
-देशबन्धु में संपादकीय
शासक ज़िद्दी और अहंकारी हो तो वह तबाही लाता ही है; पर यदि वह अमेरिका जैसे देश का हो तो बर्बादी वैश्विक ही होगी, इसे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने साबित कर दिखाया है। उनके द्वारा छेड़े गये ‘टैरिफ़ वॉर’ ने अनेक देशों के शेयर मार्केट में बड़ी तबाही मचा दी है। जिन देशों की अर्थव्यवस्था ठोस मजबूती लिये हुए है, वहां तो इसका असर कम है लेकिन भारत जैसे देश में, जिसकी अर्थव्यवस्था आंकड़ों में तो भीमकाय है लेकिन पिछले कुछ समय से अनेक क्षेत्रों में पिछड़ने और लोगों की आय में भारी गिरावट के कारण वह इस सुनामी का मुकाबला करने में नाकाम दिखाई देती है। सोमवार को जैसे ही शेयर बाज़ार खुला, उसमें वैश्विक घटनाक्रम का असर दिखा। कई देशों के खिलाफ़ अमेरिका द्वारा अपनाई गई ‘रेसिप्रोकल टैरिफ़’ नीति से आई अनिश्चितता से भारत के शेयर बाजार में बड़ी गिरावट दर्ज़ हुई। सेंसेक्स एवं निफ़्टी दोनों में ही ऐसी बड़ी गिरावट देखी गयी कि इस दिन को ‘ब्लैक मंडे’ का नाम दिया गया। बताया गया है कि शेयर मार्केट के अब तक के 5 सबसे बुरे दिनों में सोमवार का शुमार हो गया। हालांकि मंगलवार को आंशिक रिकवरी देखी गयी परन्तु आशंका है कि निवेशकों का बुरा दौर जल्दी ख़त्म नहीं होगा।
शेयर मार्केट के जानकारों के साथ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि भारतीय शेयर बाज़ार इसलिये जल्दी उठ नहीं पायेगा क्योंकि ट्रम्प ने जिन देशों पर सबसे ज्यादा टैरिफ़ ठोंका है, उनमें भारत भी है। चूंकि वैश्विक अर्थप्रणाली में कहीं भी होने वाली घटनाएं समग्र रूप से सभी देशों पर असर डालती है, विभिन्न देशों के साथ ट्रम्प का यह व्यवहार भारत पर भी असर डाल रहा है। ट्रम्प के इस कदम का अच्छा मुकाबला चीन कर रहा है इसलिये वह दुनिया भर के व्यवसायियों के लिये आशा का नया केन्द्र बनकर उभर रहा है। वैसे तो बौखलाये ट्रम्प ने चीन पर 50 प्रतिशत का टैरिफ़ लागू करने की धमकी दी है लेकिन माना जाता है कि चीन का मैन्युफेक्चरिंग सेक्टर इतना मजबूत है कि वह आसानी से अमेरिका को झेल जायेगा। समस्या भारत जैसे देश के लिये है जिसने अपने औद्योगिक आधार को बहुत कमज़ोर कर दिया है।
किसी भी महत्वपूर्ण मौकों पर भारत सरकार की चुप्पी इस बार भी दिखाई दे रही है। टैरिफ़ वॉर से देश कैसे निपटेगा और सरकार इस दिशा में क्या कर रही है, इसे लेकर वित्त मंत्रालय कोई संकेत नहीं दे रहा है। इससे भारतीय बाजार में आशंका के साथ घबराहट होनी स्वाभाविक है। विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार में लाभ के प्रति बहुत आश्वस्त नहीं हैं। विशेषज्ञों की मानें तो वे लम्बे समय तक भारतीय बाजारों के उठने का इंतज़ार नहीं करेंगे। यदि विदेशी निवेशक टूटते हैं तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की अर्थव्यवस्था में लोगों का भरोसा खत्म होते वक्त नहीं लगेगा। इससे रिकवरी की प्रक्रिया और धीमी हो जायेगी। सरकार को बाज़ार के बचाव से सम्बन्धित कदम तुरन्त घोषित करने होंगे। फिलहाल तो लगता है कि सरकार ने शेयर बाज़ार तथा स्थानीय निवेशकों को उनके हाल पर छोड़ दिया है। वैसे भी पिछले लगभग 9 महीनों में शेयर बाज़ार बेहद कमज़ोर हुआ है। कई दिन ऐसे आये हैं जब निवेशकों ने एक-एक दिन में लाखों करोड़ों रुपये गंवाए हैं।
याद हो कि 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोगों से शेयर ख़रीदने का आग्रह किया था। उनका कहना था कि 4 जून (2024) को निकलने वाले नतीजों में भारतीय जनता पार्टी व उसके नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस को 400 से ज़्यादा सीटें मिलने जा रही हैं जिससे निवेशकों को खूब फ़ायदा होगा। इसके कारण लोगों ने जमकर ख़रीदारी की थी- ख़ासकर उन कम्पनियों के शेयरों की जो भाजपा सरकार के नज़दीकी लोगों की है। परिणाम विपरीत निकले। शेयर बाजार ऐसा धड़ाम हुआ कि निवेशकों की जेबें खाली हो गयीं। धूर्त कारोबारियों ने बेचते वक़्त भी लाभ कमाया और जब बाज़ार गिरा तो ख़रीदारी करते हुए भी चांदी काटी। कुछ लोगों को लाभ पहुंचाने की मंशा ही शेयर बाज़ार को कमज़ोर कर रही है। कम्पनियों में प्रतिस्पर्धा होने से निवेशक अलग-अलग कम्पनियों में पैसे डालते थे ताकि कहीं नुकसान हो तो कहीं लाभ भी हो जाये। अब तो कुछ ही कम्पनियां हैं जो लाभ दे रही हैं। यदि उनके शेयर गिरते हैं तो निवेशकों का पैसा डूबना लाजिमी है। ऐसा इसलिये क्योंकि सरकार थोड़े से कारोबारियों को प्रश्रय दे रही है। वे ही लाभ कमा रहे हैं और उनकी ही कम्पनियां अच्छा वित्तीय प्रदर्शन करती है। वे ही मार खा जायें तो निवेशकों को नुक़सान तो होना ही है।
सरकार का रवैया जब ऐसा हो तो पूरा व्यवसाय जगत और सारा का सारा शेयर बाज़ार कुछ ही कम्पनियों पर निर्भर हो जाता है। यही हो रहा है। ऐसे नुकसान से शेयर बाजार को बचाना हो तो सरकार को कम्पनियों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का माहौल बनाना होगा। चंद कारोबारियों को संरक्षण व प्रोत्साहन देकर वह उन्हें चाहे अमीर बना रही हो परन्तु इससे ऐसी मजबूत अर्थव्यवस्था नहीं बन सकती जो बाहरी हलचलों से हिल जाये। दरअसल, इस सरकार के पास अर्थशास्त्र की अच्छी समझ रखने वाले लोगों की बेहद कमी है। फिर, मोदीजी जैसे शासक अपने अदूरदर्शी कदमों से अर्थव्यवस्था को और भी कमज़ोर किये दे रहे हैं। उनके द्वारा लायी गयी नोटबन्दी और जीएसटी से देश अब तक उबरा नहीं है। देखना होगा कि शेयर बाजार में आयी नयी सुनामी भारत का और कितना नुकसान करती है।