तेरे दीवानों में गिना जाऊँ। कम से कम ये शुमार बाक़ी रख।।

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ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

शकूर अनवर

लज़्ज़ते-इंतज़ार* बाक़ी रख।
तू मुझे बेक़रार बाक़ी रख।।
*
भूल जाऊँ तेरे सिवा सब कुछ।
इतना तो होशियार बाक़ी रख।।
*
ताजदारी* नहीं रही न सही।
कुछ न कुछ तो वक़ार* बाक़ी रख।।
*
तेरे दीवानों में गिना जाऊँ।
कम से कम ये शुमार बाक़ी रख।।
*
लो किनारा भी हो गया ओझल।
हौसला किर्दगार* बाक़ी रख।।
*
आपसी रंजिशों के दौर में हूंँ।
बाहमी* ऐतबार बाक़ी रख।।
*
जो भी जैसे खिले हैं फूल “अनवर”।
जो भी है ये बहार बाक़ी रख।।
*

लज़्ज़ते-इंतज़ार*प्रतीक्षा का आनंद
ताजदारी*बादशाही
वकार*वैभव
किर्दगार*ख़ुदा, ईश्वर
बाहमी*पारस्परिक

शकूर अनवर
9460851271

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श्रीराम पाण्डेय कोटा
श्रीराम पाण्डेय कोटा
2 years ago

अनवर साहब ने खूब कहा है कि हे परवरदिगार इस दुनिया में इंसान के विभिन्न रूप है यानि जाति, सम्प्रदाय में ,जैसे भी हैं ,इनको आबाद रख. बहुत सुंदर रचना