारदर्शिता से रखने का दिन है। इसलिए आज तरुण भारत संघ ने 50 सालों की बात स्वयं नहीं कहेगा इस सम्मेलन में जो भारत पर से लोग आए हैं वह अपने-अपने अनुभवों में कहेंगे और तरुण भारत संघ को उनके अनुभव सुनकर अपने आगे की यात्रा संयोजन प्रक्रिया को सक्रिय करेगा। तरुण भारत संघ के कामों की प्रक्रिया क्षमताओं से अधिक सक्रिय है; फिर भी और सक्रिय करने की अपेक्षा के साथ हम इस सम्मेलन में आए सब साथियों को सुनेंगे और उनके काम की सिद्धि को सम्मान करेंगे।
इस अवसर पर तभासं के निदेशक मौलिक सिसोदिया ने तभासं की यात्रा का विवरण देते हुए कहा कि, वर्ष 1975 में जयपुर, राजस्थान में तरुण भारत संघ की स्थापना भारत में सतत विकास एवं पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी। पाँच वर्ष पश्चात्, 1980 में, श्री राजेन्द्र सिंह ने संगठन के महासचिव का दायित्व संभाला। उनके कुशल नेतृत्व में तरुण भारत संघ के कार्यों ने भारत के ग्रामीण समुदायों के जीवन एवं आजीविका में उल्लेखनीय सुधार किया है, और इसने विश्वभर में समान उद्देश्यों वाली पहलों को प्रेरित किया है। वर्ष 1985 में राजस्थान के अलवर जिले के भीकमपुरा गाँव में स्थानांतरित किया गया। इस क्षेत्र में भीषण जल संकट के कारण जल संरक्षण पर संगठन का विशेष रूप से ध्यान केंद्रित रहा। अलवर में तरुण भारत संघ द्वारा पारंपरिक वर्षा जल संचयन प्रणालियों का पुनरुद्धार, जोहड़ों का निर्माण तथा लुप्त होती नदियों का पुनर्जीवन जैसे प्रयास किए गए, जिन्होंने आगे चलकर न केवल पर्यावरणीय संतुलन बहाल किया, बल्कि स्थानीय समुदायों के जीवन में भी सकारात्मक परिवर्तन लाया। वर्ष 1986 में, तरुण भारत संघ ने राजस्थान के गोपालपुरा गाँव में स्थानीय समुदाय की सक्रिय भागीदारी से पहला जोहड़ निर्माण कर जल संरक्षण की दिशा में अपने प्रयासों की शुरुआत की। जल संरक्षण के साथ-साथ तभासं ने मातृ एवं शिशु विकास, वयस्क शिक्षा, स्वास्थ्य क्लिनिक, ग्राम स्वच्छता, जैविक खेती, सुरक्षित अनाज भंडारण, और शराय निषेध जैसे अनेक सामाजिक कार्यक्रम भी प्रारंभ किए। समय के साथ इन प्रयासों ने व्यापक रुप लिया, जिसके परिणामस्वरूप अनेक जोहड़ों का निर्माण हुआ। वर्ष 1990 में, सामुदायिक सहभागिता से निर्मित 100वाँ जोहड़ इस यात्रा की एक ऐतिहासिक उपलब्धि वन गया। 1991 में, सरिस्का टाइगर रिज़र्व क्षेत्र में हो रही अवैध खनन गतिविधियों के विरुद्ध तरुण भारत संघ ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (च्प्स्) दायर की। यह एक साहसिक पहल थी, जिसने पर्यावरणीय अन्याय के विरुद्ध सामूहिक आवाज़ को स्वर प्रदान किया। 07 मई 1992 को सर्वोच्च न्यायालय ने तरुण भारत संघ के पक्ष में ऐतिहासिक निर्णय सुनाया, जिसके परिणामस्वरूप सरिस्का क्षेत्र की 465 अवैध खदानें बंद कर दी गई। इस फैसले ने न केवल क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा की, बल्कि अरावली पर्वतमाला के संरक्षण की दिशा में भी एक मील का पत्थर साबित हुआ। 1994 में, पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों के लिए तरुण भारत संघ को इंदिरा गांधी प्रियदर्शिनी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी वर्ष, पर्यावरण जागरुकता को जन-जन तक पहुँचाने के उद्देश्य से ’अरावली बचाओ चेतना पदयात्रा की। वर्ष 1996 में तरुण भारत संघ ने जल संरक्षण के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज की, जब उसके प्रयासों के फलस्वरूप भारत सरकार ने राजस्थान के थानागाज़ी ब्लॉक को ’डार्क जोन“ से “व्हाइट ज़ोन“ में परिवर्तित किया। यह परिवर्तन जल संकटग्रस्त क्षेत्र में समुदाय-आधारित संरक्षण प्रयासों की अभूतपूर्व सफलता का प्रमाण था। इसी अवधि में, तरुण भारत संघ की पहल पर अरवरी, सरसा, भगानी, टिलदेह और जहाजवाली जैसी कई लुप्तप्राय नदियाँ और नाले पुनर्जीवित हुए। 1998 में “अरवरी संसद“ की स्थापना की एक अभिनव और लोकतांत्रिक मंच जो स्थानीय जल प्रबंधन में समुदाय की भूमिका को सशक्त बनाता है। अप्रैल 1999 में जयपुर के नीमी गाँव में आयोजित राष्ट्रीय जल सम्मेलन में “जल बिरादरी“ के गठन का प्रस्ताव पारित किया गया, जिसने जल संरक्षण के राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा दी। इसी वर्ष, सामुदायिक प्रयासों से 3000वाँ जोहड़ निर्मित हुआ, जिससे अभियान को और अधिक गति मिली।

