
-अखिलेश कुमार-

राजस्थान किलों और राजमहलों की धरती रही है जहां उत्कृष्ट वास्तुशिल्प, विविध प्रकार की कलाओं और कलाकारों को संरक्षण मिलता रहा है। राजमहलों की सजावट के लिए चित्रकला, प्रस्थर कला, काष्ठ कला और शीशे की जड़ाई जैसी कलाओं ने अपना उत्कृष्ट रूप लिया था। राजाओं द्वारा कलाकारों और शिल्पकारों को खूब प्रोत्साहन एवम् संरक्षण प्रदान किया जाता था।

कोटा के राजमहलों में शिल्प कलाओं को उत्कृष्ठ रूप में देखा जा सकता है। यहां शीशमहल भी बनवाए गए थे। जहां बेगड़ी परिवार ने पीढ़ीगत रूप से अपनी शिल्पकला से राजमहलों में शीशे की जड़ाई कर उन्हे भव्य स्वरूप प्रदान किया था। पारंपरिक रूप से रत्न तराशने और उनकी कलात्मक जड़ाई का व्यवसाय करने वाले शिल्पकारों को बेगड़ी कहा जाता है।

बेगड़ी परिवार ने कोटा के गढ़ के शीश महलों में कांच पर डाक पन्नी की जड़ाई की शुरुआत की थी। रियासत काल में यह कला खूब फली- फूली। कांच पर डाक पन्नी की जड़ाई का कार्य मंदिरों हवेलियों में भी खूब हुआ। इस कला में कांच पर चांदी तांबा की पन्नियों को जड़ाई इस प्रकार की जाती थी जिससे वह रत्न का आभास पैदा करे। यह काफी श्रमसाध्य कला है। एक शिल्पकार को डाक पन्नी की कला सीखने के लिए गुरु शिष्य परंपरा में वर्षों अभ्यास करना पड़ता है।

शिल्पकार अखिलेश बेगड़ी ने कांच पर डाक पन्नी की जड़ाई की प्रक्रिया से क्रमवार अवगत कराया।
सामग्री – उत्तम गुणवत्ता वाली प्लेन ग्लास शीट, तेल रंग, मीनकारी के रंग, चांदी तांबा एल्यूमीनियम की पतली और माध्यम मोटाई की पन्नियां (शीट्स), सादा कागज की शीट, पेन पेंसिल, जियोमेट्री उपकरण, कपास, कैंची, चिमटियां, ग्लू, डाकपन्नी घोटने के उपकरण इत्यादि।

1. सर्वप्रथम एक कागज की शीट पर पेंसिल से कलाकृति का नक्शा बनाया जाता है। इस नक्शे पर प्लेन ग्लास शीट पर रखकर आयल पेंट से रेखाचित्र उकेर लिया जाता है।
2. कलाकृति में जिन स्थानों पर डाकपन्नी की जड़ाई की जानी है उन स्थानों को छोड़कर शेष भाग में वांछित रंग भर लिए जाते है। इसी प्रकार यदि यह कलाकृति मिरर (दर्पण) लाइन से तैयार करनी हो तो पहले कांच पर रसायनिक प्रक्रिया से चांदी की कलई चढ़ा ली जाती है। कलई वाले कच्चे हिस्से पर आयल पेंट से वांछित लाइन ड्राइंग बना ली जाती है। शेष हिस्से को साफ कर दिया जाता है।

3. अब कलाकृति जड़ाई के लिए तैयार है। रंगीन डाक पन्नियों को वांछित आकार में कैंची से काट लिया जाता है। विशेष रंगों के लिए जड़ाई वाले स्थान पर मीनाकारी कर दी जाती है। अब पन्नियों को विशेष विधि से घोटकर अवतल आकार दे दिया जाता है। तैयार पन्नियों को सावधानी से ग्लू की सहायता से ग्लास शीट पर जड़ दिया जाता है। इसे स्थिर और स्थाई रूप देने के लिए उसपर पतली पन्नी की शीट चिपकाकर पैक कर दिया जाता है। चूंकि पन्नियां नाजुक होती है इसलिए उन्हें सुरक्षित रखने के लिए ग्लास शीट के चारों ओर चार सूत मोटाई और आधा सेमी चैड़ाई की ग्लास स्ट्रिप लगाकर उक्त मोटाई तक कपास रख दिया जाता है इसके बाद उसपर एक प्लेन ग्लास शीट या बोर्ड चिपकाकर उसे एक बॉक्स का आकार दे दिया जाता है।
5. अंत में कलाकृति की सुरक्षा हेतु उसपर लकड़ी का फ्रेम फिक्स कर दिया जाता है।
इस प्रकार जड़ी गई डाक पन्नियां सामने की ओर रत्नों जैसी आभा बिखेरकर कलाप्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं।

(लेखक अखिलेश कुमार फोटो जर्नलिस्ट के अलावा कांच पर डाकपन्नी की जड़ाई के पारंगत कलाकार भी हैं।)
कांच पर डाक पन्नी की जड़ाई की नायाब तस्वीरें और इस कला की दुर्लभ जानकारी के लिए अखिलेश जी को मुबारकबाद आपका आभार
शकूर अनवर