शिशुओं का नैसर्गिक अधिकार

-प्रतिभा नैथानी-

प्रतिभा नैथानी

मेरी एक परिचिता का जब पहला प्रसव हुआ तो हमारे पहाड़ी रीति-रिवाजों के नियमानुसार प्रसूता के कक्ष में दाई के सिवा किसी अन्य को जाने की अनुमति न थी। नवजात शिशु को दूध पिलाती मां उसका माथा, नाक, होंठ, कान, गाल, रंग का मिलान उसके पिता से करती ‘पितृ मुखी कन्या सुखी’ की उक्ति याद कर खुश हो रही है।
क्योंकि नवजात लगभग बाईस घंटे तो सोए ही रहते हैं, इसलिए अभी आंखों का पता ना चल पाया कि वे किस पर गई हैं।
लेकिन जब एक हफ़्ते बाद भी शिशु की आंखें न खुलीं तो मां को चिंता हुई कि बच्ची नेत्रहीन तो नहीं ? जच्चा-बच्चा के कमरे में ग्यारह दिनों तक किसी और का प्रवेश करना जितना मुश्किल था, उन दोनों का डॉक्टर के पास जाने के लिए बाहर निकलना भी उतना ही कठिन। संक्रमण से बचाने के नाम पर वहां गोमूत्र का छिड़काव किया जाता था, मगर इस विपदा से बचने के लिए कुछ न था।

उसने दाई से चिंता ज़ाहिर की । दाई ने कहा – अरे ! इसकी आंखों पर अपना दूध डालो। अब ये मां के दूध की महिमा थी या ऐसा होना ही था कि शिशु की आपस में जकड़ी कोमल पलकें वास्तव में खुलने लगीं। पूरी खुल जाने पर मां ने देखा कि उसकी आंखों में ख़ून जमा है। उसने फिर एक और धार डाली । इस तरह दोनों आंखों में जमा ख़ून धीरे-धीरे साफ हो गया।
फिर जो निकलीं ऐश्वर्या राय सी ख़ूबसूरत नीली आंखें तो मां देख-देखकर निहाल हुई जा रही है।

मां का दूध बच्चे का संपूर्ण आहार है, यह तो सिद्ध है, लेकिन यह दवा भी है, इस उदाहरण से साबित हो गया।
मां के दूध में जो ताकत है वह गाय,भैंस,बकरी या डिब्बा बंद दूध में नहीं। इसकी एक और खासियत यह है कि यह बच्चे की अवस्था के हिसाब से रूप धारण कर लेता है , अर्थात यदि बच्चा समय से पहले पैदा हो गया तो यह भी वैसा ही उत्पादित होगा जैसा बच्चा पचा सके। मां के दूध से बच्चों का शारीरिक विकास तो ठीक प्रकार से होता ही है, मानसिक विकास के लिए भी यह सबसे उपयुक्त है। किसी महिला की गोद में बच्चा डाल देने भर से ही वह उसकी मां नहीं बन जाती, स्तनपान वह कड़ी है जो इस रिश्ते को जोड़ता है ।

अनादिकाल से ही मां के दूध को बच्चे के लिए अमृत माना गया है, किंतु आधुनिक समय में महिलाएं इससे कतराने लगी हैं। शरीर खराब ना होने देने की चाह हो या फिर कामकाजी होने के कारण समय का अभाव, नए ज़माने के अधिकांश नवजात शिशु मां के दूध से वंचित रहने को अभिशप्त हैं ।
यही कारण है कि हमें विश्व स्तनपान सप्ताह मनाने की ज़रूरत पड़ रही है। 1 अगस्त से 7 अगस्त तक यह सप्ताह मनाया जाएगा। हम सबकी जिम्मेदारी बनती है कि शिशुओं के नैसर्गिक अधिकार के प्रति उनकी माताओं को जागरूक करें।

 

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Manu Vashistha
Manu Vashistha
2 years ago

सही कहा आपने, छोटे बच्चों की आंखें दुखने (आई फ्लू) पर इस तरह का प्रयोग पुराने समय से करते रहे हैं। आयुर्वेद भी इसकी पुष्टि करता है। मां दूध को ऐसे ही अमृत नहीं माना गया बहुत गुणकारी होता है। तभी तो ललकारने के लिए “मां का दूध पिया है, छठी का दूध याद दिलाना” जैसी कहावतें बनी है।????????????