
-प्रतिभा नैथानी-

महान उपन्यासकार शरत चंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म 15 सितंबर 1876 को हुगली जिले के देबानंदपुर ग्राम में हुआ था। शरत चंद्र का जीवन बहुत गरीबी और कष्टों से भरा हुआ था, लेकिन उनकी लेखनी बहुत समृद्ध थी। वह जो कुछ भी लिखते तुरन्त पत्र- पत्रिकाओं में छप जाता। उनकी भाषा शैली और लेखन का स्तर देखकर लोगों ने यह मानना शुरू कर दिया था कि निश्चित ही यह रवींद्रनाथ टैगोर हैं जो नाम बदलकर लिख रहे हैं। नाटक, निबंध, कहानी ,आलेख, उपन्यास सभी कुछ तो शामिल था उनके लेखन में।
एक समय था जब शरत चंद्र अपने ससुराल भागलपुर में रहा करते थे। घोर आर्थिक संकट से गुजरते हुए उन्हें काम मिला एक बच्चे को कहानी सुनाने का। बच्चा बहुत चंचल था। उसके धनी ननिहाल वालों को यह बिल्कुल पसंद ना था कि अन्य बच्चों की तरह वह भी दिन भर बायस्कोप वालों के पीछे दौड़ता फिरे या अमरूद के पेड़ों पर चढ़कर फल तोड़े। बहरहाल शरत चंद्र के सानिध्य में उस चंचल बच्चे के व्यक्तित्व में काफी गंभीरता आ गई। बड़े होने पर कुमुद कुमार गांगुली नाम का वह लड़का मुंबई पहुंच गया, और हिंदी सिनेमा में प्रसिद्ध हुआ अशोक कुमार के नाम से।
अपनी किसी कहानी पर बन रही फिल्म के बारे में चर्चा करने शरत चंद्र एक बार मुंबई के किसी स्टूडियो में उपस्थित थे। वहीं अशोक कुमार ने उन्हें देखा। वह उन्हें कुछ पहचाने से लगे तो पूछ लिया कि क्या आप कभी भागलपुर में रहते थे ? अशोक कुमार उनका नाम जानना चाहते थे। मैं ‘शरत चंद्र चट्टोपाध्याय हूं’ सुनकर वह भौचक रह गए। सहसा उन्हें विश्वास ना आया कि बांग्ला भाषा का इतना बड़ा साहित्यकार कभी उन्हें कहानी सुनाने आया करता था।
शरत चंद्र के सबसे प्रसिद्ध उपन्यास देवदास पर तो अब तक नौ बार फिल्म बन चुकी है। परिणीता भी शायद तीन बार बन चुकी है, सुखद यह कि 1953 में अशोक कुमार ने ही इसमें नायक की भूमिका निभाई थी। देवदास और परिणीता के अलावा श्रीकांत, चरित्रहीन, पथ के दावेदार, विराज बहू,मंझली दीदी, बड़ी दीदी,वैरागी, लेन-देन, गृहदाह , शेष प्रश्न , दर्पचूर्ण, अनुराधा उनकी कुछ अन्य प्रसिद्ध रचनाएं हैं, जिन पर पीसी बरुआ, बिमल राय, ऋषिकेश मुखर्जी, शक्ति सामंत, बासु चटर्जी जैसे महान निर्देशकों ने फिल्में बनाई।
शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय का रचना संसार बहुत बड़ा है। लगभग एक सदी बाद भी साहित्य प्रेमी उन्हें भूले नहीं है। भागलपुर स्थित उनके घर लोग उन्हें आज भी श्रद्धांजलि देने आते हैं।
Pratibha naithani
शरद चंद्र के उपन्यास के पन्नों खोलने के बाद, डाइनिंग टेबल में रखा खाना ठंडा हो जाता था किन्तु ,पन्ना पलटने की भूख मंद नहीं होती थी.ऐसे साहित्य के सृजनकर्ता थे, शरद चंद्र बाबू.
विनम्र श्रद्धांजलि
सही कहा आपने। शरत बाबू और विमल मित्र ऐसे दो कथाकार हुए हैं जिनको पढना ऐसा लगता था जैसे अपने आसपास यह घटित हो रहा है।