– डॉ. रमेश चंद मीणा-

बया; बुनकर नीड़ का,
मार्गदर्शक युगों का,
प्रेरणा पा बया से; फिर,
आदिमानव ने बनाया ,
घर बया के घौसला सा ।
कर्म में हो जरा सा,
आशियाना प्रेममय,
जीत ली दुनिया हो ज्यों,
ताजमहल भी है क्या?
नीड़ में है चमचमाते,
जुगनुओं से सद्य जीवन,
अनवरत ,गति-प्रगतिमय,
संघर्षमय है अटल जीवन।
तिनकों के, ताने-बाने से-
गुम्फित हैं, जीवन सारमय,
छिपी है, नीड़ के तिनकों में,
आरोही-अवरोही, मृदुल लय,
और सुंदर सी पहेली ।
जीवन छवि,अंधेरी-उजली,
नीड़ की खिड़कियों से,
झाँकता जीवन है ज्यों,
देखती है फिर बया,
अठखेलियां बचपन सुलभ,
कर स्पर्श,कनखियों से ।
अनुपम कृति,प्रकृति की,
सिर पर छत्र,सृष्टि का,
नीड़ बुनने में बया,
सिखाती है कौशल नया,
नीड़ की सलवटों में-
लुका-छिपी खेलता,
उघड़ता श्रम -सौंदर्य ,
सभ्यता बनती नयी ।
स्मृत रहे,समाज को,
कर्ममय-जीवन सृजन,
घौसला यह बया का ,
अनुपम मधुर उपहार ।।
– डॉ. रमेश चंद मीणा
सहायक आचार्य- चित्रकला
राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा(राज.)
मो.न. -9816083135
rmesh8672@gmail.com
सुन्दर