
-द ओपिनियन-
निर्वाचन आयोग ने शुक्रवार को अपने एक फैसले में शिवसेना से अलग हुए एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को असली पार्टी मानते हुए नाम और चुनाव चिह्न शिंदे गुट को आवंटित कर दिया। चुनाव आयोग का फैसला कुछ तथ्यों व मानदंडों के आधार पर आया है और उसमें शिंदे गुट बाजी मार ले गया। उद्धव ठाकरे के लिए यह एक झटका है लेकिन यह एक सच्चाई भी है कि उनके साथ बहुमत नहीं रहा। आयोग ने लम्बी सुनवाई के बाद अपना फैसला सुनाया है। अब सवाल यह है कि क्या उद्धव जनता की अदालत में यह साबित कर पाएंगे कि असली शिवसेना उनके नेतृत्व वाली पार्टी है फिर चुनाव चिह्न कुछ भी हो। वर्षों पहले श्रीमती इंदिरा गांधी ने यह साबित किया था। वे बदले चुनाव चिह्न के साथ ही चुनाव मैदान में उतरीं और विजयी बनी। शासन किया और इतिहास रचा। महाराष्ट्र के लोगों के दिलों पर राज करना है तो उद्धव को भी ऐसा ही कोई चमत्कार कर दिखाना होगा। क्या वे वैसी ही हिम्मत और राजनीतिक चातुर्य दिखा सकेंगे।

देश के वरिष्ठ नेता व राकांपा प्रमुख शरद पवार ने भी उद्धव ठाकरे को कुछ ऐसी ही सलाह दी है। उन्होंने भी इंदिरा गांधी का जिक्र किया और कहा कि कांग्रेस में विभाजन के बाद दो बैलों की जोड़ी का चुनाव चिह्न उनसे छिन गया था और हाथ चुनाव चिह्न मिला। लोगों ने इसे स्वीकार कर लिया। पवार का यह कहना सार्थक बात है। यह सभी जानते हैं कि हाथ के आगे बैलों की जोड़ी कितनी पीछे छूट गई थी। मायने यह बात रखती है कि जनता संबंधित नेता को कितना अपना मानती है।

पवार ने कहा भी कि यह चुनाव आयोग का फैसला है, एक बार फैसला हो गया, तो इस पर बहस नहीं हो सकती. इसे स्वीकार कीजिए और नया चिह्न लीजिए। इसका बहुत ज्यादा असर नहीं होगा, क्योंकि लोग नया सिंबल स्वीकार कर लेंगे। बस कुछ दिनों तक इस पर चर्चा होगी। हालांकि उद्धव कह रहे हैं कि वह चुनाव आयोग के फैसले खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाएंगे। उद्धव के इस कदम पर वंचित बहुजन अघाडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रकाश अंबेडकर भी कहते हैं कि शिवसेना को लेकर चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ उद्धव ठाकरे का सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला सही है।
सब जानते हैं शिवसेना का गठन बाला साहेब ठाकरे ने किया था। मराठी मानुष उनकी विचारधारा के केंद्र में था। हिंदुत्व के भाव ने भाजपा व शिवसेना की आत्मा को जोड़े रखा। बाला साहेब के जाने के बाद दोनों दलों में दूरी बढ़ी और राजनीतिक रास्ते भी अलग-अलग हो गए। इसके बाद शिवसेना टूट की शिकार हो गई। एक गुट एकनाथ शिंदे की अगुवाई में अलग हो गया और भाजपा के समर्थन से सत्ता पर काबिज हो गया। महाराष्ट्र में शिवसेना लोगों के दिलों में है, लेकिन वे वास्तव में अपना नेता किसे मानते हैं यह फैसला वे ही करेंगे और उनका फैसला भी सही होगा। वे जिसे अपना नेता मानेंगे वही जनता का नेता होगा। लेकिन इस फैसले के साथ कई अन्य बातें भी जुड़ी हैं और इनमें पार्टी के कार्यालय और परिसंत्तियां भी शामिल है। अब देखना है कि उद्धव व शिंदे आगे के विवादों से कैसे निपटते हैं।
महाराष्ट्र की शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट , जोड़-तोड़ की राजनीति कर रही है, इनमें श्रीमती इंदिरा गांधी जैसी राजनैतिक क्षमता और नेतृत्व नहीं है.