
– विवेक कुमार मिश्र-

सुबह – सुबह की चाय
सबसे कीमती चाय होती
सुबह – सुबह चाय मिल जाएं
फिर भला दिन के लिए क्या चाहिए
सुबह की चाय जिंदगी सी होती
आंख खुलते एक सुकून का पल रचती कि
चाय पर दुनिया है
यहां से जिंदगी और कथा शुरू हो जाती
एक दूसरे को अपनी – अपनी दुनिया
और अपनी कथा सुनाती
हम केवल अपनी ही नहीं सुनते
अपने भीतर ही तो अन्य संसार समाया है
भला हम कहां संसार से बाहर हैं
जो हमारा संसार है उसमें दूसरे भी तो हैं
और दूसरों के अस्तित्व के साथ
हमारा अस्तित्व और संवाद
अनकहे भी चलता रहता है
चाय पर तो इस तरह चल पड़ता कि
जन्मों से परिचित हो और बस चाय पर मिल गये
इस तरह चाय पर संसार बस जाता कि
कुछ भी अलग नहीं लगता
चाय है तो चाय पर सब सहज ही चल पड़ता
कुछ उसी तरह जैसे कि
जिंदगी और सांस किस रास्ते पर हैं
कभी कहते नहीं पर साथ – साथ चलते रहते हैं
दुनिया को जानने समझने के लिए
चाय एक जरूरत की तरह आती है
सुबह की चाय अपने हर घुंट में
दिन का पूरा ढ़ांचा रखती है कि
क्या – क्या करना है
मिटिंग फाइल और दुनिया सब कुछ
सुबह की चाय में दर्ज हो जाती
सुबह की चाय एक बड़ी चाय होती
जहां कोई हां ना का प्रश्न नहीं होता
वल्कि असली ताजगी और चाय की कथा
सुबह की चाय से ही शुरू होती
आज की तकनीकी भाषा में कहें तो
सुबह की चाय के साथ
चाय पर दुनिया अपलोड हो जाती…।
– विवेक कुमार मिश्र
(सह आचार्य हिंदी राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)
F-9, समृद्धि नगर स्पेशल , बारां रोड , कोटा -324002(राज.)


















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