
-डाँ आदित्य कुमार गुप्ता-

मन से जीते मन से हारे,
मन की दुनियाँ बहुत निराली।
मन ही सोये मन ही जागे
मन सबकी करता रखवाली।।
सुख-दुख के नित बंधन बाँधे
खुशियों के यह दीप जलाये
पानी में भी आग लगा दे
क्षण भर में नभ में पँहुचाये।।
राजा-रंक बने पल भर में,
पल में मिलन कराये आली।
पल में रोता, हँसता पल में,
मन की दुनियाँ बहुत निराली।।1।
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जीती बाजी हार जाय मन,
हारी बाजी पुन:जीत ले ।
भर जाये उत्साह,ओज से,
तो सारा संसार जीत ले।।
इस मन से संसार अनोखा,
रचता रहता नित प्रति मानव
क्षण भर में देवत्व धार ले,
क्षण भर में बन जाता दानव।।
मन का खेल समझना मुश्किल,
चहुँ दिश फैले मन की लाली ।
जाग्रत रखिये मन को भैया
मन की दुनियाँ बहुत निराली।।2।
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मन ही शत्रु बनाने वाला,
मन ही मीत बनाने वाला।
मन ही है भटकाने वाला,
मन ही राह बताने वाला।।
मन ही चाह जगाने वाला,
मन आहें उपजाने वाला।
मन गुत्थी उलझाने वाला,
मन ही है सुलझाने वाला।।
जब मन व्यसनों में फँस जाता,
तब करवा देता बदहाली।
मन मानव को शिखर चढ़ा दे,
मन की दुनियाँ बहुत निराली।।3।
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पाप-सिन्धु में जब डूबे मन,
तब दुष्कृत्य किया करता है।
काम वासनाओं में फँसकर,
कामुक नृत्य किया करता है।।
मन ही दुर्गति स्वयं कराले,
मन ही सद्गति को अपनाले।
त्याग ध्वंस को चले सृजन पर,
तब यह ऊँचे ख़्वाब सजाले।।
जब डूबे नैराश्य-गर्त में,
तब हो जाता खाली -खाली।
मन की मस्ती का क्या कहना,
मन की दुनियाँ बहुत निराली l
डाँ आदित्य कुमार गुप्ता
बी-38 मोतीनगर विस्तार थेगड़ा रोड़ बोरखेड़़ा, कोटा राजस्थान ।
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बहुत भावपूर्ण गीत रचे हैं । निरंतर इसी तरह अपनी गति बनाए रखें सर ।