द ओपिनियन वर्ल्ड डेस्क
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चीन इन दिनों तिलमिलाया हुआ है और उसकी तिलमिलाहट की वजह है अमरीकी प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी का ताइवान दौरा। चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और उसके साथ रिश्ते रखने वाले देशों से वह खार खाता रहता है। ताइवान खुद को चीन से अलग मानता है। दुनिया ने ताइवान को एक अलग देश के रूप में मान्यता नहीं दी है लेकिन उसके कारोबारी व सांस्कृतिक रिश्ते अनेक देशों में है। चीन वन चाइना पॉलिसी की हिमायत करता है इसलिए दुनिया के किसी अन्य देश की कोई राजनीतिक हस्ती ताइवान जाती है तो चीन के तेवर चढ जाते हैं। इसलिए वह नैंसी पेलोसी के दौरे से आगबबूला हो रहा है। पेलोसी दौराकर लौट गई हैं लेकिन चीन की त्योरियां चढी हुई हैं और वह मिसाइल दागने के अभ्यास में जुटा है। दुनिया भी इस मुसले पर दो पक्षों में बंटी है। रूस खुलकर चीन के पक्ष में आ गया है तो जी-7 देशों ने चीन के रवैये की आलोचना की है। कटु यर्थाथ यह है कि चीन हर चीज को अपनी सुविधानुसार परिभाषित करता है चाहे वह दक्षिण चीन सागर का मसला हो, तिब्बत का मसला हो, भारत के साथ सीमा विवाद हो या अन्य कोई मसला। वह सब कुछ अपने अनुसार चाहता है। ऐसे में पलेसी के दौरे से उसका चिढना स्वाभाविक है। वह दुनिया को यह भी जताना चाहता है कि अब वह दुनिया की सबसे बडी पावर है। अमरीका अब उस मुकाम पर नहीं है। इधर, अमरीका भी सुपर पावर के इस रूतबे को छोडना नही चाहता इसलिए टकराव की तमाम आशंकाओं के बावजूद पेलोसी ने वहां का दौरा किया। अब इसके नतीजे क्या होंगे यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन टकराव का नया दौर शुरू होना तय है। दक्षिण चीन सागर को लेकर चीन का अपने तमात पडोसियों के साथ टकराव है। वह हिंद महासागर में भी अपना दबदबा बढान के प्रयास लगातार करता रहा है। संभव है वह ताइवान पर हमला न करे लेकिन वह ऐसे हालात जरूर बनाना चाहेगा कि कोई अन्य देश ताइवान के साथ रिश्ते मजबूत करने के लिए आगे न आए। इसलिए ताइवान को लेकर उसकी धमकियां जारी रहने वाली हैं। ताइवान ही क्यों, चीन को यह भी बर्दाश्त नहीं है कि कोई दलाई लामा से मुलाकात करे। भारत यात्रा पर आने वाले कोई नेता यदि दलाई लामा से मुलाकात करता है तब भी उसके तेवर उग्र हो जाते हैं। चीन की नीतियों में हर जगह दोहरे मापदंड देखने को मिलते हैं। चाइना- पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से गुजरता है तो इसमें तो उसको कुछ गलत नजर नहीं आता लेकिन भारत दक्षिण चीन सागर से लगे वियतनाम तट पर तेल खोज या अनरू उत्खनन गतिविधियों में सहयोग करता है तो वह उसे बर्दाश्त नहीं होता। चीन की एक ही नीति है मैं सही । लेकिन दुनिया इस नीति से तो नहीं चल सकती। ताकत का अर्थ मनमानी तो नहीं। पहले उसे ताइवान के साथ बातचीत से आपसी विवाद को हल करना चाहिए। फिर वह दुनिया की पटेलाई करे।
चर्चा में आजकल:एक प्रखर राजनेता हैं नैंसी पोलेसी
ताइवान के दौरे से चर्चा में आई नैंसी पोलेसी अमरीकी कांग्रेस के निचले से सदन प्रतिनिधिसभा की अध्यक्ष हैं। इस पद को संभालने वाली वह अमेरिका की पहली महिला नेता हैं। 26 मार्च 1940 को जन्मी अमरीका की एक प्रखर राजनेता हैं। करीब तीन दशक में से अधिक समय से अमरीकी कांग्रेस की सदस्य पेलोसी अमरीका के शीर्ष राजनेताओं में से एक है और उनके नाम कई राजनीतिक उपलब्धियां दर्ज हैं। वह इससे पहले भी ताइवान का दौरा कर चुकी हैं। तब भी चीन ने उनका खूब विरोध किया था। चीन में 1989 में हुए थैआनमन चौक नरसंहार के बाद 1991 में पेलोसी चीन के दौरे पर गई थी और वे थैआनमन चौके पर भी गई थी। अमरीका तभी से उनसे चिढा हुआ है। वह चीन में मानवाधिकारों के उल्लंघन के सवाल पर भी काफी मुखर रही हैं। 1989 की घटना के बाद नैंसी पेलोसी ने चीनी सरकार के दमन के खिलाफ अमेरिकी संसद में निंदा प्रस्ताव लाने में शामिल रहीं। करीब 14 वर्ष पहले वर्ष 2008 में नैंसी पेलोसी ने भारत का दौरा किया था। इस दौरे में उन्होंने धर्मशाला जाकर तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा से भी मुलाकात की थी। दलाई लामा से नैंसी की मुलाकात का चीन ने काफी विरोध किया था। वर्ष 2017 में नैंसी दोबारा भारत आईं; इस बार भी उन्होंने चीन की चिंता को दरकिनार करदलाई लामा से मुलाकात की।
चीन की एक ही नीति है मैं सही । लेकिन दुनिया इस नीति से तो नहीं चल सकती। ताकत का अर्थ मनमानी तो नहीं। पहले उसे ताइवान के साथ बातचीत से आपसी विवाद को हल करना चाहिए। फिर वह दुनिया की पटेलाई करे।