
-विष्णुदेव मंडल-

(स्वतंत्र पत्रकार चेन्नई)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते शनिवार को काशी तमिल संगमम के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि हम 130 करोड़ भारतीयों के लिए यह गौरव की बात है कि हमारे पास हजारों साल पुरानी भाषा तमिल है। उनहोंने तमिल और काशी के बीच पुरातन संबंध की जिक्र करते हुए कहा कि हमें पुरानी सभ्यता और संस्कृति को सहेजने की जरूरत है। पिछली सरकारों ने यह नहीं किया। जो सम्मान तमिल भाषा और संस्कृित को मिलना चाहिए थी वह अब तक नहीं मिल सका। तमिल काशी संगमम के आयोजन के सहारे मोदी ने तमिलनाडु के उन राजनीतिक दलों को भी आड़े हाथों लिया जो बात बात पर मौजूदा केंद्र सरकार पर तमिल विरोधी और हिंदी थोपने का आरोप लगाते रहें हैं!
गौरतलब है कि तमिलनाडु सरकार और उनके सहयोगी दलों द्वारा पिछले कुछ सालों से भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री मोदी पर तमिल विरोधी और हिंदी थोपने के आरोप लगाए हैं। गृह मंत्री अमित शाह द्वारा 2 अक्टूबर गांधी जयंती के अवसर पर मध्यप्रदेश में हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई की घोषणा के बाद तमिलनाडु के राजनेताओं ने हिंदी विरोध के नाम पर अलग-अलग जिलों में हिंदी विरोध के नाम पर इंपोज हिंदी के हैशटैग चलाया और हिंदी के विरोध में तमिलनाडु के जिला मुख्यालयों में प्रखंड मुख्यालय में धरना प्रदर्शन किया। जिनकी अगुआई मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के सुपुत्र उदय निधि स्टालिन कर रहे थे।

इतना ही नहीं तमिलनाडु सरकार और उनके सहयोगी दलों ने तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि के खिलाफ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को ज्ञापन भी सौंपा था। उन्होंने आर एन रवि को हटाने की मांग की थी। तमिलनाडु के राजनीतिक दलों ने आरोप लगाया था कि मौजूदा राज्यपाल आर्यन रवि केंद्र सरकार के एजेंट की तरह काम कर रहे हैं। वह सनातन धर्म के प्रचारक के रूप में काम कर रहे हैं और तमिल सभ्यता संस्कृति और भाषा को नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में भाजपा ने तमिलनाडु- काशी संगमम के माध्यम से यह संदेश देने की कोशिश की है कि केंद्र सरकार तमिलनाडु या तमिल भाषा और संस्कृति की विरोधी नहीं बल्कि भाजपा हर भाषा और संस्कृति की रक्षा और सम्मान के लिए सतत प्रयत्नशील है। बकौल भारतीय जनता पार्टी दक्षिण और उत्तर प्रदेश या फिर काशी की पुरातन संस्कृति के बीच धार्मिक सांस्कृतिक और पारंपरिक संबंध पौराणिक काल से चला आ रहा है उसे जोड़ने का प्रयास कर रही है। साथ ही तमिलनाडु के आवाम को यह संदेश भी देना चाहती है कि मौजूदा केंद्र सरकार तमिलनाडु और तमिल भाषा और यहाँ के रीति रिवाजों और परंपरा से उतनी ही जुड़ी हैं जितनी यहाँ के स्थानीय राजनीतिक पार्टियां।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री मोदी ने तमिल-काशी संगमम के उद्घाटन के दौरान तमिल राजनीतिक पार्टियों को नाम लिए बिना इस बात की जिक्र किया था कि अब वह दिन लद गये जो भाषा और क्षेत्रवाद के नाम पर लोगों को बांट दिया जाता था, लेकिन अब 130 करोड़ भारतीय एक भारत श्रेष्ठ भारत के इशारे पर चल रहे हैं। अब क्षेत्रवाद, जातिवाद, भाई भतीजावाद को पीछे छोड़ चुके हैं अब भाषाओं के आधार पर लोगों को नहीं बांटा जा सकता।
बहरहाल काशी तमिल संगमम के आयोजन आगामी एक महीने तक चलने वाला है। तमिलनाडु और केरल से भी काशी तमिल संगमम के लिए ट्रेन चलाई जा रही है। इस आयोजन को उत्तर भारत को दक्षिण से जोड़ने का एक प्रयास माना जा रहा है। दो सभ्यता और संस्कृति के मिलन एक दूसरे के परंपरा को समझने का यह एक अनूठा प्रयास है। इनके कई राजनीतिक मायने भी हैं। जहाँ तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टियां और उनके सहयोगी भारतीय जनता पार्टी को सांप्रदायिक बताने की प्रयास कर रही हैं वहीं दक्षिण भारत में मुरझाए कमल को सींचने के लिए भगवा पार्टी और प्रधानमंत्री अथक प्रयास कर रहे हैं।
काबिले गौर बात यह है कि अक्टूबर 2019 में प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ 2 पक्षीय वार्ता चेन्नई से 40 किलोमीटर दूर महाबलीपुरम में आयोजित की थी। जहां दोनों देशों के राष्ट्रीय प्रमुखों ने कई महत्वपूर्ण विषयों पर वार्ता की थी जिससे तमिलनाडु के पर्यटन में पर माकूल असर हुआ। ठीक उसी तरह प्रधानमंत्री मोदी आगामी 2024 आम चुनाव से पहले तमिलनाडु में मुरझाए कमल को खिलाने के लिए प्रयत्नशील नजर आ रहे हैं।

















