संवेदना की गहन अनूभूति ‘पथरीली झीलें’

पथरीली झीलें ग़ज़ल संग्रह में शायर श्री शकूर अनवर जीवन के विविध पक्ष को अपनी शायरी में उद्घाटित करते हैं। विविध विषयों के साथ वे विभिन्न मुद्दों पर संवाद करते हैं, जिनमें संवेदनशून्यता, मतलबीपन, दिखावटीपन आदि प्रमुख हैं। जीवन के कटु सत्य क्षणभंगुरता पर वे गंभीरता के साथ मानव को सीख देते हुए प्रस्तुत होते हैं, किन्तु इन सबके बीच शायर मन सद्भावना, प्रेम, भाईचारे व सामंजस्य बनाये रखने की बात कहता हुआ, मन के फासले मिटाते आगे बढ़ने को श्रेष्ठ मानता है।

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पथरीली झीलें

-डॉ. अनिता वर्मा-

डॉ अनिता वर्मा

– सह आचार्य (हिन्दी विभाग), राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा (राज.)

समकालीन शायरी के सशक्त हस्ताक्षर शकूर अनवर की शायरी संवेदनाओं की गहराई में डूबकर हमारे समक्ष प्रस्तुत हुई है। जीवन के यथार्थ से जुड़े विविध चित्र ग़ज़ल संग्रह पथरीली झीलें में चित्रित हुए हैं। शायर शकूर अनवर की शायरी विस्तृत फलक लिये हुए मानव जीवन की यात्रा के विविध पड़ावों के साथ आगे बढ़ती है, जिसमें मानव मन के कोमल भाव का स्पन्दन है, तो कहीं यथार्थ की पथरीली ज़मीन इनमें दृष्टव्य है। जीवन के विविध रंग यहाँ उकेरे गये हैं। प्रमुखतया इन ग़ज़लों में आम आदमी से जुड़े अनेक प्रश्न समानता का भाव, स्त्री विमर्श, अजनबीपन, मतलबपरस्ती, राजनीति, जीवन की विसंगतियाँ आदि को शायर ने अपनी ग़ज़लों में व्यक्त किया है। मानव मन को शायर ने बड़ी गहराई के साथ बाँचा है। यह गहन चिन्तन व अकुलाहट उनकी शायरी में स्थान-स्थान पर उभरती हुई दिखाई देती है। शायर इन सभी भावों को संवेदना के स्तर पर गहराई से अनुभूत करता है जो सीधे मर्म को स्पर्श करता है। मानव मन की पीड़ा व गहन वेदना भी इनकी ग़ज़लों में उजागर हुई है।

ज़िन्दगी की भीड़ में यूँ खो गया मेरा वजूद
जैसे मेरा ज़िन्दगी से कोई भी रिश्ता नहीं
सब को ही दो वक़्त की रोटी मिले इस देश में
ऐसा होना चाहिये, ऐसा मगर होता नहीं (पृ. 15 )

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पथरीली झीलें

भ्रष्टाचार, शोषण, रिश्वतखोरी, असमानता सभी पर बात करते हुए शायर अपनी ग़ज़लों में चिन्ता व्यक्त करते हैं। धर्म, जाति, घृणा, भेदभाव की दीवारें मिटाने की कोशिश को वे यूँ व्यक्त करते हैं-

घृणाओं से भरे हैं, दिल हमारे
ज़मी खाली न थी पैगम्बरों से
बनेगी फिर कोई ऊँची इमारत
हमें वंचित करेगी छप्परों से (पृ.67)

गगनचुम्बी इमारतों के रूप में द्रुत गति से फैल रहे कंकरीट के जंगल की ओर इशारा करते हुए शायर यहाँ उस गरीब की पीड़ा का दर्द बयाँ करता है, जिसके सिर से छप्पर रूपी छत भी हटा ली गई है। भौतिकतावादी युग में अर्थ की प्रधानता ने मनुष्य-मनुष्य के बीच गहरी खाईयाँ पैदा कर दी है। पड़ौसी एक-दूसरे से बेखबर है, असुरक्षा का भाव मानव मन में पनपा है; अजनबीपन का भाव गहराया है, यह चिन्तन का विषय है-

