
-विवेक दत्त मथुरिया Vivek Mathuria
ब्रज का जर्रा-जर्रा राधा कृष्ण के अलौकिक प्रेम से आलोकित है। राधाकृष्ण के प्रेम में पगी ब्रज भूमि में प्रवेश करते समय एक सावधानी बेहद जरूरी है कि इस भूमि की रज का स्पर्श कहीं आपको बागी न बना दे।
क्योंकि यह प्रेम में सराबोर उस बाबरे की भूमि है जिसे दुनिया श्रीकृष्ण के नाम से पुकारती है। कृष्ण के बाबरेपन पर रीझते हुए कृष्ण भक्त बैजू बाबरा ने नसीहत देते हुए कहा है कि –
ज्ञानी गुमानी धनी जाओ रे जहां ते ,
यहाँ राज है बाबरे ठाकुर कौ।
ब्रज का धर्म और संस्कृति प्रेम है।
श्रीकृष्ण की प्रेम भक्ति प्रेम प्यासों के लिए अमृत तत्व है। पता नहीं इस चित चोर का कौन सा रूप आपको सम्मोहित कर ले, प्रेम प्यासों के लिए यह खतरा हर पल बना रहता है।
श्रीकृष्ण द्वारा स्थापित ब्रज का प्रेम धर्म बागी बनाता है, फिर बात नारी स्वतंत्रता के रूप में भक्तमति मीरा का विद्रोह या फिर मुस्लिम कृष्ण भक्त रसखान, ताज बीबी, करौली के मदन मोहन जी मंदिर में पानी का छिड़काव करने वाला भिश्ती काले खाँ हो या फिर बरसाना के राधा रानी मंदिर के द्वार पर सारंगी पर भजन साधना करने वाला मुस्लिम राधा भक्त गुलाब सखी ही क्यों न हो। सारंगी के तारो से प्रस्फुटित राधा कृष्ण के भजनों की धुन पर ग़ुलाब सखी की नन्ही सी बिटिया नृत्य किया करती थी। गुलाब अपनी बिटिया को राधा नाम से पुकारा करता था।
राधा कृष्ण द्वारा स्थापित प्रेम संस्कृति अपने में बगावत औऱ प्रगतिशीलता को समेटे हुए हैं। बरसाना नंदगांव बीच खेली जाने वाली लठ्ठमार होली नारी स्वतंत्रता औऱ सशक्तिकरण का सन्देश लिए हुए हैं।
इस बार यह संयोग है कि बरसाना की विश्व प्रसिद्ध लठमार होली आठ मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस भी है। जहां महिला सशक्तिकरण की जीवंत झांकी देखने को मिलेगी। लठमार होली के नजारे को नारी सशक्तिकरण के रूप में ब्रजाचार्य श्रीगोपाल भट्ट ने अपने ग्रन्थ ‘ लाख बार अनुपम बरसानौ’ लिखा है
अनुपम होली होत है यहाँ लठ्ठो की सरनाम
अबला सबला सी लगे यूँ बरसाने की वाम
लठ्ठ धरे कंधा फिरे जब ही भगाबे ग्वाल
जिम महिषासुर मर्दनी रण में चलती चाल।
(आलेख एवं फोटो देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)