
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

चाहे कहीं से आये पंछी।।
लगते नहीं पराये पंछी।।
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उसका मन भी कोमल होगा।
जिसके मन को भाये पंछी।।
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मौसम के बंजारे बनकर।
पर्वत पार से आये पंछी।।
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हमको अपने भोलेपन का।
आईना दिख लाये पंछी।।
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इन्सानों की नीयत खोटी।
कैसे ऑंख मिलाये पंछी।।
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गंतव्यों की चाह तो देखो।
बस उड़ता ही जाये पंछी।।
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दूर किसी सुनसान खॅंडर में।
अपना शहर बसाये पंछी।।
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काबा काशी छोड़ के “अनवर”।
मेरी छत पर आये पंछी।।
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शकूर अनवर
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बहुत ही उम्दा ग़ज़ल… मुबारक़बाद लें
-प्रकाश सूना