ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
ग़म से लिपटे हुए दिन रात लिये फिरता हूंँ।
दर-ब-दर* शहर में हालात लिये फिरता हूंँ।।
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कोहसारों* की कड़ी धूप में दिन ढलता है।
दश्तो-सहरा* की सियाह रात लिये फिरता हूंँ।।
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ये ग़मे-इश्क़* ज़माने की बड़ी दौलत है।
जहे-क़िस्मतकि ये सौग़ात लिये फिरता हूंँ।।
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अपनी पहचान का इन्कार नहीं मानूॅंगा।
अपनी पहचान का इस्बात* लिये फिरता हूंँ।।
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साॅंस लेने ही नहीं देता ज़माना मुझको।
हर क़दम पर ही नई मात लिये फिरता हूंँ।।
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दिल में जज़्बात* का तूफ़ान उठा है “अनवर”।
इसलिये ऑंख में बरसात लिये फिरता हूंँ।।
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ददर-ब-दर*द्वार-द्वार
कोहसारों*पहाड़ की तलहटी
दश्तो सहरा*जंगल और रेगिस्तान
ग़मे इश्क़*मुहब्बत का गम
जहे-क़िस्मत*सौभाग्य से
सौग़ात*उपहार
इस्बात*सबूत
जज़्बात*भावों का जोश
शकूर अनवर
9460851271
शकूर अनवर साहब कोटा नगर के नामचीन हस्ती हैं आपके नगमे जिंदगी की गहराइयों तक चोट करते हैं