
डॉ. पीएस विजयराघवन
(लेखक और तमिलनाडु के वरिष्ठ पत्रकार और संपादक)
चिदम्बरम का तिल्लै नटराज मंदिर जहां भगवान शिव की आनंद तांडव मुद्रा वाली मूर्ति प्रतिष्ठित है। इसका विराट और गौरवपूर्ण इतिहास है। यह इतिहास दो हजार साल से अधिक पुराना है। यह उन चुनिन्दा मंदिरों में है जहां भगवान नटराज के साथ भगवान गोविन्दराज (विष्णु) की प्रतिमा भी विराजमान है। कहा जाता है कि दोनों मूर्तियों को एक निश्चित दूरी से खड़े होकर देखा जाता है जो उन मतभेदों को दूर करता है कि शिव व विष्णु अलग-अलग है। चिदंबरम मंदिर आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। शैव मत के अनुयायियों या शैव मतावलंबियों के लिए कोईल यानी मंदिर का आशय नटराज मंदिर से ही है। चिदंबरम का तात्पर्य चेतना का आकाश होता है।
वेदों और धर्म ग्रंथों के अनुसार इसे प्राप्त करना ही अंतिम उद्देश्य होना चाहिए। अन्यार्थ में चित्त-अम्बलम से लिया गया है। अम्बलम का अर्थ होता है कला प्रदर्शन का मंच। चित्ताकासम परम आनंद या आनंद की एक अवस्था है और भगवान नटराजर इस परम आनंद या आनंद नडनम के प्रतीक माने जाते हैं। इस मंदिर की एक अनूठी विशेषता आभूषणों से युक्त नटराज की छवि है।
विशेषताः भरतनाट्यम की पाठशाला
यह भगवान शिव को भरतनाट्यम नृत्य के देवता के रूप में प्रस्तुत करती है और यह उन कुछ मंदिरों में से एक है जहां शिव को प्राचीन लिंगम के स्थान पर मानवरूपी मूर्ति के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। देवता नटराज का ब्रह्मांडीय नृत्य भगवान शिव द्वारा अनवरत ब्रह्माण्ड की गति का प्रतीक है। साथ ही भरतनाट्यम की पाठशाला है।
पौराणिक कथा
चिदंबरम की कथा भगवान शिव की तिल्लै वन में घूमने की पौराणिक कथा के साथ प्रारंभ होती है। तिल्लै नाम की वनस्पति वर्तमान में चिदंबरम के निकट पिचावरम के आद्र्र प्रदेश में पायी जाती है। मंदिर की प्रतिमाओं में उन तिल्लै वृक्षों का चित्रण है जो दूसरी शताब्दी के काल के हैं। तिल्लै के जंगलों में साधुओं या ऋषियों का एक समूह रहता था जो तिलिस्म की शक्ति में विश्वास रखता था और यह मानता था कि मंत्रों या जादूई शब्दों से देवता को अपने वश किया जा सकता है।
भगवान जंगल में एक साधारण भिक्षु के रूप में विचरण करते हैं। उनके पीछे-पीछे भगवान विष्णु मोहिनी के अवतार में चलते हैं। ऋषिगण की पत्नियां भिक्षुक और उनकी भार्या की सुन्दरता व आभा पर मोहित हो जाती हैं। यह देख ऋषिगण क्रोधित हो जाते हैं और जादुई संस्कारों के आह्वान द्वारा अनेक सर्पों की उत्पत्ति करते हैं। भिक्षुक शिव सर्पों को उठाकर आभूषण बना लेते हैं। ऋषियों का क्रोध और बढ़ता है वे एक भयानक बाघ को पैदा कर देते हैं।
शिव उसकी खाल निकालकर कमर पर बांध लेते हैं। पूरी तरह से हतोत्साहित हो जाने पर दम्भित ऋषि अपनी सभी आध्यात्मिक शक्तियों को एकत्र करके एक शक्तिशाली राक्षस मुयालकन का आह्वान करते हैं जो पूर्ण अज्ञानता और अभिमान का प्रतीक होता है। भगवान शिव मधु मुस्कान के साथ उस राक्षस की पीठ पर चढ़ जाते हैं और वह हिल भी नहीं पाता है। फिर उसकी पीठ पर आनंद तांडव (शाश्वत आनंद) का नृत्य करते हुए अपने वास्तविक रूप का प्रदर्शन कराते हैं। यह देखकर ऋषिगण यह अनुभव करते हैं कि यह देवता सत्य हैं तथा जादू व संस्कारों से परे हैं और वह समर्पण कर देते हैं।
आनंद तांडव मुद्रा
