
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
चाॅंद तारों से सजी रात चली जायेगी।
अब तो आजा कि ये बारात चली जायेगी।।
*
मैं तो आदी* हूॅं शबे हिज्र का ग़म सह लूॅंगा।
तू न आया तो तेरी बात चली जायेगी।
*
ऑंख लगते ही वो ख़्वाबों में चले आयेंगे।
ऑंख खुलते ही मुलाक़ात चली जायेगी।।
*
मैं चला जाऊॅं तेरे शहर से इक रोज़ मगर।
हर ख़ुशी तेरी मेरे साथ चली जायेगी।।
*
दिल को तड़पाके गुज़रते हैं ये मौसम “अनवर”।
ख़ून रुलवाएगी बरसात चली जायेगी।।
*
आदी* आदत होना
शकूर अनवर
Advertisement


















वाह क्या बात बहुत सुंदर मन को छूने वाली गज़ल