पढ़ेंगे एक शब्दहीन भाषा, मन की किताब पर, मन की नज़र से।

sunset
फोटो नीलम

-डॉ.प्रतिभा सिंह-

pratibha singh
डॉ.प्रतिभा सिंह

सुनो न!
एक भीगी हुई शाम में
जब काले बादलों से आसमान आच्छादित हो
और ठंडी हवाओं से ताल मिलाकर
फूल और पत्ते झूम रहे हों
पंक्तिबद्ध अनुशासित पंछियों का झुंड
भाग रहा हो नीड़ की ओर
तब तुम मेरे घर आना
हम खिड़की के पास बैठकर
थोड़ा सा भींगते हुए
पियेंगे एक कप चाय
और पढ़ेंगे एक शब्दहीन भाषा
मन की किताब पर
मन की नज़र से।

डॉ.प्रतिभा सिंह

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श्रीराम पाण्डेय कोटा
श्रीराम पाण्डेय कोटा
2 years ago

गागर में सागर भरने का प्रयास किया है कवियत्री डाक्टर प्रतिभा सिंह ने सुनो ना …एक भीगी हुई शाम में