ब्रज का नाश्ता

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-मनु वाशिष्ठ-

manu vashishth
मनु वशिष्ठ

कोई मुझसे पूछे ब्रज क्षेत्र का मुख्य नाश्ता क्या है? तो मुझे तो ब्रज क्षेत्र में मुख्य नाश्ता जलेबी, कचौरी/बेड़ई ही लगता है। यहां ब्रज क्षेत्र में, आपकी डाइनिंग टेबल पर प्लेट में सजी गोरी अंग्रेज बाला सी इठलाती ब्रेड मक्खन को कोई तवज्जो नहीं देता। इसकी पूछ होती होगी मेट्रो सिटीज में ब्रज वासियों की बला से, यहां तो राज श्री राधे रानी का, और नाश्ते में स्वाद जलेबी, कचौरी/ बेड़ई का। यमुना जी में स्नान कर लौटते हुए कई भक्त, जलेबी बेड़ई को उदरस्थ किए बिना आगे नहीं बढ़ सकते। हलवाई भी भोर से ही काम पर लग जाते हैं। आप कितनी भी जल्दी में हों, बस, ट्रेन पकड़नी हो, कोर्ट कचहरी में तारीख हो, लेकिन किसी दुकान की लोहे की कढ़ाही से आती हुई, गरम मसालेदार आलू, खट्टी मीठी कद्दू की सब्जी और बेड़ई की महक आपके दिमाग को चेतना शून्य और पैरों में मानो बेड़ी डाल देते हैं। आप सब कुछ भूल दुकान की ओर बिन डोर खिंचे चले जाते हैं। गरम तेल में घूमर नृत्य करती एक एक बेड़ई, “छन छनन छन” की आवाज के साथ झूमती हुई जब आपकी आंखों के सामने से गुजरती हैं, फिर एक साथ ग्रुप बना एक लय में सिंकती हैं, तो आप उसके सुनहरे तांबई रंग को देख जड़वत् खड़े रह जाते हैं।
ना कोई मोल ना भाव बस! इंतजार में कि कब कृपा प्राप्त होगी। ऐसी लगन तो मंदिर में भी नहीं लगी और ऐसे में दुकानदार का कारिंदा आप पर जैसे मेहरबान हो कर सब्जी, बेड़ई का दौना आप के हाथ में थमा देता है, इतनी मारामारी के बीच कचौड़ी/बेड़ई का दौना मिलना, अहोभाग्य! फिर आती है बारी जलेबी की, तब तक बेसुध व्यक्ति अपने होश में आ चुका होता है। तब वह जिम्मेदार व्यक्ति की तरह घर के लिए भी पैक करवाने का आदेश जारी कर, स्वयं दौने की सफाई में जुटा रहता है।
किसी जलेबी कचौरी की मशहूर दुकान पर गौर कीजिए, हाई बी पी वाला उतावला व्यक्ति भी यहां धैर्य धारण किए तपस्वी जान पड़ता है। यहां जाति, धर्म, अमीर, गरीब, क्षेत्र से ऊपर उठकर सब बड़े प्रेम से भाईचारे के साथ अपनी अपनी बारी का इंतजार करते हैं। लेकिन लखनवी अंदाज “पहले आप, पहले आप” वाली विचारधारा यहां लागू नहीं होती, क्योंकि इतनी देर में तो बेड़ई की परात खाली हो जाती है। राधे राधे! फिर मिलेंगे ब्रज क्षेत्र के किसी और विषय को लेकर।
__ मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान

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श्रीराम पाण्डेय कोटा
श्रीराम पाण्डेय कोटा
1 year ago

मथुरा के होली गेट पर बेढई और रसीली जलेबी का ज़ायका लेने का अवसर मुझे भी मिला है, देशी घी में बनी जलेबी -दूध का स्वाद तो मथुरा जैसा शायद कहीं नसीब होता है

Manu Vashistha
Manu Vashistha

जी सही कहा आपने, शुद्ध सात्विक पकवानों में ब्रज क्षेत्र का जवाब नहीं। राधे राधे ????