2000 में, भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति माननीय श्री के. आर. नारायणन ने तभासं द्वारा पुनर्जीवित अरवरी नदी का दौरा किया, जो संगठन के कार्य को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता का प्रतीक बना।2001 में, जल पुरुष श्री राजेन्द्र सिंह को सतत विकास एवं पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उनके असाधारण योगदान के लिए ’रैमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी वर्ष, तरुण भारत संघ द्वारा निर्मित 3500 वी वर्षा जल संचयन संरचना ने संगठन की जल संरक्षण के प्रति निरंतर प्रतिबद्धता को सुदृढ़ रूप से प्रमाणित किया। 2002 में, तरुण भारत संघ ने राष्ट्रीय जल यात्रा की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य देशभर में जल संरक्षण और सतत विकास के प्रति जनचेतना का विस्तार करना था। वर्ष 2003 में, ब्रिटेन के वेल्स के प्रिंस चार्ल्स (वर्तमान में इंग्लैंड के महाराजा चार्ल्स) ने तरुण भारत संघ के कार्यक्षेत्र का दौरा कर जल संरक्षण प्रयासों की सराहना की, जिससे संगठन को अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हुई। 2005 में “जल बिरादरी“ को औपचारिक रूप से पंजीकृत किया गया और “तरुण जल विद्यापीठ“ की स्थापना की गई, जो जल संरक्षण पर आधारित शिक्षा एवं शोध के लिए एक समर्पित संस्थान बना। इसी वर्ष, राष्ट्रीय जल यात्राओं की एक नई श्रृंखला प्रारंभ हुई, जिसने जन सहभागिता को और अधिक सशक्त बनाया। इसी वर्ष, श्री राजेन्द्र सिंह को सामाजिक सेवा हेतु “जमनालाल बजाज पुरस्कार“ प्रदान किया गया। “ग्राउंड वॉटर रेगुलेशन बिल का जन मसौदा प्रस्तुत किया-एक महत्त्वपूर्ण प्रयास जो भारत में भूजल प्रबंधन और सतत विकास की दिशा में नीति निर्माण में जनता की भागीदारी का प्रतीक बना।2006-10ः न्यायिक सफलता से राष्ट्रीय प्रभाव तक 2006 में राजस्थान के जल-संकटग्रस्त क्षेत्रों में शराब कंपनियों की भूजल दोहन संबंधी गतिविधियों के विरुद्ध राजस्थान उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की और उसमें ऐतिहासिक विजय प्राप्त की। यह निर्णय जल अधिकारों की रक्षा और जल संसाधनों के सतत उपयोग की दिशा में एक मील का पत्थर सिद्ध हुआ उसी वर्ष, ने तमिलनाडु की ओडियार नदी को बचाने हेतु अभियान प्रारंभ किया, जिसका उद्देश्य प्रदूषण और अतिक्रमण से नदी की रक्षा करना था। इसके साथ हो. ’डौला सम्मेलन’ का आयोजन कर नदियों के संरक्षण पर केंद्रित संवाद को राष्ट्रीय स्तर पर प्रोत्साहन मिला।

2008 में, ब्रिटेन के प्रतिष्ठित समाचार पत्र ने श्री राजेन्द्र सिंह को “द अर्थ को बचाने में सक्षम 50 व्यक्तियों“ में शामिल किया। इसी वर्ष, करौली ज़िले के कैलादेवी क्षेत्र में आयोजित “जल कुंभ“ एक विशाल जनसमागम बना, जिसमें जल संरक्षण और सतत विकास की दिशा में सामूहिक संकल्प प्रकट हुआ। इन्ही व्यापक प्रयासों के परिणामस्वरूप गंगा नदी को भारत की “राष्ट्रीय नदी“ घोषित किया गया। 2010 में, संगठन ने गंगोत्री क्षेत्र में ठोस कचरा प्रबंधन की अपने कार्यक्षेत्र में सम्मिलित करते हुए पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का और विस्तार किया। इस पहल ने हिमालयो पारिस्थितिकी की रक्षा और तीर्थ स्थलों की स्वच्छता को एकजुट किया।2011 में, तरुण भारत संघ ने सरिस्का क्षेत्र के आसपास स्थित 100 गाँवों में “नेचर कैप्स“ आयोजित कर पर्यावरणीय जागरुकता को जमीनी स्तर तक पहुंचाया। इसी वर्ष, नदियों की सामाजिक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिकीय महत्ता को रेखांकित करने हेतु “नदी कूच अभियान“ की शुरुआत की गई। तरुण भारत संघ ने इस दौरान राज्यों एवं केंद्र सरकार को ’राष्ट्रीय नदी नीति“ का मसौदा प्रस्तुत किया, जिसमें सतत नदी प्रबंधन की आवश्यकता को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया। 2012 में, संगठन ने “जल जन जोड़ अभियान“ का शुभारंभ किया, जो सामुदायिक सहभागिता के माध्यम से जल संरक्षण को सशक्त बनाने की दिशा में एक निर्णायक कदम था। इसी वर्ष, नदी नीति पर सार्वजनिक सुनवाई का आयोजन किया गया, जहाँ आम नागरिकों को नीतिगत संवाद में भागीदारों का अवसर मिला- यह जनभागीदारी आधारित नीति-निर्माण का एक अनुकरणीय उदाहरण बना। 2013 में ने राजस्थान में कृषि में जल के प्रभावी उपयोग पर केंद्रित कार्यक्रम प्रारंभ किया। इस पहल का उद्देश्य जल खपत में कमी लाना और जल उपयोग दक्षता को बढ़ावा देना था, जिससे खेती अधिक टिकाऊ और जल-संवेदनशील बन सके।

