
डॉ. पीएस विजयराघवन
(लेखक और तमिलनाडु के वरिष्ठ पत्रकार और संपादक)
चिदम्बरम-तंजावुर हाईवे पर मयूरनाथ स्वामी के मंदिर के दर्शन से मन मयूरा नाच उठता है। मईलाडुदुरै के दक्षिणी हिस्से में स्थित यह मंदिर कावेरी तट पर है। मईलाडुदुरै का पुराना नाम मायावरम है जो नागपट्टिनम जिले की तहसील है। मंदिर के भगवान का नाम मयूरनाथ स्वामी है। उनके नाम के आधार पर ही शहर का नामकरण हुआ है।
मां पार्वती के समक्ष भगवान शिव का मयूर नृत्य
गर्भगृह में स्थित मयूरनाथर शिवलिंग रूप में प्रतिष्ठित हैं। देवी पार्वती ने मयूर रूप में शिव की आराधना की। तमिल माह अईपसी जो नवम्बर-दिसम्बर में पड़ता है के दौरान आने वाली पूर्णमासी के रोज श्रद्धालु मंदिर के सरोवर में डूबकी लगाते हैं। मान्यता है कि इस स्नान से पाप नष्ट होते हैं। हर साल मयूर नाट्यांजलि वार्षिक नृत्योत्सव का आयोजन मंदिर परिसर स्थित मण्डप में होता है। मंदिर का शिवलिंग स्वयंभू है। मां पार्वती को यहां अभयप्रदाम्बीकै, अभयाम्बीकै, अंजलनायकी और अंजलै नाम से पूजा जाता है। परिसर में ही भगवान गणेश व शिव की नाट्य प्रतिमा नटराज का मंदिर है। मंदिर की एक प्रतिमा भगवान शिव के पार्वती के आलिंगन की है।
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव एक बार पार्वती से नाराज हो गए और शाप देकर मोरनी बना दिया। पार्वती के प्रायश्चित पर भगवान शिव ने उनकी सजा को कम करते हुए कहा कि वह पहले मईलापुर और फिर मईलाडुदुरै में जाकर तपाराधना करे। पार्वती ने ऐसा ही किया और उनको अभयम्बाल का नाम मिला। भगवान शिव यहां पार्वती के समक्ष मोर रूप में प्रकट हुए और नृत्य किया जिसे मयूर ताण्डव कहा जाता है।
इतिहास व निर्माण
मंदिर के निर्माण काल को लेकर पुख्ता प्रमाण नहीं है। समझा जाता है कि मध्यवर्ती चोल काल में मंदिर बना। मंदिर का अंतिम शिलालेख कुलोतुंग राजा से जुड़ा है। सत्रहवीं सदी में बड़े पैमाने पर नवीनीकरण के संकेत भी है। मंदिर से जुड़ा सबसे बड़ा मसला दलितों के प्रवेश को लेकर था। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान मई 1927 में दलितों के मंदिर प्रवेश को लेकर बड़ा आयोजन हुआ। यह वह दौर था जब तमिलनाडु में आत्म सम्मान आंदोलन का सूत्रपात हो चुका था। प्रवेश की वजह से कड़ा संघर्ष भी हुआ।
मंदिर का आकार 719 फुट लम्बा और 52 फुट चैड़ा है। पूर्वी छोर पर मंदिर का प्रवेश द्वार है जो नौ मंजिला है। उत्तरी प्रवेश द्वार पर देवी दुर्गा की मूर्ति शिल्पकला का नायाब प्रभाव छोड़ती है। मंदिर की दीवार पर एक भक्त की तस्वीर उकेरी गई है जो अपना सिर भेंट करता हुआ दिखाया गया है। संत अरुलगिरिनाथर ने भगवान की तिरुपुगल में स्तुति की है। मंदिर में अति प्राचीन आम का वृक्ष है और तीन सरोवर इब्दम, ब्रह्मम और अगस्त्य है जिनको पापविमोचिनी कहा गया है।
भक्ति काव्यों में वर्णन
शैव संतों तिरुज्ञानसंबंदर व तिरुनावकरसर ने थेवारम भक्ति काव्य में मयूरनाथ स्वामी की स्तुति की। मंदिर की प्रशंसा में तिरुपुगल भी लिखा गया। इन काव्यों का संदेश यह है कि अगर किसी को अनदेखी रूपी अंधकार से छुटकारा पाना है तो मईलाडुदुरै के आसमान से बुद्धि रूपी प्रकाश की वर्षा कर रहे भगवान शिव की आराधना करे। थेवारम के अनुसार कावेरी के तट पर यह शिव का ३९वां मंदिर है। तमिल माह वैकासी का ब्रह्मोत्सव काफी लोकप्रिय है। इसी तरह अईपसी माह का तुला स्नान भी प्रसिद्ध है। भगवान मुरुगन के स्कंद षष्ठी उत्सव में यहां वे अपने अस्त्र वेल (भाला) मां पार्वती की बजाय भगवान शिव से प्राप्त करते हैं।
(डॉ. पीएस विजयराघवन की आस्था के बत्तीस देवालय पुस्तक से साभार)
तमिलनाडु आध्यात्मिक संस्कारों की भूमि है, जिसका प्रतीक यहां के अति प्राचीन मंदिर हैं। प्रत्येक मंदिर अपने आप में मूर्त इतिहास है। यह शिल्प के अद्भुत उदाहरण हैं। मंदिरों की विरासत का राज्य के पर्यटन में भी अमूल्य योगदान है। लेखकर डॉ. पीएस विजयराघवन ने अपनी इस संकलित पुस्तक में मंदिरों पर आमजन की आस्था और उसकी महत्ता पर प्रकाश डाला है। सं.