ग़ज़ल
-डॉ.रामावतार सागर-

कभी थे खुशनुमा खाते,कभी थे गमज़दा खाते।
हमारे हिस्से में आये,हमेशा बदनुमा खाते।
दौलत उसकी क्या गिन पाएगा सारा महकमा भी,
विदेशों तक में लॉकर और जिसके हो जमा खाते।
किसी ई.डी. का हम पर कोई भी छापा नहीं पड़ता,
कमाई गम की दौलत है,रखे हैं बेवफा खाते।
गजब सेविंग हमारी है,मुहब्बत की कमाई में,
हमारे नाम पर कितनों ने खोले गुमशुदा खाते।
अजब सी कशमकश है जिंदगी के नाम पर दुनियां,
भरोसा दीन पर ईमान पर रक्खा खुदा खाते।
हमारा एक ही खाता है वो भी है खुला खाता,
वो शायद और होते है,जो रखते हैं जुदा खाते।
दुआएं साथ अपने है बुजुर्गों की सदा सागर,
हमारे पास हैं वालिद, हमारे वालिदा खाते।
डॉ.रामावतार सागर
कोटा, राजस्थान
9414317171