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2015 में, श्री राजेन्द्र सिंह को “स्टॉकहोम वॉटर प्राइज“ से सम्मानित किया गया जिसे जल क्षेत्र का “नोबेल पुरस्कार“ माना जाता है। यह पुरस्कार न केवल उनके व्यक्तिगत योगदान की वैश्विक मान्यता थी, बल्कि तरुण भारत संघ के सामूहिक प्रयासों का भी सम्मान था। इसी प्रेरणा से उन्होंने “वर्ल्ड वाटर वॉक्स फॉर पीस“ नामक एक वैश्विक जल जागरूकता अभियान की शुरुआत की, जो पाँच महाद्वीपों के 127 देशोंमें फैला और जल को शांति, सहयोग और सतत विकास का माध्यम बनाने का संदेश लेकर आगे बढ़ा।2016 में, तरुण भारत संघ ने शहरी नदियों के पुनर्जीवन की दिशा में दो महत्त्वपूर्ण पहलें शुरू की पुणे की मूला-मुठा नदी पुनर्जीवन योजनाऔर मुंबई की दहिसर नदी पुनर्जीवन योजना। उसी वर्ष, बैंक ऑफ बड़ौदा द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया, जबकि ’जल पुरुष’ श्री राजेन्द्र सिंह को “यश भारती पुरस्कार“ से सम्मानित किया गया, जो पर्यावरण संरक्षण में उनके योगदान की एक और राष्ट्रीय मान्यता थी।
2020 में, जब विश्व कोविड-19 महामारी से जूझ रहा था, तभासं 15,000 परिवारों को आपातकालीन राहत प्रदान कर मानवीय संवेदना और सामाजिक उत्तरदायित्व का एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया। इनमें से 1,000 परिवारों की मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सहायता, और 200 परिवारों को आजीविको सहयोग प्रदान किया गया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि केवल पर्यावरण तक सीमित नहीं, बल्कि समुदायों के समग्र कल्याण के लिए भी प्रतिबद्ध है।

तरुण भारत संघ ने 2020 के बाद सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण की अपनी यात्रा को और व्यापक बनाते हुए राजस्थान, हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में विशेष रूप से आकांक्षी जिलों में अपनी पहुँच का सफलतापूर्वक विस्तार किया। का जल संरक्षण कार्य राजस्थान के पाँच प्रमुख भौगोलिक क्षेत्रों- मेवात, मारवाड़, हाड़ौती, ढूंढाड़ और चम्बल-में सक्रिय रूप से जारी है। 2021 में, को विश्वविख्यात “एनर्जी ग्लोब अवॉर्ड“ से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन संगठनों को प्रदान किया जाता है जो स्थानीय कार्यों के माध्यम से वैश्विक स्थिरता लक्ष्यों को मूर्त रूप देते हैं। यह उपलब्धि तभासं के भूमिगत कार्यों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर मिली स्वीकृति को दर्शाती है। 2023 तक, चम्बल घाटी में तो एक ऐतिहासिक सामाजिक परिवर्तन देखने को मिला, जहाँ लगभग 1,000 पूर्व डकैतों ने हथियार छोड़कर खेती और जल-संरक्षण को अपनाया। यह केवल जल संरक्षण नही, बल्कि सामाजिक पुनर्वास और शांति निर्माण का भी एक अप्रतिम उदाहरण बन गया। 2025 में, को विश्व के प्रतिष्ठित “अर्थना अवार्ड“ के फाइनलिस्ट के रूप में चुना गया। यह चयन दर्शाता है कार्य अब न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए जल और जलवायु संकट से निपटने का एक जीवंत, व्यवहारिक और प्रेरणादायक मॉडल बन चुका है। यह समुदाय-आधारित जल पुनर्जीवन आंदोलन आज एकमात्र ऐसा उदाहरण है, जहाँ सामाजिक चेतना और सामूहिक शक्ति के बल पर नदियाँ पुनर्जीवित हो रही हैं और एक जल-सुरक्षित भविष्य आकार ले रहा है।

 

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