sthalshyanam mandir

डॉ. पीएस विजयराघवन
(लेखक और तमिलनाडु के वरिष्ठ पत्रकार और संपादक)

महाबलीपुरम ऐतिहासिक पर्यटन स्थल है जो बंगाल की खाड़ी के तट पर ईस्ट कोस्ट रोड (ईसीआर) पर बसा है। महाबलीपुरम का दूसरा नाम मामल्लपुरम है। यहां समुद्र तट से कुछ दूरी पर स्थित भगवान विष्णु का स्थलशयनम मंदिर १०८ दिव्य क्षेत्रों में से ४४वें क्रम पर है। यह मंदिर ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व का होने की वजह से इसका संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से किया जाता है। यहां भगवान आदिशेषनाग पर शयनमुद्रा में दर्शित नहीं है बल्कि जमीन पर ही लेटे हैं।

संरचना व इतिहास

स्थलशयनम मंदिर का निर्माण द्रविड़ स्थापत्य व शिल्पकला की नायाब पेशकश है। मंदिर का वर्णन नालायर दिव्यप्रबंधम में है। इस वजह से कहा जाता है कि मंदिर का अस्तित्व छठी शताब्दी के आस-पास का है। भगवान विष्णु यहां शयन मुद्रा में है और लक्ष्मी नीलमंगै तायार के रूप में प्रतिष्ठित हैं। मंदिर के निर्माण का श्रेय पल्लव राजाओं को जाता है। पल्लव शासकों के बाद मध्ययुगीन चोल राजाओं, विजयनगर शासकों व मदुरै नायक वंशजों ने भी मंदिर के विस्तार में योगदान दिया। मंदिर समुद्र तट पर है। मंदिर के अलावा यहां स्थापत्य कला की अन्य सर्जनाएं भी हैं जो पर्यटकों को आकर्षित करती है। मंदिर आकार में छोटा है जिसका प्रवेश द्वार आज भी अधूरा है। मंदिर में स्थलशयन भगवान व लक्ष्मी की दो सन्निधि हैं।
नरसिंह भगवान की भी यहां अलग से सन्निधि है। निर्माण शैली में पल्लवकालीन अवधारणा झलकती है। भूदत आलवार मंदिर के सरोवर के निकट शिशुवस्था में मिले थे। यह स्थल आदिवराह मंदिर के लिए भी प्रसिद्ध है। मंदिर में भगवान की मूर्ति लक्ष्मी को दाहिने हाथ में थामे हैं जबकि अधिकांश मंदिरों में ऐसा देखने को नहीं मिलता। कहा जाता है कि मूलतरू ऐसे सात मंदिरों का निर्माण कराया गया था जिनमें से केवल एक ही शेष रहा है। भगवान की उत्सव मूर्ति के हाथ में कमलनाल है, जो ज्ञान मुद्रा को भी अभिव्यक्त करती है। एक शिलालेख के अनुसार चैदहवीं शताब्दी में विजयनगर शासक परंकुश ने मूल मंदिर जो समुद्र से सटा था को मौजूदा जगह पर विस्थापित किया। परंकुश ने मंदिर की परिधि में चार गलियारों का निर्माण कराया। मंदिर का विस्तार विक्रम चोल के शासनकाल में ११२० में भी हुआ।

भूदत आलवार की जन्मस्थली

माना जाता है कि वैष्णव आलवार संतों में से एक भूदत आलवार का मंदिर में जन्म हुआ था। वे वैष्णव सम्प्रदाय के दूसरे आलवार थे। विष्णु ने पुण्डरीक मुनि को यहां साक्षात दर्शन दिए। पौराणिक कथा के अनुसार पुण्डरीक की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उनके समक्ष प्रकट हुए। पुण्डरीक ने विष्णु को कमल पुष्प भेंट किया और क्षीर सागर में वे जिस मुद्रा में हैं उसी रूप में यहां प्रतिष्ठित होने का आग्रह किया। विष्णु एक ब्राह्मण भिक्षु के रूप में आए थे और यहीं बस गए इसलिए उनको स्थलशयनम कहकर संबोधित किया गया है। इस जगह को तिरुकडल मलै भी कहा जाता है। आलवार ने उनका गुणगान भूदत दिव्य प्रबंधम में किया है। तिरुमंगै आलवार ने भी अपने काव्यों में इस मंदिर वर्णन किया है। मंदिर की विशेषता यह है कि यहां भगवान की शयन मुद्रा शेषनाग की बजाय भूमि पर है।

वैश्विक विरासत

महाबलीपुरम अपने आप में वैश्विक विरासत है। यहां के ३२ स्मारकों को यूएन की वैश्विक विरासत का दर्जा हासिल है। लेकिन इसका अनुरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन है। मंदिर का प्रशासन तमिलनाडु सरकार के हिन्दू धर्म व देवस्थान विभाग के पास है। वैश्विक विरासत का दर्जा प्राप्त होने व बड़ी संख्या में पर्यटकों की आवाजाही के बाद भी यहां साफ-सफाई पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता। मंदिर के आस-पास की फुटपाथिया दुकानें व खोमचे वालों के ठेलों की वजह से कचरा पसरा रहता है। यही हाल समुद्र तट का भी है।

(डॉ. पीएस विजयराघवन की आस्था के बत्तीस देवालय पुस्तक से साभार)

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