
-राजेश खंडेलवाल-

(स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार)
भरतपुर. दुनिया भर में पक्षियों की वजह से अपनी खासी पहचान रखने वाले केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान का विश्व विरासत (वर्ल्ड हेरिटेज साइट) का दर्जा बचा रहेगा या छिन जाएगा इसका जल्द ही निर्णय हो जाएगा। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की 3 सदस्यीय टीम केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान पहुंच गई है और 17 फरवरी तक उद्यान का हर पहलू से निरीक्षण करेगी। जल संकट से जूझ रहे केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को पूर्व में आईयूसीएन ने एक चेतावनी भरा पत्र भेजा था, जिसके बाद यहां के हालात देखने के लिए टीम घना पहुंची है। निरीक्षण के बाद टीम यहां की रिपोर्ट आईयूसीएन को सौंपेगी और उसके बाद तय होगा कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को विश्व विरासत का दर्जा जारी रखना चाहिए या छीन लेना चाहिए।
तीन सदस्यीय टीम कर रही निरीक्षण
आईयूसीएन की रिएक्टिव मिशन टीम भरतपुर पहुंची है। तीन सदस्यीय टीम में दो सदस्य ब्रिटेन व मंगोलिया से हैं। जबकि एक सदस्य वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून से हैं। ये टीम 13 से 17 फरवरी तक उद्यान का निरीक्षण करेगी। टीम यहां पानी का प्रबंधन, उसकी उपलब्धता, यहां आने वाली पक्षियों की प्रजाति, कम हो रही प्रजाति, जैव विविधता समेत तमाम पहलुओं पर बारीकी से जानकारी जुटा रही। विभागीय अधिकारियों से चर्चा के साथ ही टीम के सदस्य खुद उद्यान के अलग अलग ब्लॉक का निरीक्षण कर रहे हैं।
आईयूसीएन को सौंपेंगे रिपोर्ट
घना के डीएफओ नाहर सिंह ने बताया कि टीम के सदस्य यहां 17 तक निरीक्षण करने के बाद आईयूसीएन को अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे। उस रिपोर्ट पर ही निर्भर करेगा कि उद्यान को भविष्य में वर्ल्ड हेरिटेज साइट की सूची में शामिल रखा जाएगा या बाहर कर दिया जाएगा।
फैक्ट फाइल
-28.73 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान
-वर्ष 1981 में संरक्षित पक्षी अभ्यारण्य घोषित किया गया
-वर्ष 1985 में वर्ड हैरिटेज साइट/ विश्व धरोहर घोषित किया गया
-उद्यान का निर्माण 250 वर्ष पूर्व कराया गया था
ये भी जानें
-घना में स्तनधारी जीवों की प्रजातियां 34
-वनस्पतियों की प्रजाति 372
-मछली की 57 प्रजातियां मौजूद हैं
जल संकट से बढ़ा अस्तित्व पर खतरा
गौरतलब है कि पहले उद्यान को पंचाना बांध से भरपूर मिलता था। उसमें भरपूर फूड भी साथ आता, जिसे पक्षी बहुत पसंद करते। लेकिन जब से पांचाना बांध की दीवारें ऊंची की गई है और पानी को लेकर राजनीति शुरू हुई है तब से घना को पांचना का पानी यदा कदा ही मिल पाता है। जिसकी भरपाई गोवर्धन ड्रेन और चंबल पेयजल योजना से करने का प्रयास किया जाता है। जबकि घना को हर वर्ष करीब 550 एमसीएफटी पानी की जरूरत होती है। गोवर्धन ड्रेन और चंबल से इसकी पूर्ति करने का प्रयास किया जाता है। गत वर्ष तो करौली के पांचना बांध से 226 एमसीएफटी पानी मिल गया था। इस बार लौटते हुए मानसून से उद्यान को अच्छी मात्रा में पानी मिल गया। अन्यथा बीते करीब 20 वर्षों में कभी भी घना को जरूरत का पूरा पानी नहीं मिला। अब हालात ये हो गए हैं कि उद्यान के वर्ल्ड हेरिटेज साइट के दर्जा पर संकट खड़ा हो गया है।
घना में चीतलों को शिकार बना रहे कुत्ते
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में चीतलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए करीब 750 चीतलों को टाइगर रिजर्व में शिफ्ट किया जा रहा है। उधर, अब घना की दीवार फांद कर आवारा कुत्ते चीतलों को शिकार बना रहे हैं। एक वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर ने चीतलों का शिकार करते कुत्तों के फोटो क्लिक किए हैं। उद्यान की चारदीवारी की ऊंचाई करीब 7 फीट है। दीवार कूदकर आवारा कुत्ते घना में पहुंच रहे हैं। उद्यान में चीतलों का शिकार करते कुत्तों का दो साल पहले भी शिकार करते हुए फोटो वायरल हुआ था। उसके बाद उद्यान प्रशासन ने आवारा कुत्तों को पकड़वाकर बाहर करवाया था, लेकिन आवारा कुत्तों को रोकने के कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हुए। घना के डीएफओ नाहर सिंह ने इस पर कमेंट करने से इनकार कर दिया। उद्यान में 4 हजार से अधिक चीतल हैं। यहां से करीब 750 चीतलों को रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व व मुकुंदरा टाइगर रिजर्व शिफ्ट किया जा रहा है। अब तक 240 चीतलों को शिफ्ट किया जा चुका है।
कूनो के राष्ट्रीय उद्यान में विदेश से चीते मंगाए गए हैं,कोटा के निकट मुकुन्दरा अभ्यारण में टाइगर रिजर्व बनाया जा रहा है लेकिन घना पक्षी बिहार की दुर्दशा पर आंसू बहाने वाला कोई नहीं है,