– विवेक कुमार मिश्र-

एक गौरया
चुपचाप
सुबह – सुबह
सूखी टहनी पर
बार – बार आती है
पेड़ की हर शाख से
बात करती
मौसम का हाल पूछती
और जल का किनारा
उस ताल के बारे में भी पूछती
जो इसी पेड़ की डाल से दिख जाता
अब नहीं दिखता
गौरया हैरान होकर
ताल के किनारे को देखना चाहती
जीवन की आस में
पेड़ की डाल पर बैठ जाती
क्योंकि इस पेड़ से
जीवन का …और गौरया का
बहुत पुराना रिश्ता है
गौरया जीवन की तरह
शाख पर
मन पर
छा जाती
टहनी की तरह
मन को हिला जाती
गौरया आबोहवा का
हाल दे जाती
तपती धूप में छाया – पानी के लिए
पेड़ की शाख को
झूलते तार की तरह
हिला जाती
गौरया बार – बार
पेड़ का आभार जता जाती।
– विवेक कुमार मिश्र
(सह आचार्य हिंदी राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)
F-9, समृद्धि नगर स्पेशल , बारां रोड , कोटा -324002(राज.)
एक चाय की टापरी है यहां आसपास के लोग, काम करने वाले लोग बाग उठते बैठते हैं। चाय पानी करते हैं । नमकीन दाना पानी आदि लेते हैं । इसी क्रम में कुछ न कुछ चिड़िया के लिए भी सायास और अनायास भी आ जाता । चिड़िया दाना चुगने आ जाती है । पूरा चिड़िया का कुनबा यहां दानी पानी लेता है और आदमी के साथ पारिवारिक परिवेश में यहां चिड़िया इस तरह रहती है चिड़िया के साथ परिवेश मन को शांति मिलती है। जरूरत बस यही है कि चिड़िया के लिए जगह दाना पानी छोड़ते चलें । दुनिया के सुकून के लिए यह जरूरी है।
गौरक्षा मानव की सहचरी रही है, हमारे घरों के कोटरों,छप्पर छानी इनके घर होते हैं और आंगन में फुदकती दाने की तलाश में चूं चूं करती दिख जाती है.डाक्टर मिश्रा ने ऐसे पक्षी पर कलम चलाई है जो अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष रत है. गौरया बचाओ अभियान,इसका जीता जागता उदाहरण है
बहुत बहुत आभार आपका।
गौरैया से गौरक्षा छप गया है, त्रुटि के लिए खेद है