मंदिर में स्थित भगवान शिव की आनंद तांडव मुद्रा अत्यंत प्रसिद्ध मुद्रा है जो संसार में अनेकों लोगो द्वारा पहचानी जाती है, यहां तक कि अन्य धर्मों को मानने वाले भी इसे मानते हैं। ब्रह्मांडीय नृत्य मुद्रा हमें यह बताती है कि एक भरतनाट्यम नर्तक-नर्तकी को किस प्रकार नृत्य करना चाहिए। नटराज के पंजों के नीचे वाला राक्षस इस बात का प्रतीक है कि अज्ञानता उनके चरणों के नीचे है। उनके हाथ में उपस्थित अग्नि, नष्ट करने की शक्ति इस बात की प्रतीक है कि वह बुराई को नष्ट करने वाले हैं।
उनका उठाया हुआ हाथ इस बात का प्रतीक है कि वे ही समस्त जीवों के उद्धारक हैं। उनके पीछे स्थित चक्र ब्रह्माण्ड का प्रतीक है। उनके हाथ में सुशोभित डमरू जीवन की उत्पत्ति का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर ब्रह्माण्ड के कमलरूपी मध्य क्षेत्र में अवस्थित है। चिदंबरम का उल्लेख कई कृतियों में भी किया गया है जैसे तिल्लै योर, पेरुम्पत्रपुलियुर या व्याघ्रपुराणं में। स्वर्ण छत युक्त मंच चिदंबरम मंदिर का पवित्र गर्भगृह है और यहां तीन स्वरूपों भगवान नटराज (मानवरूप), चंद्रमौलेश्वर के स्फटिक लिंग (अर्ध मानवरूप) व निष्कला तिरुमेनी (निराकार) में विराजित है।
साहित्य व इतिहास
संत सुन्दरर की तिरुतोंडर तोगै (भगवान शिव के 63 भक्तों की पवित्र सूची) का प्रारंभ यही से होता है। चार शैव संतों तिरुज्ञान संबंदर, तिरुणावकरसर, सुंदरमूर्ति नैनार व माणिकवासकर ने मंदिर और विराजित देवता को अपनी कविताओं में सदा के लिए अमर कर दिया। ये शैव संत कवि छठी से नौंवी शती के थे। मंदिर में कुल 9 द्वार हैं जिनमे से 4 पर ऊंचे गोपुरम बने हुए हैं। पूर्वी गोपुरम में भरतनाट्यम की संपूर्ण 108 मुद्राएं अंकित हैं।
मंदिर परिसर में 5 सभागार हैं। पुराणों के अनुसार संत पुलिकालमुनिवर ने राजा सिंहवर्मन के माध्यम से मंदिर का विस्तार कराया। पल्लव राजाओं में सिंहवर्मन नाम के तीन राजा थे जिनका शासनकाल 275 ईस्वी से 56 0 ईस्वी तक रहा। चूंकि संत तिरुणावकरसर जिनका काल लगभग छठी शताब्दी में अनुमानित है ने इस मंदिर का यशोगान किया है इसलिए इस बात की अधिक सम्भावना है कि सिंहवर्मन द्वितीय (430-458 ) के काल में यह मंदिर रहा होगा। मंदिर का कालांतर में विकास चोल, पल्लव, पांड्य व कृष्णदेव राय नगर के राजाओं ने किया जो शिव भक्त थे।
तीर्थ और गोविन्दराज भगवान
प्रतिमा, स्थान और तीर्थम एक मंदिर की पवित्रता का प्रतीक होते हैं। चिदंबरम मंदिर के अन्दर और इसके आसपास चारों तरफ कई जलाशय हैं। 40 एकड़ के विशाल क्षेत्र में स्थित मंदिर में भव्य सरोवर भी है जिसका नाम शिवगंगा है जो विशाल सरोवर मंदिर के तीसरे गलियारे में है जो देवी शिवगामी के धार्मिक स्थल के ठीक विपरीत है। मंदिर में भगवान गोविन्दराज और उनकी सहचरी पुण्डरीकवल्ली (लक्ष्मी) का भी मंदिर है। यह दावा किया जाता है कि यह मंदिर तिल्लै तिरुचित्रकूटम है और 108 दिव्यदेशों में से एक है।
(डॉ. पीएस विजयराघवन की आस्था के बत्तीस देवालय पुस्तक से साभार)
तमिलनाडु आध्यात्मिक संस्कारों की भूमि है, जिसका प्रतीक यहां के अति प्राचीन मंदिर हैं। प्रत्येक मंदिर अपने आप में मूर्त इतिहास है। यह शिल्प के अद्भुत उदाहरण हैं। मंदिरों की विरासत का राज्य के पर्यटन में भी अमूल्य योगदान है। लेखकर डॉ. पीएस विजयराघवन ने अपनी इस संकलित पुस्तक में मंदिरों पर आमजन की आस्था और उसकी महत्ता पर प्रकाश डाला है। सं.