मिज़ाज बिगड़ा हुआ था सभी परिंदों का। चमन में फिर किसी सय्याद* की दुहाई थी।।

shakoor anwar 129
शकूर अनवर

ग़ज़ल

शकूर अनवर

किस अहतमाम* से ख़ुद मौत लेने आई थी।
ये ज़िंदगी भी तो अपनी नहीं पराई थी।।
*
ऐ चाॅंद जिसके मुक़ाबिल* तू शर्मसार* रहा।
वहाॅं पे हमने भी तक़दीर आज़माई थी।।
*
ग़ज़ल के हुस्न से दिल को सुकूॅं मयस्सर था।
ग़ज़ल के जिस्म से बरसों की आशनाई* थी।।
*
ये बात तर्के तअल्लुक़* के बाद अब सूझी।
कि उससे मिलते भी रहते तो क्या बुराई थी।।
*
मिज़ाज बिगड़ा हुआ था सभी परिंदों का।
चमन में फिर किसी सय्याद* की दुहाई थी।।
*
गुज़र गई है क़फ़स में भी ताज़गी देकर।
हवा भी लगता है मेरे चमन से आई थी।।
*
मैं क्यूॅं फ़साना ए ग़म बार बार दोहराता।
मेरी कहानी तो “अनवर” सुनी सुनाई थी।।
*

अहतमाम* बंदोबस्त इंतजाम
मुक़ाबिल* मुक़ाबले में
शर्मसार*शर्मिंदा
आशनाई* प्रेम परिचय
तर्के तअल्लुक़* संबंध विच्छेद
सय्याद*शिकारी चिड़ी मार
क़फ़स* पिंजरा

शकूर अनवर

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D K Sharma
D K Sharma
2 years ago

बहुत खूब अनवर साहब। आप भी क्या खूब लिखते हैं।

Abdul Mueed Khan
Abdul Mueed Khan
2 years ago

सादा और नफी़स अंदाज़ में बहतरीन जज़्बातों की अ़क्कासी
शानदार… अनवर साह़ब…????????
अल्लाह आपको उम्र ए दराज़ अता फ़रमाए।
आमीन।