मैं चला जाऊॅं तेरे शहर से इक रोज़ मगर। हर ख़ुशी तेरी मेरे साथ चली जायेगी।।

shakoor anwar 129
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

चाॅंद तारों से सजी रात चली जायेगी।
अब तो आजा कि ये बारात चली जायेगी।।

*
मैं तो आदी* हूॅं शबे हिज्र का ग़म सह लूॅंगा।
तू न आया तो तेरी बात चली जायेगी।
*

ऑंख लगते ही वो ख़्वाबों में चले आयेंगे।
ऑंख खुलते ही मुलाक़ात चली जायेगी।।

*
मैं चला जाऊॅं तेरे शहर से इक रोज़ मगर।
हर ख़ुशी तेरी मेरे साथ चली जायेगी।।

*
दिल को तड़पाके गुज़रते हैं ये मौसम “अनवर”।
ख़ून रुलवाएगी बरसात चली जायेगी।।
*

आदी* आदत होना

शकूर अनवर

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Neelam
Neelam
2 years ago

वाह क्या बात बहुत सुंदर मन को छूने वाली गज़ल