photo tulsidas

जनमानस को अपनी कृति से सर्वाधिक प्रभावित करने वाले किसी विद्वान संत का नाम यदि तुरंत दिमाग में कौंधे तो नि:संदेह यह रामचरित मानस जैसे कालजयी महाकाव्य के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास का ही होगा। भारतीय संस्कृति में रामायण का एक उच्च स्थान है, किन्तु संस्कृत भाषा में होने के कारण यह ज्ञानी ब्राह्मणों की विरासत बन के रह गयी। इस महाग्रन्थ को सामान्य जन मानस तक पहुँचाने के लिए गोस्वामी तुलसीदास ने श्री राम कथा को अवधी भाषा में एक अत्यंत मनोहर एवं भक्ति रस से ओत प्रोत काव्य ग्रन्थ का रूप दिया। यह महाकाव्य श्रीरामचरित मानस है। इसी महाकाव्य के रचयिता गोस्वाती तुलसीदास की आज जयंती है। उनके जन्म के बारे में दोहा प्रचलित है…

‘पंद्रह सौ चौवन बिसे, कालिंदी के तीर
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धर्यो शरीर

विद्वानों का मत है कि इनके माता पिता ने बाल्यकाल में ही इनका त्याग कर दिया तथा इनका पालन-पोषण प्रसिद्ध संत बाबा नरहरिदास के संरक्षण में हुआ। उनकी देख-रेख में तुलसीदास ने भक्ति एवं ज्ञान की विद्या अर्जित की। इनका विवाह रत्नावली से हुआ। वह अपनी पत्नी को बहुत अधिक प्रेम करते थे जिससे एक बार रत्नावली इनसे खिन्न होकर बोली कि आप जितना ध्यान मुझमे देते हो अगर इससे कम ही ध्यान प्रभु भक्ति में देते तो साक्षात् प्रभु के दर्शन आपको हो जाते। रत्नावली की इन बातों से तुलसीदास के दिल पर चोट पहुंची और उन्हें वैराग्य हो गया। वे प्रभु की भक्ति की ओर उन्मुख हो गए। कहा जाता है कि स्वामी नरहरिदास नेे तुलसीदास को दीक्षा देते हुए जीवन की राह दिखाई। इससे उन्हें रामचरित मानस लिखने की प्रेरणा मिली।

जन जन तक पहुंच गई रामचरित मानस

तुलसीदास ने अपने जीवनकाल में कवितावली, दोहावली, हनुमान बाहुक, पार्वती मंगल, रामलला नहछू, विनय पत्रिका, कवित्त रामायण, बरवै रामायण, वैराग्य संदीपनी आदि कुल 12 महान पुस्तकों की रचना की। लेकिन उन्हें सर्वाधिक प्रसिद्धि रामचरित मानस से मिली। यह उनकी लेखनी का ही कमाल था कि रामचरित मानस जन जन तक पहुंच गई। सरल अवधी भाषा में होने के कारण यह ग्रंथ जनमानस में लोकप्रिय हो गया। इसमे दोहा-चौपाई के माध्यम से राम के जीवन के समस्त दर्शन को प्रस्तुत किया है। अपने काव्य में तुलसीदास ने आसावरी, जैती, कान्हरा, कल्याण, भैरव, भैरवी, बिलावल, सारंग, विभास, बसंत, दंडक, केदार, धनाश्री, सोरठ, ललित, नट, तोड़ी, सूहो, मलार, गौरी, मारू, चंचरी, रामकली आदि बीस से भी अधिक रागों का प्रयोग किया है

श्रीराम की मर्यादा, करुणा, दया, शौर्य, साहस और त्याग जैसे सद्ग्गुणों की व्याख्या की

काशी के  विद्वान् शेष सनातन से तुलसी ने वेद-वेदांग का ज्ञान प्राप्त किया और अनेक तीर्थो का भ्रमण करते हुए श्रीराम के पावन चरित्र का गुणगान करने लगे। इनका सर्वाधिक समय काशी,अयोध्या और चित्रकूट में व्यतीत हुआ। किन्तु अपने अंतिम समय में ये काशी आ गये और सन 1623ई. को राम – राम कहते हुए काशी के अस्सी घाट पर परमात्मा में विलीन हो गए। तुलसीदास का संपूर्ण जीवन राममय रहा। उन्होंन रामचरित मानस के माध्यम सेे भगवान श्रीराम की मर्यादा, करुणा, दया, शौर्य, साहस और त्याग जैसे सद्ग्गुणों की व्याख्या की। उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम का स्वरूप दिया। रामचरित मानस के माध्यम से उन्होंने समूची मानव जाति को श्रीराम के आदर्शों से जोड़ते हुए श्रीराम को जन-जन का राम बना दिया। रामचरित मानस के जरिये मनुष्य के संस्कार की कथा लिखकर उन्होंने इस रामकाव्य को भारतीय संस्कृति का प्राण तत्व बना दिया।

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Neelam
Neelam
2 years ago

संत तुलसीदास जी की जयंती पर उनको शत शत नमन।
सच ही है।
या भवसागर उतरतो कवन पार।
जो रामायण तुलसी न गावतो ।।