फसीलें सुरक्षा की ऐसी उठीं
छतों से छतें, घर से घर कट गये
कड़ी धूप से जो बचाते रहे
वो आँगन से अनवर शजर कट गये

(पृ.20)

कर्मशील बनने की प्रेरणास्पद शायरी भी यहाँ मिलती है जो निश्चित रूप से उत्साह के भाव का संचरण करती है। भाग्य के भरोसे बैठे रहना कोई अच्छी बात नहीं है, क्योंकि कर्मशील व्यक्ति ही अपनी मंजिल को पाता है, बशर्ते वह समर्पण भाव से कर्म पथ पर अग्रसर रहे, देखिये-

बदल सकते हैं, हम खुद अपना जीवन
मुक़द्दर से बंधा कोई नहीं है

(पृ.36)

पथरीली झीलें ग़ज़ल संग्रह में शायर श्री शकूर अनवर जीवन के विविध पक्ष को अपनी शायरी में उद्घाटित करते हैं। विविध विषयों के साथ वे विभिन्न मुद्दों पर संवाद करते हैं, जिनमें संवेदनशून्यता, मतलबीपन, दिखावटीपन आदि प्रमुख हैं। जीवन के कटु सत्य क्षणभंगुरता पर वे गंभीरता के साथ मानव को सीख देते हुए प्रस्तुत होते हैं, किन्तु इन सबके बीच शायर मन सद्भावना, प्रेम, भाईचारे व सामंजस्य बनाये रखने की बात कहता हुआ, मन के फासले मिटाते आगे बढ़ने को श्रेष्ठ मानता है।

अतीत की कड़वाहट भुला वे नवनिर्माण व नवसृजन का संदेश अपनी ग़ज़लों के माध्यम से देते हैं, दृढ़ निश्चय व अटल विश्वास के साथ किया गया कार्य अवश्य मंजिल तक पहुँचा देता है-

निकालना है समन्दर से क़ीमती मोती
मैं देखता हूँ उतरने से कौन रोकेगा

(पृ.57)

भाषा की दृष्टि से प्रस्तुत ग़ज़ल संग्रह सहज, सरल व प्रवाहमयी भाषा से गंभीर भाव को हृदय तक पहुँचा देता है। सीधी सरल भाषा से सजी ग़ज़लों में दुरूह बिम्ब व प्रतीक समृद्ध है जो सीधे नहीं दिखाई देते। कहा जा सकता है पथरीली झीलें श्री शकूर अनवर का महत्वपूर्ण ग़ज़ल संग्रह है, जिसमें मानवीय मूल्यों का सदेश अंतर्निहित है। संवेदना की गहराई, आमजन की पीड़ा व्यक्त है। आदरणीय शकूर अनवर को प्रस्तुत ग़ज़ल संग्रह के लिये हार्दिक शुभकामनाएँ व बधाई आगे भी हम सभी को ऐसी गंभीर व सार्थक रचनाएँ पढ़ने को मिलेगी तथा यह ग़ज़ल संग्रह निश्चित रूप से सुधि पाठकों के हृदय में अपनी जगह बनाते हुए सृजन धर्म के उद्देश्य को पूर्ण करेगा ऐसी मेरी कामना है।

jangal
जंगल सेहरा और समन्दर पुस्तक।

(जंगल सेहरा और समन्दर पुस्तक से साभार)

 

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प्रकाश सूना
प्रकाश सूना
2 years ago

ग़ज़ल विधा के सशक्त हस्ताक्षर श्री शकूर अनवर जी के ग़ज़ल संग्रह पथरीली झीलें पर विस्तृत समीक्षा से डा० अनिता वर्मा ने बहुत बारीकी से संग्रह का अध्ययन किया है और अपनी बेबाक टिप्पणी से इसका आकलन किया है. आदरणीय अनवर जी को तहेदिल से मुबारक़बाद और समीक्षक को भी बहुत बहुत साधुवाद जिन्होंने इस खूबसूरत ग़ज़ल संग्रह से पाठकों को अवगत कराया.